प्रिय पाठक गण,
    सादर नमन, 
         परम वन्दन, आप और हम सभी उसी के आश्रय में है, यह चराचर जीव जगत इस एक सत्ता के आश्रय में है।
        वे प्रभु कभी किसी को, कभी किसी को
निमित्त बनाकर कार्य करते हैं, मगर उनकी कृपा को समझ पाना हमारे बस में है नहीं,
वे जैसे चाहेंगे  इस संसार सागर में आपकी गति को उधर ही मोड़ देंगे, जिसमें आपका हित  हो, जब हम उनकी अनन्य शरण हो जाते हैं, तो वह लीलामय प्रभु भी फिर अपनी कृपा हम पर बरसाने लगते हैं।
          जो परम भक्ति -भाव से, पूर्ण श्रद्धापूर्वक उनका स्मरण करते हैं, तो वह हमें अधोगति से निकालकर परम गति की और 
हमें चलाने लगते है।
     वह जब चाहे, तब संपूर्ण सृष्टि को आपके अनुकूल बना सकते हैं या फिर प्रतिकूल भी बना सकते हैं। 
    कब क्या घटता है? केवल वे  ही जानते हैं,
हम सब तो केवल अपना- अपना दायित्व निभाते हुए उनकी शरणागत होकर रहे, नित्यप्रति जो भी परम मंगल भाव से वंदन करता है, उनकी शरण में रहकर जो कार्य करता है, वह इस भवसागर में तो मुक्त हो ही जाते हैं, उनके कृपा -आश्रय में होने से   प्रतिकूलताएं भी अनुकूलताओं में बदल जाती है। 
       अपनी समस्त सफलताओं का श्रेय हमें उनके श्री चरणों में ही डाल देना चाहिये, वह जिसको भी अपनी मंगल शरण में लेते हैं, उसे फिर कभी भी वह नहीं छोड़ते, संसार में सभी हमसे केवल अपने अपने -अपने स्वार्थो की
पूर्ति हेतु ही हमसे बंधे होते हैं, मगर वह परमात्मा बिना किसी स्वार्थ के अपनी कृपा हम पर बरसाते हैं, निमित्त वे जिसे चाहे, उसे बना दे। 
      वे कृष्ण, कन्हैया, गिरधारी हम सभी की लाज रखने वाले हैं, वे बालकृष्ण, नटखट है, इस प्रकार उनकी चंचलता व नित्य मधुर होठों पर सदैव मुस्कान को वे धारण करने वाले हैं।
उनकी मुस्कान अति प्रिय व मधुर है, वह स्वयं भी बड़े ही मधुर है।
      वह अपनी दिव्य शक्ति व माधुर्य से इस संपूर्ण जगत का संचालन कर रहे हैं, उनकी कृपा नित्य बरस रही है, मंगल कर रही है। 
      परम मंगल को प्रदान करने वाले, प्राणी मात्र को शरण में रखने वाले, परम माधुर्य जिनकी वाणी में है। जो चातुर्य से पूर्ण है, जो समस्त मंगल कामनाओं को पूरा करने वाले हैं
उनकी नित्य कृपा से ही सब कार्य पूर्ण हो रहे हैं, वही संसार के समस्त सुख वैभव को प्रदान करने वाले हैं, मंगल शरणागति द्वारा ही हम उनकी कृपा को पा सकते हैं, कोई भी अन्य उपाय नहीं है ।
        इस संसार चक्र में हम सभी हैं, केवल उनकी मंगल कृपा के सिवा कोई भी अन्य द्वारा नहीं है। 
       सद्गुरु सबका मंगल करें, सब पर कृपा करें, वे परमात्मा सब पर कृपा करें, यही मंगल भाव, उनके श्री चरणों में हमें लेकर आता है। 
      हे परम पिता, परमात्मा, अगर हम यह समझते हैं, तो हम भूल कर रहे हैं, वह हमसे जो कार्य करवाना चाहता है, उसने हमें माध्यम बनाया है, यह उसकी मंगल कृपा ही तो है। हम जैसे कितने ही इस संसार में आए व गये,
मगर जिस पर उसकी कृपा बरसी, वह इस संसार सागर में रहते हुए भी उनकी कृपा से मुक्त हो गया। 
      वे प्रभु समय-समय पर किसी का मान बढ़ा देते हैं, कभी मान घटा भी देते हैं, वे जो भी करते हैं, भेद केवल वहीं जानते हैं, अगर सब कुछ हम जान ले तो फिर उस विराट सत्ता को कौन मानेगा?  वे सबका मान रखने वाले हैं।
 विशेष:- हम सभी का जीवन एक नौका की भांति है, हम सब संसार -सागर में है, वह उनकी कृपा बिना हम एक पग भी नहीं चल सकते, उनके मंगल कृपा में रहे, आनंद में रहे, 
अपने प्रयास करते रहे, शेष परमात्मा पर छोड़ दे। आपका हित किस मे छिपा है, वे ही जानते हैं ।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत, 
जय हिंद, 

  

प्रिय पाठक गण,
      सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
     आज हम हमारे समाज में जो विभिन्न विकृतियां देख रहे हैं, उसके मूल में हमारी जो संस्कृति है, उसे हमने हृदय से आत्मसात नहीं किया है, वहीं इसका मूल कारण है। 
          अगर हम जो कह रहे हैं, वही कर भी रहे है, तो हमें भयभीत होने का, विचलित होने का कोई भी कारण नहीं।
         जब हम वाणी से कुछ और कह रहे होते हैं, हमारे मन में कुछ और चल रहा होता है, हमारा आचरण कुछ और होता है, तब इन तीनों का ही आपसी सामंजस्य न होने से , जो हमारे आचरण में त्रुटि का निर्माण होता है,
वह हमारे व्यक्तित्व को भीतर से खंडित करता है। अगर हमारा मन ,वचन व कर्म तीनों में ही सामंजस्य अगर है, तो हम आंतरिक व बाह्य दोनों ही प्रकार से ऊर्जावान रहेंगे।
        हमारे आचरण व कर्म में अगर भिन्नता
हैं, तो वह हमारे व्यवहार द्वारा ही परिलक्षित   हो जायेगी।
       हम जितनी गहराई से हमारी संस्कृति का अध्ययन करेंगे, उतने ही अनमोल मोती हमें प्राप्त हो जायेंगे।
      गीताजी में भी भगवान श्रीकृष्ण जी ने 
भी कर्म योग को ही सबसे अधिक महत्व प्रदान किया है, विपरीत परिस्थितियों उत्पन्न होने पर भी जो व्यक्ति अपना आचरण नहीं बदलता, वह निश्चित ही श्रेय का भागी बनता है।
     हमें सर्वप्रथम अपने आचरण में दृढ़ता लाने का अभ्यास करना चाहिये, उसके पश्चात हम किसी और से उसे करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, या कह सकते हैं। 
             जितना- जितना हम अपने भीतर की और प्रवेश करते हैं , उतना ही अधिक हम अपने- आप को भी जान पाते हैं, आत्म कल्याण के लिये हमें अपनी आंतरिक प्रवृत्तियों पर गहराई से नजर रखने की, अवलोकन की आवश्यकता है। जितना हम 
गृंथों का स्वयं अध्ययन करेंगे, हमारे प्रज्ञा चक्षु  खुलने लगेंगे, समय तो अपने काल क्रम से चल ही रहा है, हम कितने गतिमान होकर उससे कदम मिला पा रहे हैं।
        समय पर निर्णय करना व उस पर पूर्ण रुपेण अमल करना, यह उस परमात्मा की मंगल कृपा के बिना संभव ही नहीं है।
       हमें अपने जीवन में कुछ मूलभूत सिद्धांतों को अपनाना चाहिये।
      प्रथम, हम जिस भी घर में, परिवार से जुड़े हैं, कभी भी अपने आचरण से उसे परिवार का किसी भी प्रकार से अहित न हो। 
     द्वितीय, जीवन में हम जो भी व्यवहार या
संबंध बनाये, अपनी ओर से पुर्ण ईमानदार व कृतज्ञ रहे।
     तृतीय, समय, परिस्थितियों का सदैव पूर्ण सावधानीपूर्वक आकलन करें। 
    चतुर्थ, हम अपने निजी जीवन में परिवार के अतिरिक्त कुछ ऐसे संबंध अवश्य विकसित करें, बाली दो या चार संबंध हो, मगर वे इस प्रकार से हो, हम उन्हें व वे हमें किसी भी समय में पुकार सके, हम उनकी मदद को व वे
हमारी मदद को हमेशा तैयार रहे। 
     जीवन काल में मात्र अगर हम इन चार सूत्रों पर भी पूर्ण ईमानदारी से कार्य अगर करें, तो हमें कभी भी निराशा का सामना नहीं करना पड़ेगा। 
     बस ,हमें पूर्ण ईमानदारी से इन सूत्रों पर कार्य करना है। 
      इतना भी अगर हम कर सके तो वह परमात्मा सदैव हमारे साथ है ही, यह मानकर चलें।
    आंतरिक श्रद्धा व विश्वास के बल पर हम अनेक उपलब्धियां को हासिल कर सकते हैं। 
   नित्य निरंतर हम अपने कार्यों की समीक्षा अवश्य करें। 
    परमपिता परमेश्वर सब का कल्याण करें, 
सबके मानस में दिव्य प्रेरणा प्रदान करें।
विशेष:-  हम अपना जो भी नियत कर्म, इसका हमने स्वयं बीड़ा उठाया है, उसे पूर्ण सामर्थ्य से, ईमानदारी पूर्वक निभाने का प्रयास अवश्य करें, शीशा परमात्मा पर छोड़ दे, उसकी कृपा के पात्र बनकर रहे, जब भी अहंकार का प्रवेश हमारे मन में हो, उसे याद करें। वह मां से अहंकार को मिटाते चले, उसकी अनमोल कृपा को धारण करें। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत, 
जय हिंद, 
वंदे मातरम। 



प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन,
     आप सभी को मंगल प्रणाम, 
          आज प्रवाह में हम बात करेंगे भूत, वर्तमान ,व भविष्य।
      क्या हम हमारे भूतकाल को जो बीत गया, उसे बदल सकते हैं, उत्तर होगा नहीं,
तब हम भूतकाल में जो भी घटित हुआ है, 
उससे केवल हम सबक ले सकते हैं, उसके अलावा उसका और तो कोई भी औचित्य नहीं हैं।
     वर्तमान जो समय है, केवल वही हमारा है, वर्तमान में हम जो भी करेंगे, भविष्य का निर्माण उसी से होगा।
      उपयुक्त क्या होगा?  हम वर्तमान समय में पूर्ण सजग रहे व उस पर संपूर्ण ध्यान दें, तभी हम हमारे भविष्य को सही कर सकते हैं।        भूतकाल से हम सबक सीखें, वर्तमान में रहे, भविष्य दृष्टा बने, आगे से आगे क्या घटनाक्रम घटेगे, व आज हम जो भी कर रहे हैं, निश्चित ही हमारे भविष्य का निर्माण उसी से होगा। 
      भविष्य निर्माण के लिए आवश्यक है, कि हम वर्तमान में पूर्ण सजग रहकर भविष्य की और दृष्टि रखें। 
       अपने सपनों को चुने, फिर उन पर पूर्ण ईमानदारी, स्पष्ट नीति व धैर्य पूर्वक हम आगे बढ़े, भूतकाल को बदला नहीं जा सकता, मगर वर्तमान समय का सही उपयोग हम अगर करते हैं, तो भविष्य निश्चित ही हमारा सुखद व सुदृढ़ होगा।
    इस प्रकार हम अपने जीवन को व्यवस्थित क्रम से आगे से आगे लेकर जाये।
     आजकल आधुनिक साधनों का सही प्रयोग करके हम समय व श्रम दोनों की ही बचत कर सकते हैं, धन,समय, व श्रम इन तीनों का सही उपयोग हम करें, समय भी धन है, उसे हम सही जगह नियोजित करेंगे तो हमें बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे।
        परिश्रम से कभी  न घबराये, हमारा परिश्रम ही हमें आगे कर सकता है, अन्य कोई भी  उपाय जीवन में नहीं। जितना अधिक हम योजना बद्ध तरीके से कार्य करेंगे, उतने ही आश्चर्यजनक परिणाम हमें प्राप्त होंगे।
       व्यवहारिक नियमों को जीवन में स्थान दें, आपका व्यवहार ही आपको आगे ले जाता है, 
विनम्रता पूर्वक व्यवहार करें। 
       विनम्रता वह आभूषण है, जो हमें सफलता के शिखर पर लेकर जा सकता है,उसे कभी भी न खोये, वह आपके मूल 
व्यक्तित्व की पूंजी है।
     आशावादी रहे, अपनी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करें, धीरे-धीरे, लेकिन किसी भी कार्य 
में परिणाम आने में समय तो लगता है। 
    धैर्य पूर्वक अपनी यात्रा को जारी रखें, 
निरंतरता बनाये रखें।
    आंतरिक शक्ति व सामर्थ्य, जो की सबसे 
अधिक महत्वपूर्ण है, उसे अपनी ताकत बनाये, दृढ़ इच्छा शक्ति को धारण करें,
अंततः आप सभी बाधाओं को पार करते हुए 
आपने जो भी लक्ष्य लिया है, उस लक्ष्य पर अपना पूर्ण ध्यान केंद्रित करें, दिशा भ्रमित न
हो। क्या करना है? उसे भीतर बराबर दोहराते रहें, जब आप बारंबार किसी एक तथ्य या
वस्तु या विषय के बारे में सोचते हैं, तो यह बह्मांड आपको उन लोगों से मिलायेगा व आप प्रगति के पथ पर अग्रसर हो जायेंगे।
      आपका जो भी मुख्य लक्ष्य है, वह आपकी स्वयं की स्थिति के अनुसार सबसे बेहतर आप क्या कर सकते हैं? ध्यान लक्ष्य पर केंद्रित होने से आप फिर उस दिशा में ,
आपने जो भी लक्ष्य लिया है, उसे करने की कोशिश करेंगे, व आप उस लक्ष्य के अधिकतम नजदीक भी होंगे।
      जीवन में स्वप्न जरूर देखें, क्योंकि वह आपके लिए प्रेरणा का कार्य करते हैं, विचलित न हो, धैर्य पूर्वक अपने लक्ष्य को पार करें। 
विशेष:- भूतकाल से सबक प्राप्त करें, वर्तमान में रहे, वर्तमान में आप किस प्रकार से कार्य करें, जिससे आपके उज्जवल भविष्य का निर्माण हो, बस यही इसका सारांश है। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत, 
जय हिंद, 
वंदे मातरम।

प्रिय पाठक गण,
    सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
   आज प्रवाह में हम बात करेंगे युवा वर्ग व समाज। 
       आज समाज में जो विकृति सबसे अधिक उत्पन्न हो रही है, वह है बगैर किसी 
प्रयास के उपलब्धियां को पाने की चाह। 
   एक अजीब सी मृगतृष्णा में हमारा समाज आज है, नैतिक मूल्यों की जो गिरावट आज समाज में देखी जा रही है, वह युवा वर्ग को भी प्रभावित करती है। 
     सृष्टि में सब कुछ नियमानुकूल ही प्राप्त होता है, संघर्ष करने पर ही हमें प्रतिफल प्राप्त होते हैं, सबसे पहले मेरी युवा वर्ग से अपील है, वह पहले अपनी आदत को अवश्य बदले, 
अगर वह सामाजिक रूप से सक्रिय नहीं है, 
लोगों से मिलता जुलता नहीं है, तो सर्वप्रथम समाज में सक्रियता की आदत डालें, इसके साथ ही अच्छे साहित्य का अध्ययन अवश्य करें , अपनी अभिरुचि को किताबों या कोई भी कार्य, जो उसे भीतर से सुकून प्रदान करता है, उसे जीवन में अवश्य अपनाये।

       हम जैसा भी सोचते हैं, आखिरकार हम उस दिशा में फिर कर्म भी करते हैं , व हमारे कर्म की दिशा सही होने पर परिणाम भी अच्छे ही प्राप्त होंगे। 
     युवा वर्ग को चेतना युक्त आचरण करना चाहिये, आज का समय कठिनतम प्रतिस्पर्धा का दौर है, तब तो युवाओं को और अधिक संकल्पबद्ध होकर सही दिशा में सक्रिय होना होगा, सदैव प्रयासरत रहे। 
     जीवन में अपने से जो भी अनुभवी लोग हैं, उनके पास कुछ समय अवश्य बिताये, उनके अनुभव हमेशा ही आपको कुछ बेहतर दिशा दे  पायेंगे।
      उनके अनुभव व वर्तमान की चुनौतियां, 
जो निश्चित ही उनके समग्र अनुभव से मेल नहीं भी रखती हो, मगर फिर भी अनुभव तो अनुभव ही होता है, लोगों की परख करना भी उनसे सीखे। 
        जीवन में कोई ना कोई लक्ष्य अवश्य रखें, जो आपके भीतर से प्रेरणा प्रदान करें, फिर उस लक्ष्य प्राप्ति के लिए अपने आप को समर्पित कर दें।
      युवा ही आने वाले समय में इस देश के 
कर्ण धार है, उनमें सही दिशा बोध हो, इसके लिए समाज को  भी जागरूक  होना  चाहिये,  युवाओं का मार्गदर्शन करना चाहिये, उनमें सामाजिक व नैतिक मूल्यों के प्रति आस्था उत्पन्न करना, यह भी हमारा सामाजिक दायित्व है। 
      इस समय वर्तमान काल में युवा वर्ग धन प्राप्ति व भौतिक साधनों की प्राप्ति हेतु तो सजग है, व उन्हें प्राप्त भी कर लेता है, मगर मात्र भौतिक उन्नति की और ध्यान होने से 
मानवीय जीवन के अन्य पक्ष सामाजिकता, 
स्नेह व आध्यात्मिक चिंतन के अभाव में वह सब कुछ पास में होते हुए भी भीतर से एक रिक्तता का अनुभव करता है, पर इन सभी में उसका भी क्या दोष है? आज हम हमारी सामाजिक व्यवस्था को देखें, तो कथनी व करनी में जो अंतर है, वह अंतर ही वह जब देखता है, तो उसके भीतर एक आक्रोश का जन्म होता है। 
     हमारे सामाजिक मूल्यों का धराशायी होना न केवल हमारे लिये बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी अत्यंत घातक है, इस और ध्यान देने की आवश्यकता है, हम सभी उसी परमपिता के एक छोटे से अंश है, शांति की तलाश हम बाह्य साधनों में करते हैं, जबकि आंतरिक शांति हमेशा हमारे भीतर ही विद्यमान होती है। 
      युवा वर्ग को भौतिक व आध्यात्मिक जीवन के इन दोनों ही पहलुओं को समझना होगा, यह मानो एक ही सिक्के के दो विपरीत पहलू है, मगर अनिवार्य भी है। 
      युवा वर्ग समाज का एक अंग है, अगर वह आध्यात्मिक ऊर्जा से संपन्न न हुआ, तो सभी साधन होते हुए भी सामाजिक मूल्यों के अभाव में वह आंतरिक अतृप्ति का अनुभव हमेशा करेगा, व भीतर आंतरिक अशांति होने पर बाह्य साधनों की प्रचुरता भी उसे वह नहीं दे पायेगी।
     उन्हें जीवन का संतुलन किस प्रकार वह करें, यह अनिवार्यतः सीखना ही होगा, हम सब समाज में रहते हैं, समाज से ही हम प्राप्त करते हैं, व समाज में ही हम सभी से मिलते हैं, व अपनी व्यवहार कुशलता के बल पर हम समाज में अपना स्थान बना लेते हैं, इसी 
व्यवहार कुशलता का अभाव हम युवा वर्ग में आज देखते है।
          उनके भीतर दायित्व बोध को जगाना,
कि हम समाज में रहते हैं, तो अपने साथ-साथ समाज के प्रति जो हमारा कर्तव्य है, वह भी हम करते रहे, प्रथम तो हम जीवन में कृतज्ञता को धारण करें, उस परमात्मा को धन्यवाद दें, 
इस सृष्टि में, हमारे आसपास, परिवार व समाज के जो व्यक्ति हैं, उनके पति हृदय से कृतज्ञ हो, यही कृतज्ञता का भाव हमें  आंतरिक शक्ति  व शांति दोनों ही प्रदान करता है। 
       समाज में युवाओं को जुड़ना चाहिये,
समाज कल्याण मे ही हमारा भी कल्याण निहित है, छिपा है, यह समझ हमें युवा वर्ग में समाज के प्रति विकसित करनी होगी। 
      जब हम समाज से कुछ ले रहे हैं, तो हमारा यह कर्तव्य बनता है, हम समाज को भी कुछ दे, कृतज्ञता पूर्वक , अहोभाव से उनका धन्यवाद करें।
       जीवन तो जीना ही है, मगर हम जीवन को किस प्रकार से, प्रज्ञा पूर्वक जिये, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है। 
      युवा वर्ग के भीतर हमें एक उत्साह का भाव, कृतज्ञता का भाव जगाना होगा, युवा पीढ़ी को दिशा बोध प्रदान करना , सामाजिक दायित्व भी हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग है, उसकी कभी अनदेखी न करें। 
विशेष:- युवा वर्ग को मात्र भौतिक साधनों से परिपूर्ण कर देना ही शिक्षा का व समाज का उद्देश्य नहीं होना चाहिये, उसका सर्वांगीण विकास, यानी उसके व्यक्तित्व का विकास 
वह भी एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू है, उन्हें सामाजिक परिवेश में किस प्रकार से रहना है, 
समाज में आना-जाना, वह करते हुए  कर्तव्य कर्मों को भी निभाना, जो सामाजिक व्यवस्था का एक अनिवार्य अंग है, समाज के प्रति   कृतज्ञता का होना, यह युवा वर्ग के चरित्र का एक अनिवार्य अंग होना चाहिये।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय हिंद, 
जय भारत, 
वंदे मातरम।

प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
   हम सभी एक सामाजिक व्यवस्था में रहते हैं, वह उसके कुछ सामान्य से नियम हैं, एक बात जो हमेशा हमारे सामने आती है, वह है, 
की अधिकतम सभी अधिकारों की तो बात कहते हैं, मगर हमारे अपने कर्तव्य क्या है ?
          वह हम नहीं देखना चाहते, और यह किसी भी काल में संभव ही नहीं कि आप कर्तव्य तो पूरे नहीं करें और अधिकारों की बात करें।
       जो भी व्यक्ति अपने दायित्व या कर्तव्य ईमानदारी से पूर्ण करता है, उसे अपने अधिकारों की प्राप्ति तो स्वत: ही हो जाती है।
         जाने अंजाने में हम यह न्यायिक सिद्धांत भूल गए कि अधिकार प्राप्त ही तब होते हैं, जब आप अपने कर्तव्य को ईमानदारी पूर्वक निभाते हैं।
       यह दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,  इन  दोनों का ही समान महत्व है। 
     जो भी अपने कर्तव्यों को पूर्ण ईमानदारी पूर्वक निभाता है, उसे अधिकारों को प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त प्रयत्न नहीं करना
पड़ते, यह तो उसे स्वत:  ही प्रकृति द्वारा प्रतिफल में प्राप्त हो ही जाते हैं।
     हमारा स्वयं के प्रति, परिवार के प्रति, फिर समाज के प्रति, इस प्रकार से दायित्व या कर्तव्यों को को निभाना चाहिये, अधिकार तो 
हमें स्वयं प्रकृति ही प्रदान कर देगी। 
        यही तो खूबसूरती है, उस परमपिता के न्यायिक सिद्धांत की, हम चाहे किसी भी प्रकार से इन बातों की अनदेखी कर दें, मगर ईश्वर का न्यायिक सिद्धांत पूर्ण रूप से अटल है, उसमें हेर- फेर की कोई गुंजाइश है ही नहीं।
        हम अपने कर्तव्य व दायित्वों का ध्यान
रखें, उन्हें सही ढंग से निभाये, तभी हमें अधिकारो की प्राप्ति  भी होगी।
    जिस प्रकार से यह प्रकृति हम सभी पर समान रूप से कृपा करती है, भेदभाव नहीं करती, कोशिश करें, जो भी कार्य  हम अपने हाथों में ले, उसे पूर्ण निष्ठापूर्वक प्रयास अपनी ओर से निरंतर करते रहे।
    आपका निरंतर सही दिशा में किया गया प्रयास एक अद्भुत शक्ति  व सामर्थ्य  का निर्माण आपके भीतर करता है। आत्म बल व आत्मविश्वास से पूर्ण होने पर आपके अंदर एक दैवीय शक्ति  अपने आप ही जागृत हो जाती है।
       निरंतर प्रयासरत रहे, अपनी निष्ठा को,
   कर्म पूर्ण श्रद्धापूर्वक हम पालन करें, नित्य प्रयास करें, आंतरिक प्रेरणा से कार्य करें। 
    यह संपूर्ण ब्रह्मांड आपकी सहायता को
सदैव तत्पर है। 
    अधिकारों का प्रयोग सावधानी पूर्वक इस प्रकार करें, संतुलित नजरिया हमारा हो, किसी को भी भावनात्मक ठेस पहुंचाये बगैर हम अपनी इस यात्रा को अविरल जारी रखें, एक समय ऐसा अवश्य आयेगा, आपको अपने आप ही आभास होने लगेगा, अपने निज कर्तव्य को पूर्ण ईमानदारी पूर्वक निर्वहन करने पर हमें सभी उपलब्धियां स्वत:  ही प्राप्त होती जाती है। 
      अपने अधिकारों का सदुपयोग करें, दुरुपयोग नहीं, फिर आप देखेंगे, चमत्कारिक ढंग से आपका जीवन परिवर्तित होने लगेगा। 
   जैसे-जैसे हम परिपक्व होते हैं, जीवन की गहराइयों को समझते हैं, हमारा जीवन प्रकाशमय होने लगता है।
      आंतरिक शांति हमारी बढ़ने लगती हैं, व दिव्य प्रवाह, जो संपूर्ण सृष्टि का प्रेरक व रखवाला है, उसकी कृपा आप पर बरसने  लगती है।
    अंतर्मन में सद्भाव अगर जागृत हो रहा है, कोई प्रेरणा भीतर से उठ रही है, तो अवश्य ही दैवीय कृपा आप पर हो रही है।
    परिस्थितियों से घबराएं नहीं, वे तो आती जाती रहेंगी, अपना आत्मबल बनाये रखें,
व अपना मार्ग जो भी भीतर से आपने चुन
रखा है , उस परमात्मा की कृपा शरण होकर उसे करते रहे।
विशेष:- अपने कर्तव्यों को पूर्ण निष्ठा पूर्वक हम करते जाये, हमें अच्छे प्रतिफल ही प्राप्त होंगे, ऐसा कभी होता ही नहीं, आपके कर्म की दिशा सही हो और परिणाम विपरीत आये, आंतरिक रूप से चेतना को हमेशा जागृत रखें।
शेष परमात्मा पर छोड़ दें, कुछ हमारे व कुछ उस सृष्टि कर्ता के हाथों में है।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय हिंद 
जय भारत 
वंदे मातरम।

प्रिय पाठक गण,
    सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
    देश में बिहार चुनाव पर चर्चा चल रही है,
एक बात जो राजनीति में देखने को मिल रही है, वह है व्यर्थ का धन प्रदर्शन व बाहुबल का
प्रदर्शन, बिहार राज्य क्या देश से अलग है?
    जो बिहार की अस्मिता के नाम पर लड़ा जा रहा है, यह तो भावनात्मक शोषण है, कभी महाराष्ट्र में भाषा के नाम पर, बिहार में बिहारी अस्मिता के नाम पर, इस तरह तो भारत देश विखंडन की राह पर चलेगा। 
     सभी पक्ष विपक्ष के राजनीतिक दल क्या अपनी-अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा में देश को पीछे करेंगे। 
   इतने सालों बाद भी देश में कई ऐसे मुद्दे हैं,
जो बहुत ही गौर करने लायक है, हां, पर प्रशांत किशोर जी का यह कथन की बिहार में अभी तक तरक्की जिस तरीके से होना चाहिए थी, वह नहीं हुई, स्थानीय रोजगार और शिक्षा पर कार्य नहीं हुआ, वह सही है, पर इसके लिए राजनीतिक दल सभी चाहे वह पक्ष में हो या विपक्ष में ,दोषी तो है। 
     देश में राजनीतिक दलों को भी एक सर्वमान्य नियमों को अपनाना चाहिए, जो भी कार्य देश हित में स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप हो, उन्हें महत्व प्रदान करना चाहिए। 
जब तक देश में एक सर्वमान्य नीति जो भी इस देश के संपूर्ण हित में हो, नहीं तय की जाती, देश में अभी भी सुधार की गुंजाइश है। 
     वर्तमान समय में राजनीतिक परिदृश्य में 
जो आरोप व प्रत्यारोप लगाए जाते हैं, क्या हमें उनसे कोई दिशा प्राप्त हो रही है? 
      शिक्षा, रेलवे, डाक सेवाएं, बैंकिंग यह ऐसे विभाग है, जिन पर सरकार का नियंत्रण होना जरूरी है। 
   हर किसी विभाग का निजीकरण होने से जो सरकार का नियंत्रण है ,वह समाप्त होता है, और यह स्थिति देश हित में उचित नहीं कहीं जा सकती। 
     स्थानीय रोजगारों को प्रथमिकता, व्यवसाय में छोटे, घरेलू व मंजुले उद्योगों को प्रोत्साहन जरूरी है। 
     देश में संसाधनों की कमी नहीं है, नेतृत्व   वर्तमान में  क्या सबसे बेहतर हो सकता है? 
उस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है,
आज देश में राजनीति में दिखावे पर जितना खर्चा किया जाता है, उतना ही अगर संसाधनों का सही प्रयोग करने पर किया जाये, तो तस्वीर कुछ और हो सकती है।
     भारतीय राजनीति का एक अलग परिवेश है, अलग-अलग प्रांत, उनकी अलग समस्याएं, जब तक स्थानीय समस्याओं का सही समाधान नहीं निकाला जाता, उन्हें प्राथमिकता नहीं प्रदान की जाती, तब तक दिक्कतें आती ही रहेंगी।
   बिहार में पहली बार राजनीतिक मैदान में उतरे श्री प्रशांत किशोर जी ने "जन-सुराज"
के माध्यम से जो सवाल उठाये हैं, वह निश्चित ही प्रासंगिक तो लगते हैं, अब देखना यह है जनता कितना उनका समर्थन करती है, वैसे भी बिहार क्रांतिकारी परिवर्तनों का गढ़ है, किसी समय श्री  जयप्रकाश नारायण ने भी यही से राजनीतिक बदलाव की शुरुआत की थी, जब आपातकाल के बाद उन्होंने जनता दल का गठन किया था, अब फिर वैसी ही बदलाव की आहट बिहार में सुनाई देने लगी हैं। इस समय श्री प्रशांत किशोर जी ने जान स्वराज के माध्यम से जिन विषयों को जन सुराज के माध्यम से उठाया है, वह निश्चित ही जनता को झकझोरते  तो है, मगर उनकी है बातें जनता के वोटो के रूप में तब्दील कैसे होगी, यह एक देखने लायक बात है, वैसे हमारे देश की जनता कई बार चौंकाने वाले फैसले करती रही है, और इस मामले में जनता निसंदेही कई राजनीतिक दलों के
अनुमानो को ध्वस्त कर चुकी है, अगर जनता ने परिवर्तन का मन बना लिया है, तो प्रशांत किशोर जी की जीत तय है, मगर क्या जनता बदलाव का मूड बना चुकी है, और अगर बदलाव का मूड बना भी है तो क्या वह जन सुराज के पक्ष में है, इन सब बातों का पता तो बिहार चुनाव पूर्ण होने के बाद जब परिणाम आएंगे तभी  पता चलेगा, अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
       सभी राजनीतिक दल जो नई-नई घोषणाएं जनता को पैसा बांटने की करते हैं, वह स्वस्थ लोकतंत्र की दृष्टि से तो कतई उचित नहीं है, एक तरीके से यह तो अपरोक्ष रूप  से वोटो की खरीदी ही है, मतदाता को जागरूक होना होगा, उसे प्रलोभनों से दूर रहकर जो सही स्थिति है और जो सही समाज हित में होना चाहिये, वही फैसला करना चाहिये।
      अगर देश में स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराया जाये तो इस प्रकार के
प्रलोभनो की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
    देश की जनता को भी समझना चाहिये,
हमारा कीमती मत बिकाऊ नहीं है, आत्म सम्मान व स्वाभिमान के साथ खड़े होने के लिए यह जरूरी भी है। 
    स्वस्थ प्रजातांत्रिक मूल्यों के लिये हमें स्वरोजगार वह स्थान स्तर पर क्या अच्छा हो सकता है, इस और ध्यान देने की आवश्यकता है।
      यही देश के मतदाताओं से उम्मीद है, अगर जनता सही तरीके से इस चीज को समझ जाये तो इस बार बिहार में हमें बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। और इस समय देश में इसकी जरूरत भी है, स्थानीय स्तर पर अगर रोजगार के सही अवसर उत्पन्न किया जाये तो फिर बिहार क्या किसी भी प्रदेश में वहां के लोगों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा। 
विशेष‌ - भारतीय राजनीति एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जनता को भी चाहिए कि वह सही परिपेक्ष्य में चीजों को देखे व समझे,
अब एक पुनर्निर्माण की और हम अग्रसर हो, 
और इसके लिए जरूरी भी है कि बदलाव अवश्य हो।







प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
            आप सभी को मंगल प्रणाम, प्रवाह की इस मंगलमय व अद्भुत यात्रा में आप सभी का हृदय से स्वागत।
      आज हम बात करेंगे, आत्म शक्ति पर, हमारी आत्म शक्ति ही, हमें संघर्ष जीवन के जो भी हमारे सामने उपस्थित होते हैं, उन संघर्षों 
 में हमें विजय श्री प्रदान करते हैं, स्थितियां चाहे कितनी ही प्रतिकूल ही क्यों न हो, प्रबल आत्मविश्वास हमें उन सभी से पार करता है, 
            प्रबल आत्क्तिमविश्वास द्वारा ही हम परिस्थितियों का सामना करते हैं, अपनी आंतरिक शक्ति को हम कभी भी क्षीण न होने दे, वह आत्म शक्ति ही हमें समझ प्रदान करती है, धैर्यता देती है।
       अनुकूल परिस्थितियों सदैव नहीं होती, 
प्रतिकूल परिस्थितियों भी सदैव नहीं होती,
अनुकूल व प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियां जायेगी, समय ने जो लिख रखा है, वह तो अवश्य घटेगा, घटनाक्रमों से विचलित न होते हुए अपने प्रयासों में निरंतरता बनाये रखें।
          बुद्धि पूर्वक, श्रद्धा पूर्वक, मनोयोग से हर पहलू को हम देखें, जांचे, परखे, फिर हम आगे बढ़े, व्यवधान कोई भी हो, अधिक समय तक वह रहने वाला नहीं, किसी भी निर्णय को लेने से पहले उसके सभी पहलुओं पर विचार करें, तो हम निर्णय ले सकेंगे। 
     अगर हमारी दिशा सही है, तो प्रयत्न करते रहने पर हमें परिणाम अवश्य प्राप्त होंगे।
  कर्म की गति बड़ी ही गहन हैं, आप और हम कई बातों का निर्धारण नहीं कर सकते, कई कर्म सूक्ष्म होते है, कई कर्म हम जानते ही नहीं, सही है अथवा नहीं?    फिर भी हम कर देते हैं, इस प्रकार हम काल व परिस्थितियों के आधीन होते हैं, कई बार हमें सब पता होता है, पर हम विरोध करने की स्थिति में नहीं होते हैं।
     इस कलि- काल में केवल नाम सुमिरन ही हमें समस्त प्रकार के तापों से मुक्त कर सकता है, अन्य कोई भी उपाय है ही नहीं।
     भगवान  का नाम सुमिरन करने पर हम आंतरिक रूप से जागृत होते हैं, हमारे द्वारा 
फिर  कोई गलत आचरण नहीं होगा ,
क्योंकि परमात्मा का नित्य सुमिरन हमें धीरे-धीरे सही मार्ग की और ले जाता हैं, जिससे हमारा जीवन-पथ आलोकित होने लगता है।
        जिनकी कृपा मात्र से अनेकों प्रकार के
संकट स्वमेव हटने लगते हैं, परमात्मा हमें स्वयं प्रेरित करने लगता है, वह अपने भक्तों पर पूर्ण दृष्टि रखते हैं, जो आंतरिक भाव से प्रभु से जुड़ जाता है, उसकी सारी समस्याएं फिर प्रभु स्वयं हल करने लगते हैं, निस्वार्थ भाव से उनका सुमिरन अत्यंत ही मंगलकारी होने लगता है।
      नित्यप्रति उनकी मंगल शरण में रहने से फिर सब मंगल ही होगा , ऐसे परमेश्वर की हम नित्य शरणागति हो, उनका परम वंदन करते रहे। अपने नित्य कर्तव्य कर्मों को करते हुए भी हम उनका लीला गान करते रहे, यही एकमात्र मंगल उपाय है, जो हमें हर प्रकार के दोषो से रहित करता जाता है।
         हमारे सारे कर्म उसकी मंगल कृपा से भस्म हो जाते हैं, जीवन हैं, तब तक हमें जीना तो होगा ही, युक्ति युक्त तरीके से, उनकी मंगलमय शरणागति होकर रहे, उनके मंगल आश्रय में  रहे।
       जो भी घटे, वह उनकी असीम अनुकंपा से घटे, मंगल हो या अमंगल, जो भी प्रभु की इच्छा हो, वह हो, ऐसी अनन्य शरणागति भाव से जीवन की  डोर हम उनसे बांध ले।
       आत्मबोध हो जाने पर फिर हम चाहे गृहस्थाश्रम में हो, अपने निजी कर्म को करें,
कहीं भी रहे, परम कृपा शरण  में रहे।
    नित्य उनकी मंगलमय कृपा का अनुसरण करते रहे। 
     नित्यं ध्यायंते योगिन:, योगी  जन  जिनको नित्य भजते हैं, भक्तजन जिनकी कृपा का सदैव अनुभव करते हैं, कर्मयोगी अपने कर्म द्वारा जिनका मंगलमय आचमन करते हैं,
इस प्रकार इस संसार सागर को पार करने में हम सक्षम नहीं, उनकी मंगल कृपा का नित्य अनुभव करते रहे, सांसों में वह बसा है, हर क्षण उसका मंगल सुमिरन चलने दे।
       परमात्मा का सुमिरन करते रहें, उसकी कृपा सदैव बरस रही है। 
विशेष:- अपनी आंतरिक आत्म शक्ति को कभी भी क्षीण न होने दे, संसार में जो भी सफल हुआ है, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो,
उसकी मंगलमय कृपा आधार बिना कुछ संभव ही नहीं है, परमेश्वर आप सभी पर कृपा करें, हम सभी चाहे या ना चाहे, उसके आधीन है, जो भी घटे, वह मंगल ही घटे, यही मंगल कामना। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय हिंद, 
जय भारत, 
वंदे मातरम।