प्रिया पाठक गण, 
    सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
मुझे पूर्ण विश्वास है, आपको मेरे द्वारा लिखे गए लेख पसंद आ रहे होंगे।
आज का मेरा विषय है, मौन और मुखरता, आज हम सभी के सामने एक समस्या हमेशा ही आती है, वह यह की कहां पर हमें मौन रहना है वह कहां पर हमें पूर्ण रूप से मुखर होना है, हमें यह अवश्य ज्ञान होना चाहिये।
दैंनन्दिन जीवन में हमें अगर इस कला का ज्ञान  हो, तो हम कई प्रकार के संकटों से बच सकते हैं, जैसे ही हमें इस प्रकार की बात का ज्ञान हो जाये तो जहां पर हमारी बात को ध्यानपूर्वक सुना जाता है, वहीं पर हमें अपनी बात को कहना चाहिये, जहां पर भी हम अपनी बात कहें, वह पूर्ण रूप से तथ्यों व सत्यता पर आधारित हो, अगर हम तथ्य व प्रमाण सहित अपनी बात को कहेंगे तो कोई कारण नहीं कि हमारी बात को न सुना जाये।
अपनी किसी भी बात को  जो सत्य पर आधारित हो, वह बात हमें सही जगह व सही व्यक्ति के सामने मुखरता से रखना ही चाहिये ।
अगर हम ऐसा कर पाते हैं तो परिणाम भी उतने ही शानदार होंगे।
           कभी-कभी हमारा मौन रहना हमारी बात को और अधिक प्रभावी बना देता है, जितना उचित हो, उतना कहे, अनावश्यक कही गई बात का भी कोई अर्थ नहीं होता, समय आने पर दृढ़ता पूर्वक अपनी बात को अगर कहने की हम कला सीख गये तो मानो हमने बहुत कुछ सीख लिया, अनुभव भी जीवन को और
अधिक समृद्ध बनाता है, जैसे-जैसे हम इन बातों को अपने जीवन में सही ढंग से अपनाते जाते हैं, तो यकीन मानिये आपके जीवन में
कमाल हो सकता है। हमारी सूझ-बूझ ही हमारे बचाव का एक पर्याप्त आधार बन सकती है।
         हमेशा अवलोकन करते रहें, जितनी गहरी हमारी दृष्टि होगी, उतने ही आयाम हमारे सामने होंगे, हम उन आयामों को सही तरीके से देखकर फिर यह तय कर सकते हैं, कहां पर हमें मौन रहना उचित है व कहां पर मुखर होना उचित, यह अभ्यास अगर हम सीख गए तो हमारे जीवन की अधिकतम समस्याओं का समाधान हमें प्राप्त हो जायेगा।
       मुखरता पूर्वक अपनी बात कहना भी एक कला है, जो सतत अभ्यास के द्वारा सीखी जा सकती है। इस प्रकार निरंतर अभ्यास द्वारा हम इस बात को सीख ले तो पाएंगे हम व्यर्थ की बातें, जिनका हमारे जीवन में कोई भी सकारात्मक महत्व ही नहीं है, उन्हें भी हम अपने जीवन में यूं ही प्रवेश दे देते हैं। 
       इस प्रकार जैसे-जैसे हम प्रभावी ढंग से इस बात को समझने लगेंगे, हमारे जीवन में सकारात्मक का प्रवेश होने लगेगा, अनुकूल व प्रतिकूल स्थिति उत्पन्न होने पर हम कितने ध्यान पूर्वक उनका सामना करते हैं, उसे पर ही हमारी सफलता भी तय होती है।
      मुखरता व मौन दोनों ही महत्वपूर्ण है, जहां पर संवाद करना है वहां संवाद व जहां पर मौन रहना हो, वहां पर मौन रहना ही उचित है। कब क्या अधिक उपयोगी है, इसकी जितनी गहरी समझ हमें होगी, उतनी ही स्वविवेक से कार्य करने पर हमारे सामने सफलता के नए सोपान खुलने लगेंगे। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत। 
जय हिंद।
प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
प्रथम संवाद हमारा स्वयं से होना चाहिये, हम क्या कर रहे है , क्यों कर रहे हैं, उसका हम क्या परिणाम चाहते हैं।
    जीवन में संतुलन की स्थापना किस प्रकार हो, हम सभी का जीवन चाहे -अनचाहे ही सही, आपस में जुड़ा ही है, क्या हम ऐसे समाज या परिवार की कल्पना कर सकते हैं, जहां पर सब सहयोग करने की बजाय आपसी खींचतान करते हो, अगर ऐसा होता है,
तो यह एक अच्छा संकेत नहीं है, हमें स्वयं सबसे पहले सहयोगात्मक वह सकारात्मक रूख पर ही कार्य करना होगा, स्व-  परिवर्तन मैं दृढ़ता अगर होगी तो हमारे आसपास भी परिवर्तन अवश्य होगा।
स्वर्ग व नरक दोनों का निर्माण हमारे स्वयं के हाथों में है। जहां पर सहयोग है, समर्पण है, निष्ठा है, एक -दूसरे के प्रति कुछ करने का भाव है, वहां पर स्वर्ग की सृष्टि स्वयं ही हो जायेगी, जहां पर हम आपसे खींचतान में होंगे, नरक का निर्माण हम स्वयं कर होंगे।
           सामंजस्य के जहां पर स्वर हो, वहां पर स्वर्ग ही है, जहां पर सामंजस्य नहीं है, वहीं पर नर्क है, सबसे पहले हम स्वयं का सुधार करें, फिर उस सुधार पर दृढ़तापूर्वक हम अमल करें, ऐसा करने पर हमारे आसपास भी परिवर्तन अवश्य आयेगा ही।
          अपनी मौलिक सोच पर पूर्ण दृढ़ रहे, जब भी ,जहां भी ,
जैसे भी हो, हम प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करें, माना कि सबका स्वभाव भिन्न है, मगर फिर भी लगातार अच्छी दिशा में की गई कोशिश अंततः सुखद परिणाम ही लाती है।
            हम साधनों का उपयोग करें न कि साधन हमारा, जब साधन हमारी सोच -समझ पर हावी हो जाये तो समझे हम कहीं ना कहीं गलत राह पर हैं, चिंतन- मनन द्वारा ही इसका समाधान संभव है।
             हम स्वयं कहां पर चूक कर रहे हैं, इसे भी समझना आवश्यक है, प्रतिदिन हमें क्या करना है, क्या नहीं, इसका जितना सही निर्धारण हम करते जायेंगे, उतना ही अधिक प्रभावी ढंग से हम अपने जीवन को सही दिशा की और लेते जायेंगे, स्वयं के विचारों के बीच में जो बहुत सारे विचार एकत्र हो जाते हैं, उनमें से हमें जिन पर कार्य करना है, वह हम अलग कर ले, तभी हम हमारे कार्य का निर्धारण सही रूप में कर सकते हैं, जितना हम अपने आप को व्यवस्थित करते हैं, उतना ही अधिक सुधार  हमें जीवन में देखने को प्राप्त होगा।
             समय अनुकूल निर्णय क्या सही है, परिस्थितियों का सही निर्धारण करने के बाद तुरंत निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करना, यह आपको स्वयं सीखना होगा, आप जितनी सूझबूझ से निर्णय लेंगे, उतनी ही सटीकता आपके जीवन में आती जायेगी, अपनी आंतरिक दृढ़ता को कायम रखें। 
           स्वयं परिस्थितियों का सही अवलोकन करे, उसके उपरांत निर्णय ले, आपका निर्णय सही होते जायेंगे। बुद्धिमानी पूर्वक सोच समझ कर, आसपास की घटनाओं का सही विश्लेषण करने के बाद आप जो भी निर्णय लेंगे, वह कमोबेश सही होगा।
आपकाअपना 
सुनील शर्मा 
जयभारत 
जय हिंद।

प्रिय पाठक वृंद,
      सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम,
     मुझे पूर्ण विश्वास है, विभिन्न विषयों पर लिखे गये मेरे लेख आपको निश्चित ही पसंद आ रहे होंगे, यदि आप किसी विषय-विशेष पर मुझे संवाद करना चाहते हैं, इसका माध्यम मेरे यह लेख है, जिसे मैं समझ में हो रही, घट रही, विभिन्न परिस्थितियों, जिनमें वर्तमान समय, हमारी प्राचीन संस्कृति, युवा वर्ग, राजनीतिक संवाद, शिक्षा, वर्तमान  में क्या प्रासंगिक, सभी विषयों पर मैंने अपनी पूर्ण कोशिश की है, पूर्ण हृदय से लिखने की।
             जो मुझे भीतर से सही लगा, वही सब मैंने मेरी लेखनी में लिखा है, जिसका मूल उद्देश्य मेरा सामाजिक चेतना को जागृत करना ही है, अगर हमारा युवा वर्ग, महिला वर्ग अगर मेरे इन लेखो का मूल उद्देश्य अगर समझ गए, तो  मैं समझूंगा, मेरा लेखन एक सार्थक दिशा में जा रहा है, मेरा पूर्ण प्रयास है , जो मैं दिल से महसूस करता हूं, वही लिखू।
           जब भाषा में बनावट आ जाती है, तो वह हमें आपस में आंतरिक रूप से नहीं जोड़  पाती है। 
        मां सरस्वती की मुझ पर अनुपम कृपा है कि वह मुझे नित्य निरंतर प्रेरणा प्रदान करती है, आंतरिक जो भी मेरी सोच है, वह मेरी कलम या लेखनी के द्वारा प्रकट हो, अगर मेरी लिखने द्वारा सामाजिक सार्थक परिवर्तन आता है, तो मैं इसे अपने जीवन का सौभाग्य समझूंगा।
         आते हैं आज के मूल विषय पर जियो और जीने दो।
मनुष्य ही है, जो सबसे अधिक बुद्धिमान प्राणी है, जिसे ईश्वर ने सोचने- समझने, बात करने, मनन करने की जो क्षमता प्रदान की है, वह अन्य किसी भी योनि में हमें प्राप्त नहीं है, हम सभी मनुष्य हैं, इस प्रकार हमारा जीवन हम इस तरह से जिए कि हमारा तो जीवन यापन हो ही, साथ में हमारे आसपास भी जो है, वह अपना जीवन यापन सुख पूर्वक कर सके। 
         यह एक मनुष्य होने का सबसे बड़ा गुण है, और यही हमें मनुष्यता प्रदान करता है, वरना फिर जानवर भी अपना जीवन यापन कर ही लेते हैं, वे  भी खाना खाते और अन्य वही क्रिया जो हम करते हैं सभी वे भी करते हैं ।
        मंत्र मनुष्य जीवन में ही हमें यह सुविधा प्राप्त है, हम अपने आप को मनुष्य बन सकते हैं, हम हमारे भीतर मानवीय गुणों 
जैसे समता, दया ,करुणा , आपस में  प्रेम, एक दूसरे की आवश्यकता पड़ने पर मदद हम कर सकते हैं, यह भाव जब संपूर्ण समझ होगा तो सामंजस्य बढ़ेगी, मेरे संपूर्ण लेखो का जो मौलिक उद्देश्य है, वह केवल सार रूप में यही है।
        हम अपने आप ही, स्वयं अपने जीवन की समीक्षा करें,  क्या हम सही राह पर हैं, अगर कहीं हमें भीतर कुछ ऐसा लगता है कि
कुछ तो सुधार की गुंजाइश है, अगर हम स्वयं को थोड़ी दिशा भी प्रदान कर पाए,  तो हमारे आसपास रहने  वाले भी हमारी निरंतर सही दिशा में आस्था देखकर परिवर्तन अवश्यं करेंगे। 
      हम अपने परिवार में सबसे पहले उचित सामंजस्य का निर्माण करें, फिर क्रमशः गली, मोहल्ला, नगर, जिला व राष्ट्र इस प्रकार हम एक राह बनाये।
आपका अपना 
सुनीलशर्मा 
जयभारत 
जय हिंद।
प्रिय पाठक गण,
        सागर नमन, 
मुझे पूर्ण विश्वास  है, मेरी यह वैचारिक यात्रा आप सभी को
मुझे जोड़ रही होगी, मेरा पूर्ण प्रयास होता है की जो भी लिखूं पूर्ण हृदय से, मेरी लेखनी में जो भी शक्ति है, वह सब मां सरस्वती की मुझ पर कृपा है, मुझे जीवन जीने के दौरान जो भी महसूस हुआ,
उसे मैं कलम बंद करना आरंभ किया। 
        इसके पीछे मेरा उद्देश्य यह है कि हम सब अपने जीवन में 
विभिन्न समस्याओं से रूबरू होते हैं।
      समस्या आने पर हम किस प्रकार से उसके समाधान को खोजते हैं, वह कौन से कारण है, जिन कारणों से हम आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।
        उन बातों पर अगर हम सही तरीके से कार्य करते हैं तो हम पाएंगे की समय की कमी नहीं, वरुण हमारे सोच व उसको करने के लिये जो इच्छा शक्ति है, वह कमजोर है। हमें अपने आप को स्वयं को समय देना आवश्यक है, अगर आप सही सोच के साथ अपने कार्यों को पूर्ण निष्ठा से करते हैं, तो आप देखेंगे, वे परिवर्तन आश्चर्यजनक होंगे , समय भी वही है, सब कुछ वही है, क्या बदला?  अपने अपने भीतर एक दृढ इच्छा शक्ति का निर्माण किया और अपनी राह चुनी वह उस पर निरंतर चलना प्रारंभ कर दिया।
     निरंतर ही वह सीढ़ी है, जो हमें हमारे गंतव्य तक पहुंचाती है। 
बात चाहे आर्थिक समृद्धि की हो, नैतिक समृद्धि की हो या सामाजिक समृद्धि की हो, आपके नित्य व निरंतर प्रयास से ही तस्वीर बदलती है। 
         आप जो भी सोचे या करें उसने एक निरंतरता अवश्य होनी चाहिये, जब आप किसी एक दिशा में निरंतर प्रयास करते रहेंगे तो परिणाम तो आएंगे ही।
        स्वयं से बात करें, आपकी जिंदगी आपकी अपनी है, क्या आप उसे यूं ही गवा रहे हैं, या किसी सार्थक दिशा की और ले जा रहे हैं, हम जब कोई कार्य करते हैं, तो उसकी रूपरेखा तय करते हैं, कार्य को किस प्रकार से करना है, सामने क्या बाधाये आयेंगी,
उनका हाल हम किस प्रकार निकालेंगे, समुचित रूप से किसी कार्य को करने के लिये हम रूपरेखा बनाते हैं, तो फिर यह तो  हमारे जीवन का सवाल है, हमें किस प्रकार अपना जीवन जीना
है, क्या उसकी भी सही रूपरेखा बनाना आवश्यक नहीं  है।
           तब यह जीवन जो परमात्मा ने हमें प्रदान किया है, क्या हुआ ऐसे ही पूरा करना चाहते हैं या जीवन में कोई उपलब्धि हासिल करना चाहते हैं, जब तक हम स्वयं से यह सवाल नहीं करते, हमे सही उत्तर भी प्राप्त नहीं हो सकता।
          जीवन में अगर उपलब्धियां चाहिए तो प्रयास भी करना होगा, बिना प्रयास के तो आप कोई भी उपलब्धि नहीं पा सकते हैं। 
          स्वयं के जागरण के बिना हम आगे का मार्ग तय नहीं कर सकते हैं, सतत रूप से अपने आपक जांचते रहिये, क्या हम जो सोचते हैं, हमारे कार्य की दिशा भी वही है, या हम सोच कुछ और रहे हैं और कर कुछ और रहे हैं, तो परिणाम सही कैसे प्राप्त होंगे।
          नित्य प्रति अपने आप को कसौटी पर कसे, आपने जो भी 
सोचा है, आप उन सब पर कितनी गंभीरता पूर्वक कार्य कर रहे हैं, वही आपको अन्य लोगों से अलग करता है। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जयभारत 
जय हिंद

प्रिय पाठक गण,
         सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, आप सभी को मेरे द्वारा लिखे गये लेख कैसे लग रहे हैं, कृपया अपनी प्रतिक्रिया मुझे अवश्य प्रेषित करें, इससे मेरा भी उत्साहवर्धन होता है। 
         चलिये, अब आज हम इसी वैचारिक श्रृंखला में आगे बढ़ते हैं, मेरा आज का विषय है , प्रतिबद्धता। 
        इसे अगर हम सही ढंग से समझे तो हम सभी का जीवन एक मामले में तो समान ही है, हम सभी को जीवन में समान समय प्राप्त है, फिर उसी समय में कोई हमें शीर्ष पर दिखता है, वह कोई नहीं। इसका सबसे स्पष्ट कारण केवल एक ही है, हमारी अपनी स्वयं के जीवन के लक्ष्य के प्रति अस्पष्टता, जब तक हमें स्वयं ही यह ज्ञात नहीं कि हमें इस जीवन में क्या करना है, किस प्रकार से जीवन को जीना है, तब हम किसी भी व्यक्ति व परिस्थिति स्थिति को इसका दोष नहीं दे सकते, जब हमारे सामने हमारा लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट हो तो हर बात बेमानी हो जाती है, क्योंकि जैसे ही आप स्वयं अपने लक्ष्य का निर्धारण करते हैं, पहला कदम आपका वहीं से प्रारंभ हो जाता है, सबसे पहले हमें अपनी स्वयं की रुचियों को जानना चाहिये, क्योंकि जो भी हमारी रुचि का क्षेत्र होगा, उधर हमारी प्रगति की संभावना सबसे अधिक होगी, इसका कारण भी बिल्कुल स्पष्ट हैं, जैसे ही आप अपनी रुचि के क्षेत्र में कार्य करते हैं, तब आप उसे कार्य से भीतर से जुड़ जाते हैं वह आप उसमें आनंद को महसूस करते हैं, फिर उसे कार्य को करने की आपकी ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है वह जैसे ही आपके कार्य करने की ऊर्जा भीतर से बढ़ती है, आप अपने लक्ष्य की ओर बिल्कुल स्पष्ट और धैर्य पूर्वक आगे बढ़ते जाते हैं।
              इसीलिए सर्वप्रथम तो हमें अधिक से अधिक स्वाध्याय करना चाहिये, स्वाध्याय यानि स्वयं का अध्ययन, अगर आपको पुस्तकें पढ़ना पसंद है, तो किस प्रकार की पुस्तक आपको पढ़ना पसंद है, समाज में लोगों से मिलना-जुलना जुलना पसंद है व विभिन्न रचनात्मक गतिविधियों में भाग लेना तो निश्चित ही आपको रचनात्मक सक्रियता पसंद है, अगर आपको इस प्रकार की गतिविधियां पसंद है, तो जैसे ही आप इन गतिविधियों से जुड़ते हैं,
आपकी ऊर्जा द्विगुणित हो उठती है।
          निष्क्रियता से जीवन में किसी भी उपलब्धि को हासिल नहीं किया जा सकता है। आपकी सक्रियता ही आपको उस मुकाम तक पहुंचा सकती है, जहां तक आपको जाना है, पता आपको स्वयं होना चाहिये , हमें किस और कार्य करना है, इसके लिये सबसे पहले हमें अपनी अभिरुचियों को जानना होगा। 
        जीवन में आपने जो भी सोचा है, या फिर आप सोचते हैं,
उन सब पर आपकी स्वयं की प्रतिबद्धता ही इस बात का निर्णय करती है कि आपके जीवन में क्या प्राप्त होगा, अगर सकारात्मक रवैये से हम अपने आसपास के घटनाक्रम का सही ढंग से अवलोकन करते हैं, तो हमें अपने लक्वष्यों  उसको जीवन में कैसे हासिल करना है, इसके प्रति स्पष्टता होगी , वह आप फिर उसी दिशा में कार्य करगे।
             और लक्ष्य स्पष्ट होने व एक दिशा में कार्य करने पर परिणाम तो आना तय है।
           अपने लक्ष्य के प्रति स स्पष्ट उसे करने के प्रति आपकी गंभीरता हीजीवन में उस मुकाम तक लेकर जायेगी, जिसकी आप कल्पना करते हैं। जैसे ही हमारे सामने लक्ष्य स्पष्ट होता है, हम उस दिशा मैं कार्य करने की आधी तैयारी तो मात्र लक्ष्य के सही निर्धारण से ही कर लेते हैं।
           जब आप तो अपनी रुचियां को जान लेते हैं कि वह किस विषय में है, और दृढ़ता पूर्वक आप उसे पर कार्य करते हैं, तो निश्चित ही आपकी सफलता उसी समय से शुरू हो जाती है, हो सकता है आपकी रुचि के क्षेत्र अधिक हो , तब आपको आपकी 
सर्वाधिक रुचि किस क्षेत्र में है, उसे स्वयं जानना चाहिये, जब आप अपनी सर्वाधिक रुचि वाले क्षेत्र की ओर जाते हैं तो आपकी मानसिक जुडाव के कारण आपको उसे कार्य को करने में कभी भी थकान महसूस नहीं होगी, वरन् और अधिक ऊर्जा प्राप्त होगी।
इस प्रकार जब आप अपनी अभिरुचि को पहचान लेंगे तो उसके बाद आपकी उसके प्रति प्रतिबद्धता ही आपके आगे का मार्ग प्रशस्त करती जायेगी।
विशेष:- हमारी या किसी और के जीवन की जब हम उपलब्धियां को देखते हैं, तो उनके पूरे जीवन को सही ढंग से देखिये, वे अपने पूर्ण जीवन को प्रतिबद्धता पूर्वक जीते हैं, तभी वे किसी विशेष मुकाम पर पहुंचते हैं, तो फिर जागृत होइये, अपनी अभिरुचि को पहचानिये व पहचानने के बाद उसके प्रति प्रतिबद्धता पूर्वक कार्य करिये, निश्चित ही परिणाम आपके पक्ष में खड़े होंगे। 
इति शुभम भवतू।
आपका अपना 
सुनील शर्मा ।
जय भारत। 
जय हिंद।


प्रिय पाठक गण,
      सादर नमन, 
पहलगाम विशेष इस श्रृंखला के पहले वाले लेख में मैंने विचार दिया था, भारतीय सेना को पूर्ण कार्रवाई का अधिकार मिले वह कश्मीर घाटी में अगर  राष्ट्रपति शासन अगर आवश्यक हो तो उसकी अनुशंसा भी की थी।
          आज जब अखबार में यह आया कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी श्री नरेंद्र जी मोदी ने सेना को पूर्ण अधिकार
प्रदान करते हुए उसकी कार्य योजना का अधिकार भी से ना को सौंप दिया है।
            योग संयोग से आज परशुराम जयंती का पावन अवसर भी है, इस पावन पर्व के दिन यानी परशुराम जयंती जो शौर्य के प्रतीक हैं , उन भगवान परशुराम जी की जयंती है, जिन्होंने स्वयं इक्कीस बार
अपने बाहुबल से क्षत्रियों का मान- मर्दन किया था, ऐसे शुभ दिन 
इस सूचना का प्राप्त होना कि भारतीय सेना को हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री व उनके मंत्रिमंडल कि सहमति सेना  को पहलगाम 
मामले में पूर्ण कार्रवाई का अधिकार दे दिया गया है, संपूर्ण देशवासियों के लिए हर्ष का विषय है, इससे भारतीय सेना का मनोबल भी ऊंचा होगा ।
                मुझे व संपूर्ण भारतवासियों को बेहद खुशी है कि पाकिस्तान से सिंधु नदी समझौता तोड़ने के बाद सरकार ने एक और कड़ा कदम देशहित में लिया है, देश की संपूर्ण जनता, सभी राजनीतिक दल, सभी आपके साथ हैं, इस बार कार्रवाई ऐसी होनी चाहिए की अगली बार कोई इस तरह की घटना को अंजाम देने का दुस्साहस ही ना कर सके।
              इंदौर समाचार में मैंने पहलगाम पर पहला लेख लिखा था, उसमें मैं इस बात के लिए जोर दिया था, सेना को अधिक अधिकार मिलना चाहिये, स्थानीय प्रशासन, सीमा सुरक्षा बल व सेना मिलकर संयुक्त कार्रवाई करें व इसकी  कमान सेना के हाथो में हो, मुझे बेहद खुशी है, भारत सरकार का उसी दिशा में एक बहुत अच्छा कदम है।
           निश्चित ही सरकार के इस कड़े फैसले से संपूर्ण राष्ट्र का गौरव बड़ा है, सेना को पूर्ण अधिकार प्रदान करना एक बड़ी ही अच्छी खबर, अब हमारे देशवासियों को  सेना से यह उम्मीद है 
कि वह  उचित रणनीति बनाकर आतंकवाद की कमर तोड़ दे भारत सरकार ने जो उन्हें पूर्ण अधिकार दिया है, तो वह ऐसी विस्तृत कार्य योजना तैयार करें जिसे दुश्मनों का समूल सफाया हो।
             पुनः प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र जी मोदी को  व उनके पूरे मंत्रिमंडल को हृदय से धन्यवाद जो उन्होंने विस्तृत चर्चा के बाद हमारी सेना को पूर्ण अधिकार दिए निश्चित ही इसका दूरगामी अच्छा परिणाम हमें देखने को मिलेगा। 
            आतंकवादियों का कोई ईमान नहीं होता, उन्हें कड़ा से कड़ा दंड मिलना ही चाहिये। जम्मू कश्मीर व कश्मीर घाटी के स्थानीय जो  भी उनको पनाह देने वाले हैं, उन्हें भी चिन्हित किया जाना चाहिये व उन पर भी कड़ी कार्यवाही करना ही चाहिये।
            राष्ट्र -विरोधी तत्वों से पूर्ण सामर्थ्य से निपटना ही चाहिये,
मैंने अपने पूर्व लेख में जो पहलगाम पर लिखा था, उसमें स्पष्ट 
कहा था की सेना को  कार्यवाही का अधिकार मिलना ही चाहिये,
बड़ी ही खुशी की बात है मेरी इस बात को, जो हर देशवासी के मन की ही बात थी, देश के वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व में इसकी सही ढंग से विवेचना की  व सेना को संपूर्ण अधिकार प्रदान कर
दिये, इसके लिए राजनीतिक नेतृत्व निश्चित ही प्रशंसा का पात्र है कि उसने कठोर कार्रवाई के संकेत बिल्कुल साफ दे दिए हैं। 
          हमारा देश मजबूत नेतृत्व के हाथों में है, और मुझे लगता है विपक्षी दलों को भी इस समय इस मुद्दे पर पूर्ण समर्थन करना ही चाहिये व वे ऐसा करेंगे भी, देश की अस्मिता पर जब भी सवाल उठा है, विपक्षी दल व सारा राष्ट्र एक होकर मजबूती से प्रधानमंत्री जी के साथ खड़ा है।
           और खास तौर से परशुराम जयंती के शुभ दिन देश को प्रधानमंत्री जी से ऐसी कड़ी कार्रवाई की अपेक्षा भी थी, परशुराम जयंती के शुभ दिन इस प्रकार का निर्णय बहुत ही शुभ संकेत है, 
निश्चित हमारी सेना शत्रुओं का मान मर्दन करेगी व अखंड भारत राष्ट्र की ओर फिर कोई इस प्रकार से न देखें , ऐसी ऐतिहासिक कार्रवाई सेना  करेगी।
           संपूर्ण राष्ट्र की ओर सेना को भी जिस प्रकार से हमारे प्रधानमंत्री जी वह उनके संपूर्ण मंत्रिमंडल ने अधिकार प्रदान किये है, उससे हमारी सेना का भी मनोबल काफी बड़ा होगा। उन्हें संपूर्ण राष्ट्र की ओर से पूर्ण समर्थन, ऐसी कार्रवाई करें कि दुश्मन फिर कभी इस प्रकार का दुस्साहस कर ही ना सके।
आपकाअपना 
सुनीलशर्मा 
जय भारत 
जय हिंद।

      


प्रिय पाठक गण,
       सादर प्रणाम, 
हम सभी अपने जीवन को समृद्ध बनाना चाहते  हैं, पर क्या आपने कभी भी ठहर कर विचार किया  है, जीवन में समृद्धि किस प्रकार आयेंगी।
          हमारे अपने जीवन के कई चरण है, प्रातः काल अगर हम
अगर जल्दी उठने का अभ्यास करें, प्रातः कालीन सैर पर हम अवश्य जाये, कोशिश करें प्रकृति से तादात्म्य  स्थापित करें,
उसे समय सांसारिक बातों से भी हम दूर रहे, तो हमारे भीतर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगेगा, हम जितना अपने आप को स्थिर चित्त करते हैं, हीआंतरिक शांति को प्राप्त होते हैं।
           मनोयोग पूर्वक प्रकृति से जुड़े, एक आनंद धारा को
महसूस करें, घूमने जाते समय सांसारिक विचारों से दूर रहने का प्रयास करें। 
        आप पाएंगे, अभी तक हम जो जीवन जी रहे थे, वह हम जी नहीं रहे थे, केवल उसे ढो भर रहे हैं।
         केवल एक दिन को जीवन उत्सव ना बनाइये, अपने पूरे जीवन को ही एक शानदार उत्सव बनाये, जो भी आपसे रूबरू हो, वह आपका कायल होने लगे।
           हमें आंतरिक शांति तभी प्राप्त हो सकती है, जब हम समन्वय करना सीख ले, किस प्रकार से चीजों को समायोजित किया जाता है, वह कल अगर हम सीख ले तो किसी भी प्रकार की अशांति हमारे जीवन में होगी ही नहीं। 
          जीवन में विभिन्न समस्याएं भी आती ही है, वह जीवन का अनिवार्य तत्व व सत्य है, मगर आप उसे समय अपने जीवन मूल्यों को अगर सहेज कर रख पाते हैं तो देर सवेर स्थिरता अवश्य आती हैं।
जीवन मूल्यों को जीते हुए जब हम चलते हैं, साथ में जो भी हमारे हैं, उनके साथ सही बर्ताव करते हैं, सही समन्वय स्थापित करते हैं,
तो निश्चित ही हम आंतरिक शांति के द्वार अपने जीवन में खोलते हैं।
हम सभी के जीवन में स्थिति चाहे भिन्न-भिन्न हो, मगर उन्हें सकारात्मक संवाद व मार्ग द्वारा ही सुलझाया जा सकता है।
जितना अधिक हम मंथन करेंगे, जीवन को बुद्धिमत्ता पूर्वक सही तरीके से जीने के सूत्र हम बना लेंगे, जैसे स्वास्थ्य, संवाद, समय का उपयोग, समन्वय इस प्रकार के उत्तम गुना का समावेश जीवन में कर ले तो हम पाएंगे हमारा जीवन आंतरिक शांति की और आने लगा है।
           जीवन मूल्यों को सही तरीके से अपने जीवन में स्थापित करने पर धीरे-धीरे जैसे-जैसे हम उन उत्तम गुना को धारण करते जायेंगे, आंतरिक शांति में अभिवृद्धि अपने आप ही होने लगेगी, 
अपने मूल विचार पर सदैव दृढ़ रहे। सामाजिक जीवन मूल्यों को अपने जीवन में अपनाये, सदा मदद की कोशिश करें, जो भी हमारी सीमाओं के भीतर हो, वह हम अपने जीवन में अवश्य करें, 
स्वयं जागृत हो, साथ में औरों को भी जागृत करें। 
            इस प्रकार हम नित्य निरंतर अपने साधना पथ पर बढ़ते जाये, आप पाएंगे एक अलग सा एहसास जिंदगी में आने लगा है। 
पूर्ण रूप से सजगता ही जीवन की आंतरिक शांति की दिशा में पहला कदम है। पहला कदम सही रखिये, अपने सही ध्येय को सामने रखिये, कदम बढ़ते जाये, अपने आप परिवर्तन भीतर से घटने लगेगा।
विशेष:- हम सभी के जीवन का मूल उद्देश्य ही यह है कि जीवन में सभी प्रकार की समृद्धि हमें मिले और यह तभी संभव है, जब हम भाई अब आंतरिक विचारों में एक उचित संतुलन को स्थापित कर सके, अगर हम ऐसा कर सके तो उसके फलस्वरुप हमारे जीवन
में आंतरिक शांति की अभिवृद्धि होने लगेगी। 
इति शुभम भवतू।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद