प्रिय पाठक गण,
सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम ,
आज हम बात करेंगे, सजगता ही बचाव है,
अगर हम पूर्ण रूप से सजग है, तो हमें मालूम होता है, कि हम जो भी कार्य कर रहे हैं, वह कितना महत्वपूर्ण है व उसे किस प्रकार से
किया जाये।
सजग रहकर हम सारी परिस्थितियां ठीक प्रकार से समझ सकते हैं। आंतरिक सजगता हमें क्या कर्म करना है, क्या नहीं?
यह बोध प्रदान करती है, व बाहृय सजगता हमें व्यवहार कुशल बनाती है।
इस प्रकार हमारे जीवन में दोनों ही प्रकार की सजगता अगर बराबर है, तो परिणाम निश्चित ही सुंदर होंगे।
हम अपने कार्य के प्रति पूर्ण सजग रहें,
व जीवन का आपका कौन सा चरण है, अगर आप जीवन के प्रारंभिक चरण में है,
तो शुरुआत से ही सजग रहकर अपनी भूमिका तय करिये, आपका जीवन आपका स्वयं का है, उसके परिणाम आपको ही प्राप्त होंगे, अन्य किसी को नहीं।
अगर जीवन की शुरुआत में ही आपके पास लक्ष्य स्पष्ट है, तो आपने जीवन की सही शुरुआत प्रारंभ कर दी है, अस्पष्ट नजरिया हमारी उन्नति को रोकता है, अपनी स्वयं की रुचि कौन से क्षेत्र में है, हमें वही कार्य शुरुआत से करना चाहिये।
शुरुआती जीवन में अगर अपने लक्ष्य को ध्यान में रखा, तो सफलता आपकी राह देख ही रही है, अगर किसी कारणवश आप जीवन के प्रारंभिक चरण में लक्ष्य तय नहीं कर पाये, आप जीवन के मध्य चरण में है, तो अपनी गतिविधियों को स्वयं जांचे, कहां चुक हो रही है, धैर्य पूर्वक कोई एक दिशा में आप कार्य करें, नहीं तो प्रारंभिक चरण में तो आप सजग नहीं रहे, जीवन के मध्य चरण में आप सजग अवश्य हो जाये, व अपने जीवन की रूपरेखा आप समझे, एक ही दिशा में कार्य करें, जीवन के प्रारंभिक चरण को खोने के बाद मध्य चरण में कोई गलती ना करे, अभी भी समय पूर्ण रूप से आपके हाथों से नहीं निकला है।
जीवन का प्रारंभिक व मध्य चरण अगर आप सजगता पूर्वक संपन्न करते हैं, तो अंतिम चरण में आपको इतनी चिंता करने की आवश्यकता ही नहीं है, जीवन में सजग रहें।
सजगता ही बचाव है, नित्य प्रति प्रभु कृपा का
भी सुमिरण करते रहे, वह परमपिता सबका कल्याण ही करता है, उसकी शरण में रहकर अपने जीवन के समस्त कार्यों को संपन्न करें।
अगर आपने प्रारंभिक व मध्य चरण सफलतापूर्वक पार कर लिया है, तो आपका अंतिम चरण प्रभु की कृपा से उत्तम ही होगा।
प्रारंभिक व मध्य चरण के बाद ही जीवन का उत्तरार्ध आता है, अगर हमारे प्रारंभिक व मध्य के फैसले सजगतापूर्वक किये गये है, तो हमारे पूर्व में किया गये अच्छे कार्य व फैसले हमारा रक्षण करेंगे, जीवन के उत्तरार्ध में प्रभु की ओर धीरे-धीरे हम बढ़ते रहे, उसकी असीम अनुकंपा को अनुभव करें।
सजग रहे, सरल रहे, आत्म बोध बनाये रखें, धैर्य पूर्वक अपना रास्ता तय करें, मंजिल की और कदम बढ़ाते रहे।
विशेष:- कोई भी फैसला जब हम करें, जीवन के सारे पहलुओं को देखने के बाद ही निर्णय करें, दूरगामी परिणामों को देखकर किसी भी कदम को बढ़ाये, धर्म ग्रंथ का अध्ययन करें , पुस्तकें पढ़ें, अनुभवी लोगों से मिले, उनके जीवन के अनुभवों को सुने, सजग रहे, परिवर्तनों को ध्यान पूर्वक देखें।
आपकाअपना
सुनील शर्मा
जय भारत,
जय हिंद,
वंदे मातरम।