प्रिय पाठक वृंद,
सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
मेरी यह वैचारिक प्रवाह यात्रा आपको कैसी लग रही है, कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया अवश्य दें।
समाज का निर्माण हम सभी से मिलकर होता है, इसीलिए समाज निर्माण में हम सभी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदारी अवश्य होती है।
अब सवाल यह है कि हम जैसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं, उसके प्रति हम सब स्वयं कितने सजग हैं, क्योंकि हमारी सजगता व समाज के प्रति हमारी सही जवाबदेह ही एक स्वस्थ समाज के निर्माण में सहायक होगी।
जिस देश का समाज स्वस्थ होगा, उन्नति शील विचारों से भरपूर होगा, समाज के सभी वर्ग समाज के हित में कार्य करेंगे, तभी हम समाज का निर्माण कर सकेंगे।
हर काल में नई चुनौती समाज के सामने आती है, उनमें से सबसे महत्वपूर्ण चुनौती पुरानी गलत मान्यताओं को अस्वीकार करके  सही मान्यताओं ,जो तात्कालिक परिवेश में अधिक उपयुक्त जान पड़ती है, उन्हें अपनाने की है।
सभी पुरानी मान्यताएं गलत नहीं होती है वह मान्यता जो समय अनुकूल हो, तात्कालिक परिवेश की आवश्यकता को समझ कर नई व पुरानी दोनों में से जो समाज हित में उपयोगी हो उन्हें स्वीकार्यता प्रदान करें।
बदलाव प्रकृति का नियम है, और अच्छे बदलाव को सामाजिक व्यवस्था का अंग बनाना ही समाज का निर्माण करना है।
हमें समाज के निर्माण के लिए वैचारिक संकीर्णता को त्यागना होगा, तभी समाज का उत्थान व निर्माण संभव है।
समाज के सभी वर्ग एक दूसरे के पूरक व सहायक बने, ना कि उनमें वैचारिक संघर्ष हो, कई शताब्दियों से चली आ रही खोखली परंपराओं में से सही परंपरा को जीवित रखने और गलत परंपराओं को ध्वस्त करने का भी हम में साहस होना चाहिए, तभी समाज का निर्माण संभव है।
जब हम स्वयं  पूर्ण श्रद्धा से इसके बदलाव के लिए स्वयं भी तैयार होंगे व औरों को भी इसके लिए प्रेरित कर सकेंगे, सदैव गतिशील , विचारशील व प्रयोग धर्मी समाज ही आगे बढ़ते हैं, आइए प्रण करें समाज के निर्माण में हमारी भूमिका हम स्वयं चुने व इस का निर्वहन करें, किस प्रकार से एक बेहतर समाज का निर्माण किया जा सकता है, उस पर विचार करें, मंथन करें, पहल तो करें ,राहे स्वयं बन जाएगी।
विशेष:-समाज का निर्माण समाज के सभी वर्गों की जवाबदारी है, यह सब पर निर्भर है कि वह कैसे अपनी सामाजिक जवाबदेही का समुचित उत्तरदायित्व वहन करते हैं। एक बेहतर समाज का निर्माण तभी संभव है जब सभी वर्ग समाज हित में चिंतन करें व उस में सहभागी  बने।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय हिंद
जय भारत।
प्रिय पाठक वृंद,
सादर नमन ,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
हम सभी की जिंदगी एक सफर है, यात्रा है, हम इस सफर को किस प्रकार तय करते हैं, यह हमारी सोच पर निर्भर है, अगर हम सकारात्मक रुख के साथ अपना सफर करते रहे तो यह सफर खुशनुमा होगा व अगर हम नकारात्मक रूख के साथ सफर को करेंगे तो अंत दुखदाई होगा।
              हमारी जिंदगी के सफर में हम कई तरह  की परिस्थितियों का सामना करते हैं, कुछ अनुकूल होती है, कुछ प्रतिकूल होती है ,लेकिन हमारा सफर जारी रहता है जो  अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में अपना संतुलन बनाए रखता है वह अंततः अपनी जिंदगी  को खुशनुमा बना लेता है।
            जिंदगी के इस सफर में कई मुश्किल हालात भी बनते हैं, सभी प्रकार की विचारधारा वाले व्यक्तित्व हमारे जीवन में आते हैं,  कुछ व्यक्तित्व हमारे जीवन में गहरी छाप छोड़ जाते हैं इस प्रकार उतार चढ़ाव का सामना करते हुए हम अपने इस सफर को तय करते जाते हैं।
           सभी को ईश्वर ने कुछ न कुछ विशेष चीजें प्रदान की हे जो हम में हैं, वह किसी और में नहीं, हम अपने भीतर छिपी उस विशेष प्रतिभा को पहचाने विशिष्ट गुण पर अपना कार्य करे, वही आपकी जिंदगी के सफर के लिए सबसे अधिक उपयोगी सिद्ध होगा।
            जिंदगी के सफर में क्या उपयोगी है क्या अनु पयोगी है ,यह अवश्य जाने। जीवन में अपनी आलोचना से कभी न घबराए क्यों कि जो निष्क्रिय होगा उसकी तो आलोचना होगी नहीं जो सक्रिय होगा उसी की आलोचना होगी, आलोचना से यह तो सिंद्ध होता है कि हम अपने जीवन में सक्रिय है, सक्रियता ही आपके जीवन में परिणाम लाने वाली है।
        जिंदगी का सफर अनूठा सफर है, यहां आपका कोई हमसफ़र नहीं हमें अकेले ही यात्रा तय करना है जीवन में रंगों को भरना है। जीवन की विविधता ही इसे जीवंत  बनाती है, एकरसता जीवन के आनंद को खत्म करती है, प्रयोग करते रहें रचनाधर्मी बने।
          जीवन में कभी भी निराशा को न अपनाएं, इसमें चलते जाए कुछ अच्छा कुछ बुरा सब इसमें समाए, चलते रहें , इसी में सार है।
 
विशेष:-जिंदगी एक सफर है ,हमें यह तय तो करना ही होगा। जीवन खट्टे मीठे अच्छे बुरे सभी प्रकार के भाव इस सफर के दौरान आएंगे हम उस सभी का आनंद उठाए।
आप का अपना
सुनील शर्मा
जय हिंद जय भारत।

          
               

प्रिय पाठक वृंद,
सादर नमन,
सभी को मंगल प्रणाम, मेरी यह वैचारिक प्रवाह यात्रा आपको कैसी लग रही है ,कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया अवश्य दे।
             समाज का निर्माण हम सभी को मिलकर करना होता है। किसी भी समाज के निर्माण में वहां के नागरिकों की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदारी अवश्य होती हैं । सवाल यह है कि हम जैसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं ,उसके प्रति हम सब या स्वयं किसने सजग है, क्योंकि हमारी सजगता व समाज के प्रति हमारी सही जवाबदारी  ही एक स्वस्थ व उन्नत समाज के निर्माण में सहायक होगी।
                   जिस देश का समाज स्वस्थ होगा ,उन्नति शील विचारों से भरपूर होगा ,समाज के सभी वर्ग समाज के हित में कार्य करेंगे, तभी हम समाज का निर्माण कर सकेंगे।
                 हर काल में समाज के सामने नई चुनौती आती है, उनने से सबसे महत्वपूर्ण चुनौती को स्वीकार करें ,गलत मान्यताओं को अस्वीकार करके नई सही मान्यताओं जन्म दे, वह जो तात्कालिक सामाजिक परिवेश में अधिक उपयुक्त जान पड़ती है , वहीं मान्यताए  हमें अपनाना चाहिए। सभी पुरानी मान्यताए सही नहीं होती व सभी नई मान्यताए गलत नहीं होती, कौन सी मान्यता वर्तमान परिवेश में सही है उसे समझकर हम उसे अपनाए।
              हमें समयानुकूल व तात्कालिक परिवेश की आवश्यकताओं को समझकर नई व पुरानी धारणा  जो भी सही हो उसे अपनाने की आवश्यकता है, दोनों में जो समाज हित में उपयोगी हो उन्हें स्वीकार्यता  प्रदान करे।
          बदलाव प्रकृति का नियम है और अच्छे बदलाव को सामाजिकता का अंग बनाना ही समाज का निर्माण करना है, हमें समाज के निर्माण के लिए वैचारिक संकीर्णता  को त्यागना होगा, समाज के सभी वर्ग एक दूसरे के पूरक  बने न कि उनमें वैचारिक संघर्ष हो।
           सदियों से चली आ रही परंपरा में सही को स्वीकारने का साहस व गलत को नकारने साहस हम में होना चाहिए, सदियों से चली आ रही गलत परंपराओं को ध्वस्त करने का साहस भी ‌‌‌‌‌‌‌‌ हम में होना चाहिए ।
          जब तक हम स्वयं हृदय से बदलाव के लिए तैयार न होंगे तो औरों को भी इसके लिए प्रेरित न कर सकेंगे। सदैव गतिशील व विचारशील तथा प्रयोगधर्मी समाज ही आगे बढ़ते हैं, समाज के निर्माण में हमारी भूमिका को हम स्वयं चुने व उसका निर्वहन करें, तभी एक बेहतर समाज का निर्माण किया जा सकता है।
           किस प्रकार से एक बेहतर समाज का निर्माण किया जा सकता हे, उस पर विचार करें मंथन करें ,पहल करे,राहे तो स्वयं बन जायेगी।
        विशेष:-समाज का निर्माण समाज की सभी वर्गों की जवाबदारी हैं, यह हम सब पर निर्भर हे कि हम कैसे अपनी सामाजिक जवाब देविका समुचित उत्तरदायित्व वहन करते हैं। एक बेहतर समाज का निर्माण तभी संभव है जब सभी वर्ग समाज हित में चिंतन करें व उस में। सहभागी बने।
आपका अपना,
सुनील शर्मा,
जय हिंद ,जय भारत।


प्रिय पाठक गण,
सादर वंदन ,
आप सभी को मंगल प्रणम,
काफी दिनों के बाद फिर एक लेख लिख रहा हूं, जो हमेशा हमारे मन में एक प्रश्न के रूप में सदैव रहता है।
प्रतिकूल परिस्थितियों में हम शांत कैसे रहें, हम में से प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में यह परिस्थिति तो अवश्य आती है, जब हमें अपने जीवन में सब कुछ प्रतिकूल जान पड़ता है।
हमारे अपने भी विपरीत समय में हमारे विरुद्ध खड़े नजर आते हैं, धन की दृष्टि से भी जब समय पर हमे सहायता चाहिए, वह उपलब्ध नहीं होती, मानसिक संबल देने वाला कोई नजर नहीं आता, सभी बातें हमें प्रतिकूलतम प्रतीत होती हैं, तब इन परिस्थितियों में हमारा अशांत होना अस्वाभाविक भी नहीं है, परंतु इसी समय हमारे धैर्य की परीक्षा होती है।
जब हम धैर्य पूर्वक इन सभी परिस्थितियों में अपने आप को शांत चित्त रख पाते हैं, तब हम निश्चित ही उन परिस्थितियों से बाहर निकलने की सामर्थ्य भी रखते हैं। हम ध्यान रखेंगे तो अपने आप में सही दिशा बोध का ज्ञान होगा, सही दिशा बोध का ज्ञान होने पर व चिंतन करने पर हम स्वमेव परिस्थितियों का  सही आकलन कर उन परिस्थितियों से सबक सीख सकते हैं, उनका सामना कर सकते हैं।
यह समय बड़ा ही नाजुक समय है, कोरोना महामारी का प्रकोप चरम पर है। फिर भी यही मानवीय जीवन है, हम रुक नहीं सकते, अंग्रेजी में एक कहावत भी है,"शो मस्ट गो ऑन" , यानी कि जीवन चलता रहे, उसी लयबद्धता से  चलता रहे, जैसे जीवन में कुछ विपरीत घटा ही ना हो।
             जीवन में हमें कई सबक मिलते हैं, कई उतार-चढ़ाव, आशा निराशा के क्षणों से हम रूबरू होते हैं, पर हार नहीं मानते। प्रतिकूल से भी प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने पर भी हम अगर शांत चित्त रह कर उनका सामना कर पा रहे हैं तो यह उस ईश्वर की परम अनुकंपा ही है।
              यह सब उस परम शक्ति के अधीन है, प्रतिकूल परिस्थितियां हमें जीवन संघर्ष सिखाती है, जो प्रतिकूल परिस्थितियों में शांत रहना सीख जाता है, वह अपने जीवन संग्राम में विजेता बनता है।
              सवाल यह है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में हम कैसे शांत रहें, क्योंकि जैसे ही प्रतिकूल परिस्थितियों से किसी व्यक्ति का सामना होता है, सबसे पहले उसका मानसिक संतुलन बिगड़ता है, मानसिक संतुलन को स्थिर रखना सीखना चाहिए, प्रतिकूल परिस्थितियों से घबराए नहीं, वरन धैर्यपूर्वक उनका सामना करें, शांत चित्त रहने का प्रयास करें, अनुकूल परिस्थिति नहीं रही तो प्रतिकूल परिस्थिति भी सदैव नहीं रहेगी।
           जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियां तो हमारे जीवन निर्माण के लिए ही आती है, प्रतिकूल परिस्थिति होने पर भी जो हार नहीं मानते, उन स्थितियों में संघर्ष का रास्ता नहीं छोड़ते, वही अपने जीवन में कामयाबी का द्वार भी अपने सतत संघर्ष से पा ही लेते हैं।
          जीवन अनेक प्रकार की समस्याओं से भरा हुआ है, इस जीवन में अनुकूल प्रतिकूल दोने ही परिस्थितियां अनिवार्य रूप से आती ही है, बस हम उनका सामना कैसे करते हैं ,यह महत्वपूर्ण है। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सहज बने रहे, समय अनुकूल हो या प्रतिकूल, बदलता ही है। फिर जहां दृढ़ संकल्प बल हो तो प्रतिकूल परिस्थितियां भी जीवन में हमारे आगे बढ़ने का मार्ग ही प्रशस्त करती है।
                प्रतिकूल परिस्थितियों में मौन का आश्रय ले, मौन रहने का अभ्यास करें आधा घंटा या 1 घंटा  समस्त क्रिया, प्रतिक्रियाओं से मुक्त होकर भीतर की ओर विचरण करें, तब यह आपका आत्मबल बढ़ाने में सहायक होगी।
विशेष:-प्रतिकूल परिस्थितियों में मौन रहे, धैर्य रखें, समय के बीतने की  धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करें, अपने मन मस्तिष्क को सकारात्मक विचारों से परिपूर्ण रखें, समय अनुकूल हो या प्रतिकूल कोई भी समय सदा नहीं रहता, भीतर से खुश रहने का अभ्यास करें, प्रतिकूल परिस्थितियों को भी जीवन संघर्ष का अनिवार्य तत्व समझें, ईश्वर पर पूर्ण भरोसा रखें, आत्मबल बनाए रखें।
आपका अपना,
सुनील शर्मा
जय हिंद ,जय भारत।
प्रिय पाठक वृंद,
सादर नमन,
आप सभी सुधी पाठकों को मेरा ह्रदय से पुनः मंगल प्रणाम।
आइए, आज हम संवाद करते हैं, व्यक्तित्व निर्माण पर,
हर व्यक्ति में कुछ न कुछ विशिष्टता अवश्य होती है, किसी में प्रबंधन, किसी में दयालुता, किसी में संघर्ष की क्षमता, इस प्रकार किसी भी व्यक्ति की मौलिक जो भी विशेषता है, वह संपूर्ण रूप से निखर कर आए, यही मेरी नजर में व्यक्तित्व निर्माण है।
         आज जब प्रतिस्पर्धा चरम पर है, तब तो यह और भी आवश्यक है कि हम अनावश्यक विचारों से बचें, जो हमारे जीवन के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, उसका चयन करें।
    ‌  ‌‌‌‌  निश्चित ही परिवार, समाज, शिक्षक व सामाजिक परिवेश,स्वयं की प्रज्ञा यह सब इन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।
       अगर हमें वैश्विक शांति व खुशहाली का वातावरण बनाना है, तो हमें सभी क्षेत्रों में राजनीतिक, सहकारिता का नेतृत्व, अध्यापक, डॉक्टर, इंजीनियर व सामान्य वर्ग,
       सभी में एक मानवीय विचार हमें डालना होगा, और इसके लिए हमें एक वातावरण तैयार करना होगा, जहां पर केवल मानवीय मूल्यों की ही बात हो, उसी को मद्देनजर रखकर कार्य हो।
        सहयोग ही सफलता का मूल मंत्र है, न केवल मानवीय सहयोग, अपितु संपूर्ण ब्रह्मांड से सहयोग।
        पृथ्वी ,जल ,अग्नि ,वायु ,आकाश इन पांच तत्वों के सहयोग से यह हमारा मानव शरीर निर्मित हुआ है, तथा इसमें परम चेतना का जो अंश है उसी के कारण हम जीवित रहते हैं। कुछ हम प्रकृति से ले, तो बदले में उसे दे भी, हमारी सनातन संस्कृति में तो यह भाव शुरू से ही विद्यमान है।
      प्रकृति से हम जब ले रहे हैं, तब उसका संरक्षण भी इतना ही आवश्यक है। समाज से भी हम जो ले रहे हैं, पुनः समाज में उसका वितरण भी हो, यह सब बातें हमें संस्कार रूप में डालना चाहिए।
    जब बच्चों की उम्र छोटी होती है,तब हम किस प्रकार का वातावरण व परिवेश  प्रदान करते हैं, उस समय उनके मानस में अच्छी बातों की, मानवीयता, दयालुता, संवेदना, निडरता इन मानवीय गुणों  की हम उन में स्थापना कर सकते हैं, क्योंकि जो शैशव काल होता है, इस दौरान हम जैसा भी उन्हें सिखाते हैं, उनके अंतर्मन पर उसका गहरा प्रभाव होता है।
         व्यक्तित्व निर्माण के प्रयास हर काल में होते रहे हैं,  युग अनुरूप इसमें आवश्यक फेरबदल भी होना चाहिए।
       आज व्यक्तित्व निर्माण में इन पहलुओं को अवश्य जोड़ा जाना चाहिए।
(1) सहयोग:- सभी से प्रकृति, मानव व संपूर्ण ब्रह्मांड से जिसके हम छोटे से हिस्से हैं, हमें सहयोग करना चाहिए, वह सहयोग किस प्रकार का हो, जब हम उसी ब्रह्मांड के एक छोटे से हिस्से हैं, तो हमारा कोई भी कार्यकलाप ऐसा नहीं होना चाहिए जो उसके विरुद्ध हो।
(2) समर्पण:- लक्ष्य के प्रति संपूर्ण निष्ठा से समर्पण,यह गुण हमें व्यक्तित्व के अंदर प्रतिस्थापित करना होगा।
(3) ज्ञान व विज्ञान:- हमें ज्ञान विज्ञान दोनों का पूरक रूप में संतुलित विकास के लिए किस प्रकार प्रयोग करें, यह मनुष्य के व्यक्तित्व में डालना होगा।
(4) मानवीयता:- हमें नई पीढ़ी के ऐसे विश्व मानव तैयार करना होंगे, जो मानवीयता से ओत-प्रोत हो।
(5) नीतिगत नियमो का पालन:- नीतिगत नियमों का पालन अनिवार्य रूप से करें, जो हमारे लिए गलत है, वही नियम समान रूप से दूसरे के लिए भी लागू होता है, कोई भी कार्य नियम विरुद्ध न करें।
(6) वैश्विक आधार:- आज जब संपूर्ण विश्व एक दूसरे पर हर तरह  से आधारित है, तब हमें एक वैश्विक सभ्यता का निर्माण करना होगा व ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण हमें शिक्षा पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन करके ही करना होगा, जहां पर नैतिक व मानवीय आधार सबसे सर्वोपरि हो, ऐसी विश्व संरचना को हमें तैयार करना पड़ेगा।
(7) विविधता में एकता:- यह हमारी संस्कृति का मूल तत्व रहा है, अब समय आ गया है इसे संपूर्ण विश्व में पूर्ण ईमानदारी से लागू करने की और कार्य किया जाए।
       इन बातों को ध्यान में रखकर हमें आज के मानवीय व्यक्तित्व को तैयार करना चाहिए, ताकि आने वाले समय में हमें शांति भरा और सुकून भरा समाज देखने को मिले, इस समय सभी वैश्विक नेताओं का यह नैतिक दायित्व भी बनता है।
    हर एक व्यक्ति अपने आप में महत्वपूर्ण है, विशिष्ट है, यह अंतरबोध हमे उसे दिलाना होगा, इस प्रकार जब हम मानवीय चेतना को जागृत कर सके , तभी हम अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण कर सकेंगे व मानवीय संबंधों के बीच सेतु का कार्य कर सकेंगे, न कि विश्व के विध्वंस का।
अगर हम यह मानवीय चेतना इस सदी में विकसित कर सकें, तभी संपूर्ण विश्व कल्याण के पथ पर अग्रसर हो सकेगा।
इति शुभम भवतु, 
जय हिंद,
जय भारत।
आपका अपना
सुनील शर्मा।



प्रिय पाठक गण,
सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम, आशा करता हूं आप सभी को यह साहित्यिक यात्रा पसंद आ रही होगी, मैंने अपनी संपूर्ण कोशिश की है कि अपनी लेखनी से जीवन के सभी पहलुओं पर लिखू, उसी श्रृंखला में इस बार मेरा लेख प्रस्तुत है, जिसका शीर्षक है ,जीवन अमूल्य है।
              हमारा जीवन अमूल्य है, इसकी कीमत आंकी नहीं जा सकती, जीवन को हम किस प्रकार जीते हैं, यह हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता है, पर यह भी सत्य है कि हम स्वयं परिवार व समाज के बंधनों से जुड़े होते हैं।
             अपने प्रत्येक दायित्व को खुशी से स्वीकार करें, संस्था पूर्वक अपने प्रत्येक दायित्व का निर्वहन करें, हम में से प्रत्येक का जीवन एक यात्रा है, इसमें कई पड़ाव आते हैं,हम सभी अपने अपने जीवन में उन पड़ा वो का सामना करते हैं, उन सभी पड़ावों को हम कितनी खूबसूरती से पार करते हैं, यही हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है। हमारा जीवन एक बहती धारा की तरह होना चाहिए,  जो उस प्रवाह के संपर्क में आए, वह उस धारा का आनंद महसूस करें, हम अपने जीवन में चाहे जितनी चालाकियां कर ले, हम अपने जीवन में सहजता से उतनी ही दूर होते चले जाएंगे।
            याद रखें, जीवन में मानवीय मूल्यों से बढ़कर महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है, मानवीय मूल्य जीवन की सबसे महत्वपूर्ण धरोहर है, इन्हीं से हमारा जीवन आलोकित होता है, हमारा जीवन अमूल्य है, हमारा जीवन अमूल्य है, जीवन में संपूर्णता हासिल करना इतना आसान भी नहीं है, लेकिन फिर भी हमारा निरंतर प्रयास यही होना चाहिए, अपने लक्ष्य की और निरंतर चलते रहने और सतत कार्य करते रहने से ही हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं, पूर्ण समर्पण भाव से अपने प्रयासों को करते रहे, परिणाम आपके पक्ष में होंगे।
विशेष:-हमारा जीवन अमूल्य है, ईश्वर द्वारा प्रदान की गई अमूल्य निधि है, इसका प्रयोग सावधानी पूर्वक करें, संपूर्ण ईमानदारी व मनोयोग पूर्वक अपने जीवन को जिये, इसी में जीवन की सार्थकता है।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय हिंद,
जय भारत।
प्रिय पाठक गण,
सादर नमन,
            आप सभी को मंगल प्रणाम, आज से शारदीय नवरात्रि का आरंभ होने जा रहा है, देवी मां सभी के जीवन में समृद्धि प्रदान करें ,यही शुभकामना।
            किसी कारणवश यह लेख एक दिन बाद पोस्ट कर रहा हूं, हमारी संस्कृति में नारी को विशिष्ट स्थान प्रदान किया गया है, वह प्रथम पूज्य है, वैसे भी नारी कई मायनों में धन्य है। वह एक मां, एक कुशल गृहिणी, एक सास, एक भाभी, एक बहन, बुआ, मासी, बहू इस प्रकार के विभिन्न किरदारों को अपने भीतर कुशलतापूर्वक समाए हुए हैं।
           यह किसी भी नारी की आंतरिक शक्ति ही है कि वह इन विभिन्न किरदारों में आवश्यक तालमेल कर लेती है, वह किसी को भी शिकायत का कोई मौका नहीं देती, वह अपने विभिन्न दायित्व व रिश्तो का कुशलतापूर्वक समाज में निर्वहन करती है, वह भी बिना किसी स्वार्थ के, बस वह अपने आत्म सम्मान की आकांक्षा किए हुए होती है, उसे अपना आत्म सम्मान प्यारा होता है,ईश्वर ने नारी के हृदय में ममत्व  का भाव दिया है, तथा इसी भाव के सहारे वह सभी का परिपालन करती है, यही उसकी अद्भुत सामर्थ्य भी है, जो ईश्वर ने उसे प्रदान की है।
                 वह शक्ति स्वरूपा भी है, ममतामयी भी है, उसके विभिन्न स्वरूप है,इन विभिन्न स्वरूपों की हम नवरात्रि में आराधना करते हैं, नवरात्रि पर्व में दुष्टों की दुष्ट प्रवृत्तियों का विनाश हो, उनमें सद्बुद्धि का संचार हो, यही मंगल कामना।वर्तमान में संपूर्ण विश्व  कोरोना महामारी से  परेशान है, इस व्याधि से मां हमें पार लगाए, विश्व का दुख वे हरण कर ले, यही उनसे विनम्र प्रार्थना, या देवी सर्वभूतेषु, लक्ष्मी रूपेण संस्थिता, सा माम पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा।
 मां भगवती संपूर्ण विश्व का मंगल करें, जन-जन में सकारात्मकता का संचार हो, सज्जन संगठित हो, दुर्जनो का भी मां कल्याण करें, उनकी गलत प्रवृत्तियों को मां नष्ट करें, उनके चित्त में मंगल भावनाओं का प्रादुर्भाव हो।
              हम सभी के चित्तो में मां की आराधना का भाव आए, हमारी कल्याणकारी शक्ति को वे अपने आशीर्वाद से जागृत करें, हमारी आध्यात्मिक उन्नति हो, मानसिक रूप से हम सुदृढ़ हो, विश्व में शांति हो, विश्व का कल्याण हो, सभी में सुमति बड़े, आपसी सहयोग का वातावरण हो, और अनीति नष्ट हो, नीति पुष्ट हो। सकारात्मक शक्तियों का संवर्धन हो।
         विशेष:-शारदीय नवरात्रि सभी के जीवन में समृद्धि लेकर आए, विश्व का मंगल हो। नीति शिखर पर हो, अनीति का विध्वंस हो, इसी मंगल भाव के साथ आप सभी को पुनः प्रणाम नवरात्रि पर्व की मंगल शुभकामनाएं।
आपका अपना
सुनील शर्मा