प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
    प्रवाह की इस मंगलमय व अद्भुत यात्रा में 
आप सभी का स्वागत है।
      आज हम बात करेंगे, मनुष्य की अपार क्षमताओं के बारे में, हर मनुष्य को अपने-अपने जीवन में परमात्मा ने समान अवसर दिये, फिर क्या कारण है? कोई हमें सफल होता दिखता है, कोई असफल। 
        अगर हम विश्लेषण करे तो पायेंगे, कोई भी व्यक्ति, जो अपने जीवन में सफलता का शिखर छूना चाहता है, तो सबसे प्रथम तो उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य क्या है? 
      जब तक यह वह स्वयं तय नहीं करता, कोई और भी किस प्रकार से उसकी मदद करेगा?
      प्रथम संवाद हम अपने आप से करें, 
हमने क्या लक्ष्य तय किया? और जो भी लक्ष्य तय किया कितनी ईमानदारी व पारदर्शिता से हम कार्य कर रहे हैं? कौन क्या कर रहा है? 
इससे विचलित न हो?
        आप अपने परिदृश्य में, परिवेश में, आपके पास जो भी साधन उपलब्ध है, उनसे आप कितना युक्तियुक्त सही इस्तेमाल उन साधनों का करते हैं। 
             हम सभी की सोच व समझ अलग-अलग होती है, मगर हम एक बड़े परिप्रेक्ष्य में अगर  समझे, तो हम पाएंगे, मानव में अपार क्षमता होती है, मगर वह अपनी क्षमताओं का कितना बेहतर इस्तेमाल करता है, उसका लक्ष्य क्या है?
       अगर हम पूर्ण ईमानदारी पूर्वक किसी भी लक्ष्य को धारण करते हैं, तो फिर उसे पाने का प्रयास भी अवश्य ही करेंगे।
      हम सभी को जीवन में हमेशा ही दुविधा 
यह होती है, हम अपने वास्तविक लक्ष्य  व जमीनी हकीकत दोनों का सही समन्वय नहीं कर पाते।
     हमें जीवन में दो प्रकार के  लक्ष्यों  को लेकर चलना चाहिये, यह मैं मेरे निजी अनुभव के आधार पर कह रहा हूं, हो सकता है आपका मत इससे भिन्न हो।
       आप कितने भी अच्छे इंसान हो, जमीनी हकीकत, वास्तविक स्थितियों को कभी भी 
नजर अंदाज नहीं करें। 
     वर्तमान समय को सही तरीके से परखे, 
सबसे अधिक महत्वपूर्ण आपको क्या लगता है ,अपनी परिस्थितियों अनुसार उस पर विचार करें व फिर उस पर कार्य करें।
      जीवन में दो लक्ष्य यानी आध्यात्मिकता व भौतिकता दोनों का उचित संतुलन जीवन में अवश्य करें, मात्र आध्यात्मिक हो जाने से आप गृहस्थ जीवन में है, आपका कार्य नहीं हो सकता, भौतिकता की और अधिक झुकाव होने से भी आप मानसिक रूप से परेशान हो सकते है, जीवन में इन दोनों ही लक्ष्यों को समान रूप से महत्व प्रदान करें।
       और हम मात्र आध्यात्मिक उन्नति पर ध्यान देंगे तो हमें मानसिक शांति तो प्राप्त  होगी, मगर केवल उससे जीवन यापन नहीं हो सकता, यहां पर हमें भौतिक साधनों व धन की आवश्यकता होगी, वहां पर वे ही कार्य  करेंगे, जब तक हम दोनों को समान महत्व नहीं प्रदान करते, हम हमेशा तकलीफ में होंगे।
      वर्तमान समय में भौतिकता का ही बोलबाला है, तो हमें भौतिक साधन तो जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये 
जुटाना हीं होंगे।
        अब हम देखते हैं, जीवन का आध्यात्मिक पक्ष, तो हमें आंतरिक शांति जीवन में किसी की मदद करके ही प्राप्त होंगी, हम अपना जीवन यापन करने के 
साथ -साथ किस प्रकार से अन्य लोगों की बेहतरी के लिये भी कार्य कर सकते हैं, वह आपके आध्यात्मिक पक्ष को मजबूती प्रदान करता है।
     हमें अपने जीवन में दोनों ही पक्षों में संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता है। 
    किसी भी एक का आवश्यकता से अधिक होना हमें परेशान कर सकता है, अतः एक संतुलित मार्ग अपनाना आवश्यक है।
     जीवन में अपने मूल लक्ष्यों को पहचाने ,
आपके भीतर से क्या अधिक प्रिय है? आप किन बातों में सुकून या शांति महसूस करते हैं, उन पर अपने जीवन में कार्य अवश्य करिये।
    हम सभी यात्री हैं, जिंदगी एक सुंदर सा सफर है, अवरोधों से कभी न घबराये, वे अवरोध ही आपकी ताकत भी है, उनसे धैर्य पूर्वक हम पार पाये।
    लक्ष्यों को पहचाने, हम सभी अपार क्षमताओं के मालिक हैं, जब हम अपनी संपूर्ण ऊर्जा किसी भी लक्ष्य पर लगाते हैं, 
तो निश्चित ही परिणाम आपके ही पक्ष में होंगे। 
      भीतर से कोई चीज आपको बारंबार पुकार रही है, तो समझिये, आपकी चेतना आपसे क्या कह रही है? 
 विशेष:- हमें स्वयं अपनी अपार क्षमताओं को पहचानना होगा, स्वयं का आकलन करें, हमारी जो भी विशेषता है, वह क्या है? उस गुण -विशेष पर अपना कार्य करें, निश्चित ही हम सभी में अपार संभावनाएं छुपी हुई है, 
बस हमें अपना लक्ष्य ठीक ढंग से पहचानना
 है, व संपूर्ण ईमानदारी से उस पर कार्य करना है।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत, 
जय हिंद, 
वंदे मातरम।


प्रिय पाठक गण,
   सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
     प्रवाह की इस मंगलमय व अद्भुत यात्रा में आप सभी का स्वागत है।
       हम सभी उसी एक परमपिता के अंश है,
माया के आवरण के कारण हम यह समझ नहीं पाते हैं, भौतिक सुख सुविधाओं की अत्यधिक चमक वह बहुलता ने मानो हमारे भीतर की शुद्धता भीतर तक नष्ट कर दिया है,
इस विश्व में हम सभी किसी न किसी रूप में 
एक दूसरे पर आश्रित है, यह संपूर्ण ब्रह्मांड भी एक दूसरे से सहयोग करता हुआ चालित हैं,
यही परम सत्य है, जिसे हमारे प्राचीन मनीषियों ने अपने अर्थबोध द्वारा जान लिया था, फिर सर्वसाधारण के लिये उन्होंने उसे रहस्य को ग्रंथो व पुराणों में विभिन्न श्रुतियों के माध्यम से कहा।
      परंतु जो ऋषि या मनीषी उसके मूल स्वरूप को जान गये, उनकी बातों को बाद में अपनी बातें मिलकर इसका मूल स्वरूप बदल दिया गया, और यहीं से मनुष्य का चातुर्य, जो वह करना चाहता है, उसे किस प्रकार से मोड़ना है, वह करने लगता है। 
    यह सृष्टि अनंत काल से अपने ही स्वाभाविक नियमों पर ही कार्य करती आ रही है, इसमें तनिक भी संशय  नहीं है।
     भौतिक आवरण अधिक गहरा होने से हम उसे तथ्य को स्पर्श ही नहीं कर पाते हैं, जो की परम चेतना से आबद्ध है।
       कथन भी है सत्यम, शिवम, सुंदरम 
सत्य ही शिव है, और शिव ही सुंदर है।, 
     उसकी कृपा के विविध रूप हमें प्रकृति की उदारता में देखने को मिलते हैं, कैसे वह सहज रूप से सभी का पोषण करती है, किसी से भी भेदभाव नहीं करती। 
      यही तो उसका परम रहस्य है, वह इसका आशय जो भीतरी गहराई में जाकर समझ जाता है, वह इस संसार सागर को जीता हुआ भी इसमें लिप्त नहीं होता, उस परम आश्रय  की शरण में  वह अपना जीवन चलाने लगता है।
        वह समान रूप से सभी का भरण पोषण करता है, वही अविनाशी सत्ता, जिसका कभी भी विनाश नहीं होता, युगों युगों से स्वचालित होकर सब की रक्षा कर रही है। 
       आंतरिक शांति हमें तभी प्राप्त हो सकती है, जब हम उसके परम आश्रय के भीतर चलते हैं, अपने हदय में  उस अविनाशी सत्ता 
को जिसने भी स्थान प्रदान किया, फिर उस परमात्मा के द्वारा वह निमित्त बन जाता है, और फिर उसके द्वारा वहीं घटता है ,जो वह चाहता है, हम सभी एक निमित्त हैं, कौन कब, कहां ,क्या भूमिका निभायेगा, वह तय करने 
वाला भी है, और प्रेरणा प्रदान करने वाला भी। 
     क्या कारण है?  हम चाह कर भी वह नहीं कर सकते जो हम चाहते हैं, हम वही करते हैं जो वह चाहता है, यह बहुत ही सूक्ष्म भेद है,
कुछ तो ऐसा अवश्य है, जो हम सभी की समझ के बाहर है। 
      हम जन्म लेते हैं, एक दिन मृत्यु को प्राप्त होते हैं, मगर इन सब के मध्य का जो जीवनकाल है, वह हमारा अपना है, हम उसे किस प्रकार गुजारते हैं, इस पर ही हमारे भविष्य की नींव है। 
      बुद्धिमानी पूर्वक जगत को हम कैसे जिये,
जब हम यह कला जान लेते हैं, तो हमारे बहुत सारे संशय स्वयं चिन्ह भिन्न हो जाते हैं।
       कोई भी कर्म एक दिन में पूर्ण नहीं होता, एक लंबी प्रक्रिया होती है, उसके उपरांत ही कुछ घटता है, उसके आरंभिक बीज तो हमारे अवचेतन मन में पहले से ही पढ़ चुके होते हैं, जैसे-जैसे हमारी आंतरिक चेतना जागृत होती है, हमें भीतर से आंतरिक शांति का अनुभव होने लगता है। 
       भौतिक संसाधनों का कब, कैसा , कहां क्या उपयोग करना है, भावनात्मक रूप से कब हमें प्रभावित होना है? यह हमारी समझ में आने लगता है, और यह समझ में आ जाना भी उनकी कृपा का ही एक रूप है, जिसे जितने सही रूप में हम समझते जाते हैं, उतना ही हमारा जीवन आसान होने लगता है, जीवन की जो भी गांठे हैं, वह सुलझने  लगती है, धीरे-धीरे हम महाप्रयाण की ओर बढ़ने लगते हैं।
     शनै- शनै हम परमात्मा की कृपा को जीवन में अनुभव करने लगते हैं, उसकी कृपाल के हम पात्र बन जाते हैं, फिर वह जो भी भूमिका हमें प्रदान करें। 
विशेष:- हम सभी उसी के परम आश्रय में है,
           उसकी कृपा के बिना जीवन में कुछ घटता ही नहीं, बस हम उसकी कृपा के पात्र बने रहे, बस यही विनय हम करते रहे, फिर जो भी होगा, वह उसकी कृपा से ही घटेगा।
आपका अपना 
सुनील शर्मा, 
जय भारत 
जय हिंद, 
वंदे मातरम।



प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
आप सभी का दिन मंगलमय हो, विगत 2 से 3 दिन पूर्व  की स्थानीय घटना, जो की इंदौर की है।
     यहां एक घटनाक्रम में निगम कर्मियों द्वारा एक अभियान चलाया जा रहा था, जो की संपत्ति कर की वसूली से संबंधित था।
       इंदौर की राजनीति यहां के मुखर राजनेताओं का एक नया नेतृत्व तैयार कर रही है, कतिपय तत्वों को राजनेताओं की मुखरता रास नहीं आती है, जबकि राजनेताओं को, चाहे वह किसी भी दल के प्रतिनिधि क्यों ना हो?   वे जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि होते हैं, इसलिए उनकी बात अवश्य ही सुनी जानी चाहिये, साथ ही निगम कर्मियों को भी चाहिये वह अपनी अभद्र भाषा पर लगाम लगाये, यह हमारे इंदौर शहर की परंपरा नहीं है, मामला चाहे जो भी हो, पर  स्वस्थ संवाद ही इसका समाधान है।
     निगम कर्मियों व राजनेता के बीच जो टकराव उत्पन्न हुआ, बहुत बेहद दुखद है, इसकी कड़ी शब्दों में निंदा की जाना चाहिये,
इसका मुख्य कारण यह है, राजनेता किसी भी दल से हो, आखिरकार वे जनता द्वारा चुने गये
प्रतिनिधि होते हैं, उनकी बात को निश्चित  ही सुना जाना चाहिये, एक प्रबुद्ध नागरिक होने के नाते हमारी भी यह जवाबदारी बनती है, 
इस प्रकार के घटनाक्रम पर हम मुखर होकर बोले। 
    संवाद ही इसका एकमात्र हल होना चाहिये, निगम कर्मियों, राजनेताओं से निवेदन है, इससे हमारे इंदौर शहर की स्वस्थ परंपरा को भी ठेस पहुंचती है, हमारा इंदौर शहर राजनीतिक नेतृत्व की इच्छा शक्ति, निगम कर्मियों  और जनता के सहयोग से ही स्वच्छता में पहले पायदान पर बना रहा है, इस बात का उल्लेख में इसलिए कर रहा हूं, इंदौर शहर चेतना के तौर पर एक जीवंत शहर है,
            मां  अहिल्या की पावन नगरी इंदौर, 
यहां के राजनेता व नागरिक, दोनों ही जागरुक है, व शहर हित में हमेशा सजग रहते हैं।
       इस घटनाक्रम में गलती किसकी है, यह तो पूर्ण तहकीकात का विषय है, मगर यह घटनाक्रम हमारे शहर के मिजाज से मेल नहीं खाता, यहां हमेशा समन्वय की परंपरा रही है।
        राजनेताओं पर दुर्भावना पूर्ण अभद्र व्यवहार की निंदा समवेत स्वर में की जानी चाहिये, तभी हम एक स्वस्थ राजनीतिक नेतृत्व को जन्म दे सकते हैं, पक्ष या विपक्ष की इसमें कोई बात नहीं, जनता द्वारा चुने  प्रतिनिधियों से ही जब इस प्रकार से व्यवहार किया जा रहा है , तब इंदौर के रहवासियों का भी फर्ज है, वह राजनेताओं के साथ खड़ा हो,
अन्यथा   कल से कौन व्यक्ति राजनीति में आना चाहेगा, वह अपने परिवार को छोड़कर 
दिन रात समाज की उन्नति के बारे में सोचता है, कार्य करता है, अपने परिवार को क्षति पहुंचा कर कौन व्यक्ति फिर राजनीति में आयेगा।
     मुझे पूर्ण विश्वास है, इस सारे मामले में जन प्रतिनिधि , जनता व निगम कर्मियों के बीच स्वस्थ संवाद द्वारा इसका हल निकाला जाना चाहिये, किसी भी कदम को उठाने से पहले तीनों ही पक्षों के बीच में एक समन्वय बने, ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटना की पुनरावृत्ति ना हो, इस सारे घटनाक्रम में जनता भी एक पक्ष है, क्योंकि वह भी जब किसी राजनेता को चुनती है, तो वह उसकी सक्रियता के कारण ही चुनती है, जब जनता ने उन्हें अपना वोट देकर सशक्त बनाया है, तो निगम कर्मियों का भी यह दायित्व बनता है, राजनीतिक नेतृत्व व जनता दोनों  ही पक्षों कोअनदेखा न करें।
     तीनों ही पक्ष मिल-बैठकर इसे सुलझाये,
यही हमारे इंदौर शहर की गरिमा के अनुरूप
भी होगा।
     निष्पक्ष नजरिये  से सभी पक्षों को बैठकर इस मामले को सुलझाना चाहिये,
   एक जागरूक व प्रबुद्ध नागरिक होने के नाते मैंने यह प्रतिक्रिया दी है, अगर मेरी भाषा 
से किसी को कोई ठेस पहुंची हो, तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी भी हूं, पर पुनः  निवेदन है, मां अहिल्या की पावन नगरी का यह मिजाज नहीं है। यहां संस्कृति व समन्वय की एक सशक्त विचारधारा है, जो कायम रहना चाहिये।

आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद 
वंदे मातरम।

प्रिय पाठक गण,
    सागर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
     प्रवाह की इस मंगल में यात्रा में आप सभी का स्वागत है, हम सभी किसी न किसी रूप में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, जिस समय हमारा जन्म होता है, हम नहीं जानते कहां पर होगा?
मृत्यु कब होगी, यह भी हम नहीं जानते ?
       हम जिस भी जगह जन्म लेते हैं, जिस परिवार में, हमारा प्रथम उत्तरदायित्व उस परिवार के प्रति है, फिर जहां हम पले-बढ़े, उसे जन्मभूमि की बेहतरी के लिये हम क्या कर सकते हैं?
       किस प्रकार से सामाजिक वातावरण में हम समरसता का संचार कर सकते हैं, यह दिशाबोध हमें होना आवश्यक है।
       जननी, जन्मभूमि, इन दोनों का ही ऋण हम चाह कर भी नहीं उतार सकते।
     हम कितना भी कर ले, माता-पिता व जन्मभूमि के ऋण से हम कभी मुक्त नहीं हो 
सकते।
      हमें अपने कर्म से कुल का गौरव बढ़ाना चाहिये, परिवार की मान मर्यादा का हमें ख्याल रखना चाहिये, परिवार की मान मर्यादा का मान-सम्मान , वह किस प्रकार के हमारे कर्म द्वारा समाज में कुल का मान बढ़े।
         यह हमारा प्रयास होना चाहिये, नित्य-निरंतर हमारे प्रयास द्वारा किस प्रकार से कुल की ख्याति में अभिवृद्धि हो, यही प्रयास हमें कर देना चाहिये।
     रिश्ते कुछ प्रकृति से हमें प्राप्त होते है, जैसे माता-पिता, भाई, बहनें वह अन्य जोभ  परिवार में रिश्ते हैं।
    कुछ हम स्वयं चुनते हैं, हम अपनी ओर से सदैव ही प्रयास करें, जो भी रिश्ते हम स्वयं 
अपनी मर्जी से चुनते है, उनमें हम पारदर्शिता पूर्ण व्यवहार को प्राथमिकता दे, छल- कपट से दूर रहे, तभी हम मानवीय रिश्तों की खुशबू को बरकरार रख सकते हैं। 
      जहां पर निश्छल भाव होगा, वहां पर स्वमेव ही परमात्मा की उपस्थिति होगी, नित्य प्रति मंगल की हम कामना करते रहे, हमारे कर्म की दिशा भी वही हो।
          हमारी संस्कृति की मूल ताकत जो है,
वह है ,इसकी मानवीय संवेदना, जो भी मानवीय संवेदनाये है, वे ही हमें मनुष्य बनाती 
 है, मानव बनाती है।
         इस प्रकार हम अपने जीवन को परिवार वह समाज के लिए जिये, सामाजिक सद्भाव को प्राथमिकता हमेशा दें, निरंतर चेतनायुक्त रहे। 
       उसे परमात्मा की असीम अनुकंपा को सदैव अपनायें, उसे धन्यवाद प्रेषित करें। 
        अहो भाव से वंदना करें, अपने कर्तव्यों को ईमानदारी पूर्वक निभाये।
      शेष परमात्मा स्वयं देखेंगे, इस सुंदर भाव के साथ हम अपना जीवन उल्लासपूर्वक उसकी कृपा में व्यतीत करें, हम सभी पर, आप सभी पर ईश्वर की अनुकंपा सदैव रहे।
          नीर-क्षीर, विवेक को अपने जीवन में
स्थान दे, अपने जीवन की डोर को उस ईश्वर के हाथों में सौंप दे, फिर वह कल्याण ही करेंगे।
      एक निश्चित कालखंड हम सभी को प्राप्त हुआ है, उसका सदुपयोग करें, हम किस प्रकार से उसे व्यतीत करते हैं, वही हमारे भविष्य का निर्माण करती है, वर्तमान में रहे,
रिश्तों की नाजुक डोर को संभाले रखें, समाज में अपने अच्छे कर्मों द्वारा हम पूजित होते हैं,
स्वकर्म हमारा जो भी है, उसे पुर्ण ईमानदारी मानदारी से हम करें , साथ ही औरों को भी जो हमारे आसपास है, इसकी प्रेरणा प्रदान करें। 
विशेष:- समाज में हम जो भी दे रहे हैं, वही हमें प्राप्त होता है, हम अगर अशांति दे रहे हैं, तो हमें बदले में अशांति ही प्राप्त होगी, अगर हम समरसता,शांति सद्भाव प्रदान कर रहे हैं, तो हमें बदले में वही प्राप्त होगी, शांत चित्त होकर हम चीजों को समझें, जीवन एक निरंतर चलने वाली लंबी प्रक्रिया है, जीवन जटिल होता नहीं, बहुत सरल होता हैं, अहो भाव से उसे जिसमें, परमात्मा को धन्यवाद दें, 
इतना सुंदर जीवन उसने हमें प्रदान किया।





प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
प्रवाह की इस मंगलमय यात्रा में आप सभी का हृदय से स्वागत।
       हम सभी आपस में एक अदृश्य सत्ता द्वारा संचालित है, जो हमें नजर नहीं आती, 
मगर वही सत्ता सभी का संचालन कर रही है,
हम अपने-अपने अहंकार के कारण उस सूक्ष्म सत्ता को देख नहीं पाते।
     मगर हमारे तत्व वेत्ता , मनीषी,ऋषि व शास्त्र मर्मज्ञ जो हमारे पूर्वज भी थे, वे इस सूक्ष्म विज्ञान से परीचित थे, वे अपनी सीमा- रेखा का उल्लंघन कभी नहीं करते थे, उनके आचरण की जो दृढ़ता थी, वही उनके सशक्त व्यक्तित्व को परिभाषित करती थी, हम सभी उसी विराट के अंश है, मगर माया का जाल इतना प्रबल होता है, हम चाह कर भी उसे काट नहीं सकते, यह संपूर्ण ब्रह्मांड उसी परम सत्ता द्वारा संचालित है। 
        यह सरकार व निराकार दोनों ही रुप में है, यह साकार रूप से हम सभी में विद्यमान है, वह अदृश्य रूप में भी हम सब में विराजमान हैं।
         उसकी कृपा हम सभी पर समान है, मगर हमारी विभिन्न देशों में जो भेद दृष्टि है,
वह हमें उसे व्यापकता का बोध नहीं होने देती,
जैसे दूध में भी घी विद्यमान है, पर एक प्रक्रिया प्राप्त होने के बाद ही हम उसे प्राप्त कर सकते हैं, स्वर्ण एक धातु है , मगर विभिन्न विभिन्न आभूषण बनने पर कहीं हमसे हार, कहीं अंगूठी, कहीं पर नथ, कुंडल, मंगलसूत्र 
इस प्रकार से जी आभूषण के रूप में हम उसे ढाल देते हैं, हम उसी नाम से पुकारते हैं।
         वस्तुत:  वह सभी स्वर्ण के ही विभिन्न रूप है।
       आंतरिक भाव गहरा अगर हम परमात्मा से जोड़ सके तो हमें यह समझ में आने लगेगा। 
    नारी शक्ति में वह स्नेह, वात्सल्य, करुणा, ममता, सद्भाव के रूप में व्याप्त होता है।
     इसीलिए हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथ नारी शक्ति
को प्रथम स्थान देते हैं।
        नारी का मूल स्वभाव समर्पण है, वह जिसे भी हृदय से चाहती है, पति, परिवार व बेटे -बहू व परिवार के सदस्य, उनका वह अहित नहीं होने देती। 
         नारी को ईश्वर ने ममता व वात्सल्य यह दो गुण विशेष प्रदान किये हैं।
      वह समतापूर्वक परिवार में सभी का ध्यान रखती है, बदले में उसे मात्र परिजनों के स्नेह व सम्मान की आकांक्षा होती है।
     तो परमपिता ने जो इस दृश्य रूप में हमें दिया है, हमारा आदर्श संसार या शक्ति जिसे हम सूक्ष्म रूप भी कह सकते हैं, वह स्थूल से भी शक्तिशाली है। 
       उस पराशक्ति को हृदय से नमन, वह सभी का रक्षण करती है, हमारे भीतर के मनोभाव जितने शुद्ध होते जायेंगे, उतना ही हम उसके करीब होते जायेंगे।
        उसकी कृपा हम सभी पर समान रूप से बरस रही है, मगर जिस प्रकार बिजली हमारे घर में मौजूद तो होती है, पर वह माध्यम  कहीं पंखे में ,कहीं अन्य उपकरणों में, बल्ब में स्विच के माध्यम से पहुंचती है।
      इस प्रकार सद्गुरु या ग्रंथ के माध्यम से, यह हमारी वैचारिक परिशुद्धता के माध्यम से 
हम धीरे-धीरे अपने अनुभव के आधार पर 
जीवन में परिपक्वता को प्राप्त करते हैं, जब तक वह ऊर्जा सकारात्मक प्रवाह का रूप नहीं लेती, तब तक हम अपने स्वरूप को
जान नहीं सकते। 
         इस संपूर्ण ब्रह्मांड में ऊर्जा ही है जो अपने मूल स्वरूप में विद्यमान है, विभिन्न व्यक्तियों में
ऊर्जा अलग-अलग प्रकार की होती है, विभिन्न व्यक्तित्वों व ऊर्जा के बीच हम अपना जीवन किस प्रकार व्यतीत करते हैं।
     हमारे जीवन काल में अलग-अलग समय- चक्र से हम गुजरते हैं , उसे समय चक्र में हमने किस प्रकार बुद्धिमत्ता पूर्वक अपना कार्य किया, उसी के परिणाम हमारे सामने आते है।
       जो भी निर्णय हम जीवन में करते हैं, वह तात्कालिक परिस्थिति , हमारे दीर्घकालिक अनुभव व समयानुकूल क्या अधिक आवश्यक है, इन तीन सूत्रों पर आधारित अवश्य होना चाहिये।
      हमें अगर व्यावहारिक जगत में सफल होना है, तो इन सूत्रों को हमें ध्यान रखना होगा।
     हम अपनी ओर से जीवन में दो प्रकार के लक्ष्यों  को प्राथमिकता दें, एक तात्कालिक वह दूसरे दीर्घकालिक, कहीं निर्णय हमें परिस्थिति के अनुसार तत्काल भी लेने पडते हैं, वह कहीं निर्णय दीर्घकालिक रणनीति पर आधारित होते हैं।
विशेष:- हम सभी का जीवन अपने-अपने प्रयासों का ही परिणाम है, हमने समय अनुकूल क्या निर्णय किये, तात्कालिक व दीर्घकालिक रणनीति का कितनी सुंदरता से समावेश किया, इस पर आपके जीवन की आर्थिक वह मानसिक समृद्धि निर्भर है, केवल आर्थिक या केवल मानसिक, दोनों समृद्धि अति महत्वपूर्ण है, मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होने पर हमारा शरीर अच्छा होगा व आर्थिक समृद्धि होने पर हम अपना जीवन यापन परिवार का जीवन यापन ठीक से कर सकेंगे।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद 
वंदे मातरम

प्रिय पाठक गण,
    सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
  प्रवाह की इस मंगलमय यात्रा में आप सभी का स्वागत है।
   हम सभी की जिंदगी एक सफर है, यात्रा है,
इसके कई पड़ाव है, हम अपने जीवन के सब पड़ावो को कितनी खूबसूरती से पार करते हैं,
यही सबसे महत्वपूर्ण है। 
        जीवन के इस सफर में हमेशा हमारे सामने कई प्रकार के मोड़ आते हैं, उनका हम किस प्रकार खूबसूरती से सामना करते हैं। 
         कई प्रकार के उतार व चढ़ाव हमारे सामने आते हैं, कितनी बुद्धिमत्ता पूर्वक व कुशलता से हम उन्हें पार कर पाते हैं, यही हमारे जीवन यात्रा या सफर को एक आनंद में परिवर्तित कर देती है, हम सभी का जीवन कई प्रकार के रीति-रिवाजों  से बंधा हआ है,
कहीं रीति रिवाज अच्छे हैं, वह कुछ में खामियां भी है, हम अपने जीवन को कितना बेहतर बना सकते हैं, यहीं से हमारे जीवन का असली संघर्ष शुरू होता है, जीवन में अपने मूल्यों की प्रतिबद्धता अवश्य बनाए रखिये,
यही आपको अपने जीवन में शीर्ष पर पहुंचा सकती है, अन्य कोई उपाय है ही नहीं।
       हमें वास्तविकता व भ्रम  दोनों में अंतर
को समझना चाहिये, जीवन का उद्देश्य क्या हो?   किस प्रकार से हम आगे बढ़े वह साथ ही हमारे साथी गणों को भी प्रेरित करें, अगर आप अपनी जगह सही है, तो यह प्रकृति या सृष्टि आपकी मदद अवश्य करती है। 
          आत्मविश्वास से भरपूर रहे, अपने जीवन में कुछ अच्छे लक्ष्य चुने वह उन पर पूर्ण समर्पण भाव से कार्य करें, अगर आप अपने लक्ष्य के प्रति पुर्ण ईमानदारी हैं, तो यह पूरा ब्रह्मांड आपकी मदद को तत्पर है, लक्ष्य पर दृष्टि बनाये रखें, अपने लक्ष्यों को सदैव अपने सामने रखें, आपके जो भी लक्ष्य है, वह आपकी ताकत है, कभी-कभी जीवन में हमें पराजय का भी सामना करना पड़ता है, उन्हें अपने अनुभव के रूप में ले, पुनः प्रयास करें,
निरंतर प्रयास  ही आपको सफलता की और ले जाएंगे, बगैर किसी भी लक्ष्य के जीवन को जीना उसे परमपिता के द्वारा दिए गये इस जीवन का अपमान है।
       हमेशा लक्ष्यज्ञअच्छे रखें, विचार पूर्वक उनका निर्धारण करें वह उस पर चलते रहे ,
आपकी अपने लक्ष्य के प्रति निरंतरता ही आपके लक्ष्य तक पहुंचा देगी। 
    जो भी लक्ष्य आप ले, अपनी संपूर्ण ईमानदारी से उसे निभाने की कोशिश करें, कामयाबी आपकी राह देख रही है।
    कुछ महत्वपूर्ण सूत्र जीवन के यह है, जिस घर या परिवार में आप रहते हैं, अपने तमाम वैचारिक के मत-मतांतर के बाद भी परिवार को जोड़े रखने का पूर्ण प्रयास करें, परिवार के सामूहिक हित को सदैव आगे रखें। 
      आपकी सबसे पहले जवाब देही उसे घर के प्रति है, जहां पर आप स्वयं रहते हैं, उसके बाद बारी आती है, सामाजिक सपर्कों की, सामाजिक संपर्क सदैव बनाये रखें, नित्य नियम पूर्वक अपने सभी कार्यों को करें। 
      जीवन में चुनौतियों का सामना अवश्य करें, वह चुनौतियां ही आपके जीवन में निखार लाती है, और आपके उज्जवल भविष्य की राह भी  तय करती है। हमेशा सजग अवश्य रहे, सजग होने पर ही हम किसी भी कार्य को अंजाम दे सकते हैं।
       जीवन की इस राह में सबसे पहले साथी आप स्वयं है, दूसरा कोई भी नहीं। 
       जो भी लक्ष्य आप ले, चाहे वह छोटा हो या बड़ा हो, उसे पूरी ईमानदारी पूर्वक निभाये
      हमेशा सजग व चौकस रहे, पारदर्शिता संबंधों में रखें, पारदर्शिता अगर होगी तो ही आप सफल होंगे, जितनी पारदर्शिता आपकी नीति में होगी, परिणाम भी उतने ही बेहतर प्राप्त होंगे, जीवन में स्वप्न अवश्य देखें, उन स्प्नों पर पूर्ण ईमानदारी से कार्य करें, आप देखेंगे, धीरे-धीरे ही सही, बदलाव तो आता ही है। 
       कभी भी आपने जो लक्ष्य चुना है, इसकी अनदेखी न करें, जो भी आप सोचते हैं, भीतर से जो आवाज आती है, उसे पर कार्य करें। 
विशेष:- हम सभी को उस परमपिता परमात्मा ने एक सा समय दिया है, बस हम उसे क्रियान्वित किस प्रकार करते हैं, अपने समय को कहां लगाते हैं, यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात है, आर्थिक व मानसिक दोनों ही संपन्नता जरूरी है, अपने विभिन्न प्रयासों को कभी न रोके, क्या होगा ,हमें नहीं मालूम, 
पर निरंतर प्रयास से कुछ तो परिणाम आता ही है।



प्रिय पाठक गण, 
      सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
    प्रवाह की इस मंगलमय अद्भुत यात्रा में
आप सभी का स्वागत है, दीपावली पर्व की शुरुआत हो चुकी है, यह हमारा भारत देश है,
जहां पर हमारी संस्कृति का ताना-बाना ही
कुछ इस प्रकार से गूंथा गया है, कि हमें हर माह में कुछ न कुछ त्यौहार अवश्य मिलेंगे, इसके पीछे जो भी हमारे मनीषी ,ऋषि विचारक हए, उनका मुख्य उद्देश्य यही था,
हम जीवन को उत्साहपूर्वक, आनंद पूर्वक जिसमें, उसे ऊर्जा को जो हमें परम पिता से,
परमेश्वर से प्राप्त हुई है, नित्य प्रति उन त्योहारों व उत्सव के माध्यम से हम पुनः सृजित करते रहें।
       इसी क्रम में दीपावली का यह अनूठा दीपों से सजा पर्व हम मनाने जा रहे हैं।
    इसकी शुरुआत धनतेरस से होने जा रही है, फिर रूप चतुर्दशी, लक्ष्मी पूजन, गोवर्धन पूजा वह इस पर्व है जो अंतिम दिवस है, वह भाई -दूज के रूप में मनाया जाता हैं,
     इस प्रकार यह पांच दिवसीय पर्व संपूर्ण 
भारतवर्ष में उत्साह से मनाया जाता है, यह 
पर्व अंधकार पर प्रकाश की जीत का पर्व भी है।
लक्ष्मी पूजन अमावस्या के दिन होता है, जिस समय चंद्रमा क्षीण होता है, मगर हम इतने सारे दीपक लगाकर उस अंधकार को दूर कर देते हैं, इस प्रकार से यह पर्व हमें अपने मन के
अंधकार प्रकाश की विजय को बताता है।
      धनतेरस से शुरु हुआ यह पर्व हमें धन की महत्ता को बताता है, धन केवल रुपया पैसा ही नहीं, हमारा स्वास्थ्य भी हमारा धन है, इस दिन आयुर्वेद के जनक धन्वंतरी भगवान के  पूजन की परंपरा भी है।
      फिर आती हैं रूप चौदस, इस दिन उबटन लगाकर सभी अपने रूप को निखारते हैं, फिर आता है मुख्य दिन, लक्ष्मी पूजन का दिवस, 
इस दिन हम सभी अपनी संस्कृति व परंपरा अनुसार माता लक्ष्मी का पूजन करते हैं, 
      इसके उपरांत गोवर्धन पूजा आती है, 
यह देश अभी भी कृषि प्रधान देश है, तो इसलिए गौ माता व बैलों की की पूजा की जाती है, आज भी गांव में बड़े उत्साह से उन्हें सजाया व संवारा जाता है।
     फिर अंतिम दिवस हम भाई दूज के रूप में
इस मंगलमय त्यौहार की पूर्णाहुति करते हैं,
इस दिन बहनें अपने भाइयों के जीवन की मंगल कामना करते हुए उन्हें अपने घर भोजन हेतु आमंत्रित करती है, स्पीकर भाई वह बहन के स्नेह वह सद्भाव से इस मंगलमयी में त्यौहार का समापन होता है।
   हमारी भारतीय संस्कृति तीज त्योहारों के माध्यम से हमें ऊर्जा प्रदान करती है, यही इन त्योहारों का  मुख्य उद्देश्य है, नित्य उल्लास से हम अपने जीवन को जिये, हमारी संस्कृति हमें यही संदेश प्रदान करती है। 
  आप सभी को दीपावली पर्व के इस पांच दिवसीय मंगलमयी पर्व की अनंत हार्दिक शुभकामनाएं,
  आइये ,हम हमारी इस संस्कृति पर गर्व करें,
जिसने हमें उल्लास पूर्वक जीना सिखाया। 
पुनः आप सभी को दीपावली पर्व की अनंत अनंत हार्दिक शभकामनाएं।
विशेष:- दीपावली का पर्व मानो हमें यह संदेश प्रदान करता है, अंधकार कितना भी घना हो, 
प्रकाश की किरणों से हम उसे दूर कर सकते है, हमारे अच्छे सद्विचार भी हमारे लिए प्रकाश का ही कार्य करते हैं, शुभ संकल्प करें, और उसे पर दृढ़ता पूर्व अमल करें, इन्हीं मंगलमयी व शुभ भावों के साथ आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत, 
जय हिंद, 
वंदे मातरम।