प्रिया पाठक गण,
सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
मुझे पूर्ण विश्वास है, आपको मेरे द्वारा लिखे गए लेख पसंद आ रहे होंगे।
आज का मेरा विषय है, मौन और मुखरता, आज हम सभी के सामने एक समस्या हमेशा ही आती है, वह यह की कहां पर हमें मौन रहना है वह कहां पर हमें पूर्ण रूप से मुखर होना है, हमें यह अवश्य ज्ञान होना चाहिये।
दैंनन्दिन जीवन में हमें अगर इस कला का ज्ञान हो, तो हम कई प्रकार के संकटों से बच सकते हैं, जैसे ही हमें इस प्रकार की बात का ज्ञान हो जाये तो जहां पर हमारी बात को ध्यानपूर्वक सुना जाता है, वहीं पर हमें अपनी बात को कहना चाहिये, जहां पर भी हम अपनी बात कहें, वह पूर्ण रूप से तथ्यों व सत्यता पर आधारित हो, अगर हम तथ्य व प्रमाण सहित अपनी बात को कहेंगे तो कोई कारण नहीं कि हमारी बात को न सुना जाये।
अपनी किसी भी बात को जो सत्य पर आधारित हो, वह बात हमें सही जगह व सही व्यक्ति के सामने मुखरता से रखना ही चाहिये ।
अगर हम ऐसा कर पाते हैं तो परिणाम भी उतने ही शानदार होंगे।
कभी-कभी हमारा मौन रहना हमारी बात को और अधिक प्रभावी बना देता है, जितना उचित हो, उतना कहे, अनावश्यक कही गई बात का भी कोई अर्थ नहीं होता, समय आने पर दृढ़ता पूर्वक अपनी बात को अगर कहने की हम कला सीख गये तो मानो हमने बहुत कुछ सीख लिया, अनुभव भी जीवन को और
अधिक समृद्ध बनाता है, जैसे-जैसे हम इन बातों को अपने जीवन में सही ढंग से अपनाते जाते हैं, तो यकीन मानिये आपके जीवन में
कमाल हो सकता है। हमारी सूझ-बूझ ही हमारे बचाव का एक पर्याप्त आधार बन सकती है।
हमेशा अवलोकन करते रहें, जितनी गहरी हमारी दृष्टि होगी, उतने ही आयाम हमारे सामने होंगे, हम उन आयामों को सही तरीके से देखकर फिर यह तय कर सकते हैं, कहां पर हमें मौन रहना उचित है व कहां पर मुखर होना उचित, यह अभ्यास अगर हम सीख गए तो हमारे जीवन की अधिकतम समस्याओं का समाधान हमें प्राप्त हो जायेगा।
मुखरता पूर्वक अपनी बात कहना भी एक कला है, जो सतत अभ्यास के द्वारा सीखी जा सकती है। इस प्रकार निरंतर अभ्यास द्वारा हम इस बात को सीख ले तो पाएंगे हम व्यर्थ की बातें, जिनका हमारे जीवन में कोई भी सकारात्मक महत्व ही नहीं है, उन्हें भी हम अपने जीवन में यूं ही प्रवेश दे देते हैं।
इस प्रकार जैसे-जैसे हम प्रभावी ढंग से इस बात को समझने लगेंगे, हमारे जीवन में सकारात्मक का प्रवेश होने लगेगा, अनुकूल व प्रतिकूल स्थिति उत्पन्न होने पर हम कितने ध्यान पूर्वक उनका सामना करते हैं, उसे पर ही हमारी सफलता भी तय होती है।
मुखरता व मौन दोनों ही महत्वपूर्ण है, जहां पर संवाद करना है वहां संवाद व जहां पर मौन रहना हो, वहां पर मौन रहना ही उचित है। कब क्या अधिक उपयोगी है, इसकी जितनी गहरी समझ हमें होगी, उतनी ही स्वविवेक से कार्य करने पर हमारे सामने सफलता के नए सोपान खुलने लगेंगे।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत।
जय हिंद।