प्रिय पाठक गण,
सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
आज प्रवाह में हम चर्चा करेंगें, स्पंदन या तरंग पर, यह एक सूक्ष्म विज्ञान है, स्पंदन यानी किसी भी जगह या मनुष्य के भीतर या वहां पर वातावरण में जो भी स्पंदन या तरंगे विद्यमान है, वह किस प्रकार की है।
सकारात्मक ऊर्जा है या नकारात्मक ऊर्जा है, किस प्रकार के स्पंदन वातावरण में व्याप्त है, यह निष्कर्ष ध्वनि जो वहां पर है, भले ही वह सूक्ष्म रूप में ही क्यों न हो, उस वातावरण की ऊर्जा को बदलने की अचूक सामर्थ्य रखती है।
जब साधारण रूप से कहे शब्दों का हमारे ऊपर प्रभाव होता है, तो सूक्ष्म ऊर्जा जो किसी भी वातावरण में है, वहां की ऊर्जा को नकारात्मक या सकारात्मक कर सकती है।
यह एक गहरे शोध का विषय है, पर सामान्य रूप से भी बातचीत द्वारा हम कौन सी ऊर्जा उत्पन्न कर रहे हैं, व अगर मौन भी है, तो कौन से स्पंदन हमारे भीतर चल रहे है,
हमारे भीतर सूक्ष्म तरंगे तो चल ही रही है,
उन्ही तरंगों को हम किस प्रकार से सकारात्मक तरंगों में परिवर्तित करें, यही हमारा प्राचीन विज्ञान व दर्शन हमें बताता है।
आंतरिक ऊर्जा का परिवर्तन हम शनै शनै हमारे अभ्यास द्वारा कर सकते हैं, इसे हम विज्ञान या कला दोनों ही कह सकते हैं, यह दोनों का समन्वय है।
इसे हम परा विज्ञान भी कह सकते हैं, कोई भी मंदिर या स्थान एक दिन में सिद्ध स्थल नहीं बन जाते हैं, वहां पर निरंतर पूजा -पाठ,
हवन, आरती आदि नियमित किये जाते हैं,
जिससे वहां का वातावरण ऊर्जामय हो जाता है, यही प्रक्रिया अगर हम अपने घरों में दोहराते हैं, तो घरों की ऊर्जा भी जो है, वह संतुलित होने लगती है।
निरंतर चलने वाली यह प्रक्रिया किसी भी स्थान या वस्तु या अपने आसपास के वातावरण को बदलने की एक अद्भुत सामर्थ्य रखती है, इस विज्ञान से हमारे प्राचीन ऋषि-महर्षि भली भांति परिचित थे, भारतीय संस्कृति की गहराई को अगर हमें वास्तव में समझना है, तो हमें सूक्ष्म तरंगों पर कार्य करना होगा, हम स्वयं भी निरंतर अभ्यास द्वारा अपने आप को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित कर सकतेहैं, हमारा शरीर कई प्रकार की ऊर्जाओं का एक जोड़ है, जब हमारा जन्म हुआ, उस समय जब हम मां के गर्भ में थे, तब जो ऊर्जा हमारे
भीतर बन रही थी, बाद में जब जन्म हुआ तो हमारे आसपास भी भिन्न ऊर्जा वाले व्यक्ति,
वस्तु के संपर्क में हम आते हैं, अपने जीवन काल के दौरान हम कई प्रकार की सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही ऊर्जाओं के मध्य अपना जीवन जीते हैं।
हम अपनी आंतरिक ऊर्जा को तो निश्चित ही परिवर्तित कर सकते हैं, यह हमारे स्वयं के नियंत्रण में है, परंतु बाह्य ऊर्जा जो वातावरण से, परिवेश से, अनेक अन्य विचारों से, हमारे आसपास घट रही है, उस पर हमारा कोई भी नियंत्रण नहीं होता।
हमारा जीवन व यह शरीर स्पंदनो को समझता है, यह समस्त ब्रह्मांड एक स्पंदन है,
इसमें सभी प्रकार की ऊर्जा है, हम उनमें से किस ऊर्जा से संपर्क स्थापित करते हैं, या करना चाहते हैं, हम उसे ही जाने- अनजाने में आकर्षित करते हैं, बस यही समस्त ब्रह्मांड का सूक्ष्म व विराट दोनों ही स्वरुप है।
सूक्ष्म से विराट, विराट से सूक्ष्म, हम इस ऊर्जा को किस प्रकार से देखते हैं, यह हमारी अपनी दृष्टि भी हो सकती है।
प्राचीन महर्षियो ने गहरे शोध के बाद कई बातों को स्थापित किया, हो सकता , हम उन रहस्यो से परिचित नहीं है, पर सत्य है या असत्य, यह तो हमें निरंतर उस चेतना से जुड़ने पर ही प्राप्त हो सकता है।
मगर स्पंदन की जो भाषा है, आप किसी के लिए भी आंतरिक रूप से अच्छा या बुरा जो भी भीतर से सोचते हैं, वह अंततः कार्य करता तो है।
इतना तो मैंने स्पंदनों पर कार्य करने के बाद महसूस किया है, सूक्ष्म में जो चलता है,
अंत में वहीं घटता है, क्योंकि उसके बीज हमारे भीतर विद्यमान थे, व उन्हें उचित वातावरण अगर हमने प्रदान किया, तो वे निश्चित ही एक समय बाद वे प्रस्फुटित होंगे
ही।
मेरा यह आलेख आप सभी को पसंद आयेगा, ऐसा मेरा मानना है, जो भी मैंने आंतरिक रूप से महसूस किया है, वही मैंने
शब्दों के रूप में लिखा है।
आप सभी का दिन मंगलमय व ऊर्जा पूर्ण हो, सभी के जीवन में समृद्धि आंतरिक व बाह्य दोनों ही प्रकार की, भौतिक व आध्यात्मिक दोनों प्रकार की समृद्धि जीवन में बढ़े।
सूक्ष्म स्पंदनों के साथ हम इस लेख को आज विराम देते हैं, शेष फिर ।
विशेष:- स्पंदन हम चाहे या न चाहे, अपना कार्य करते ही है, परिवार से ,व हमारे जन्म से
जो भी हमें प्राप्त हुआ, पूर्व जन्म, इस जन्म वह आगे अभी हम क्या कर रहैं हैं? कितने प्रकार के विभिन्न स्पंदनों के मध्य हमारी यह
जीवन यात्रा चल रही है, किन स्पंदनों की और हम आकर्षित हो रहे है, कुछ तो हमारे हाथ में
हैं, कुछ हमारे हाथ नहीं भी है, इस प्रकार यह एक मिला-जुला स्वरूप है।
वैसे गहरी आत्म शक्ति द्वारा हम अपने पूरे जीवन को रूपांतरित कर सकते हैं, अगर हम इसे सही रूप में समझ सके तब।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत
जय हिंद,
वंदे मातरम्।