प्रिय पाठक गण,
सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
प्रवाह किसी अद्भुत वैचारिक यात्रा में आप सभी का स्वागत है, आप सभी को हृदय से मंगल प्रणाम,
पुनः आप सभी को सादर नमन, प्रजातंत्र या जनतंत्र , यानी
जनता के लिये, जनता के द्वारा, जनता की भलाई के लिए चुना गया तंत्र।
इस पूरे तंत्र में जन का महत्व सबसे अधिक है, वह समय-समय पर जनता ने इसे अपने महत्वपूर्ण अभिमत द्वारा सिद्ध भी किया है।
हमारे राष्ट्रगान की प्रथम पंक्तियां भी इसी महत्वपूर्ण भाव को कहते हुए हमें एक राष्ट्र के रूप में बांधती है, हमें स्वत: ही इसे समझना होगा, हम जहां पर भी हैं, पूर्ण गरिमा के साथ उस पद,
जगह पर अपनी पूर्ण चेतना का उपयोग समाज -हित और राष्ट्रहित में किस प्रकार हो, इसके लिए सर्वप्रथम हमें स्वयं के कर्तव्य वह उत्तरदायित्व के प्रति भी सजग होना पड़ेगा, केवल आलोचना मात्र से इसका जवाब न देकर हमें अपने मूल कर्तव्य के प्रति भी सजग होना ही पड़ेगा, अगर हम कोई भी कदम, चाहे वह कितना ही छोटा ही क्यों ना हो, किसी और ले जाते हैं, उस और अगर हम सचेत नहीं है, तो हमें किसी को दोष देने का अधिकार भी नहीं है। पहले हम अपने कर्तव्य के प्रति सचेत हो, अगर हम ईमानदारी से अपने कर्तव्य को पूरा करते हैं, तो यह भी एक राष्ट्रभक्ति ही है, और अगर हम अपनी जो भी कर्तव्य है, उनके परिपालन में कोई त्रूटि करते हैं, तो इसके दोषी हम स्वयं है, कोई अन्य नहीं।
राष्ट्र ने हमें अधिकार तो दिये ही है, मगर इसके प्रति हमारे कर्तव्य भी है, वह जनतंत्र की, जनता की भूमिका इसमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण इसीलिये हैं, क्योंकि इसकी रचना संविधान में इस राष्ट्र के उत्थान हेतु जो शक्ति हमें संविधान में प्रदान की है,
उसका सदुपयोग तो हमें करना ही चाहिये, जहां पर इसका दुरुपयोग हो रहा है, वहां पर भी सतर्कता आवश्यक है।
तभी जनतंत्र शब्द की गरिमा वह इस राष्ट्र की गरिमा दोनों के साथ हम न्याय कर सकेंगे।
अगर कोई भी बात जो हमें ऐसी प्रतीत हो, जो समाज या राष्ट्र को विखंडित करती हो, तो यह भी जनता का दायित्व है, उसे पूर्ण शक्ति से नकारे, यही जनतंत्र की असली ताकत भी है।
हमारे राष्ट्रगान की प्रथम पंक्तियां भी इसी बात की और संकेत करती है, "जन गण मन अधिनायक जय है, भारत भाग्य विधाता" इतना स्पष्ट संदेश हमारे राष्ट्रगान ने हमें दिया है, तो हमें आंतरिक रूप से जागृत होना चाहिये, जहां पर भी हमारी आंतरिक चेतना इस बात के लिए समर्थन न दे, उसे सदैव जागृत रखें, आज भी जब राष्ट्रगान हमारे कानों में गूंजता है, तो हमारा सीना गर्व से, मस्तक भी गर्व से ऊंचा हो जाता है, जैसे ही हम राष्ट्र बोध से अपने को परिपूर्ण करते हैं, हमारी उस चेतना से , हमारे भीतर एक ऊर्जा का संचार होता है, और वही आंतरिक ऊर्जा हमें अपने कर्तव्य के प्रतिपादन के लिए प्रेरित करती है।
राष्ट्र के प्रति प्रेम -भाव , व जागरूकता दोनों ही आवश्यक है,
अत्यधिक जोश में हम कोई गलत निर्णय तो नहीं कर रहे, इसके
प्रति सदैव सचेत रहें, राष्ट्र प्रथम हैं, मगर इसका निर्माण तो जनतंत्र में जनता से ही हुआ है, तो जनता को भी अपने दायित्व को समझना होगा, जो भी राष्ट्रहित में हो उसका पूरजोर समर्थन करें,
जो भी गए थे हम राष्ट्र के हित में उचित नहीं लगती, उसका विरोध भी अवश्य करें, केवल तटस्थ रहने से कार्य नहीं चलेगा।
इस राष्ट्र की असली शक्ति स्वयं जानता है, जिसके द्वारा हम सत्ता को चलाने वाले, जो भी हमारा नेतृत्व कर रहे हैं, उनका चयन करते हैं।
राष्ट्र प्रेम से जो भी आंतरिक रूप से ओत-प्रोत है, वह इस राष्ट्र के संवर्धन में जो भी उचित लगे, उसका हदय से समर्थन करें,
साथ ही जहां पर भी आपको यह ज्ञात हो, कि आपके इस कदम से राष्ट्र की क्षति है, तो वह न उठाएं, विनम्रता पूर्वक प्रतिरोध भी
अवश्य करें, केवल मुक दर्शक बने रहकर अगर हम सब देखते हैं,
तो जागरूकता के अभाव में, जो इस राष्ट्र के प्रति हमारा मूल्य दायित्व भी है, उसका निर्वाह नहीं कर रहे हैं।
हमारी स्वतंत्रता हमें कहीं क्रांतिकारियों के बलिदान के बाद
प्राप्त हुई है, अतः एक राष्ट्र के नागरिक के रूप में, अगर हमारे अधिकार हैं ,तो कर्तव्य भी है।
अपने- आप से संवाद अवश्य करें, क्या हमारी भूमिका, जो चाहे बहुत छोटी क्यों ना हो? इस राष्ट्र के निर्माण में हमारी क्या भूमिका है? सर्वप्रथम हम जहां पर भी हैं, पूर्ण चेतना युक्त होकर हमारे कदम को स्वयं परखे, हमें देश ने कुछ मौलिक अधिकार दिए हैं तो कुछ मौलिक कर्तव्य भी प्रदान किये है।
हम अधिकारों की तो बात करते हैं, मगर कर्तव्य का भी
स्मरण रखें, और यह स्मरण हमें केवल स्व जागरण द्वारा ही हो सकता है, अन्य कोई दूसरा मार्ग है ही नहीं।
जब भी हम संशय की स्थिति में हो, अपने अंतर्मन में झांकें,
सबसे सही उत्तर हमें वहीं से प्राप्त होगा, क्या उचित है? क्या अनुचित है? इस पर गहरा विचार करें, गहन विचार करने के उपरांत ही हम कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय करें, ऐसे किसी भी
कार्य का समर्थन किसी भी कीमत पर ना करें, जो आपके आंतरिक मूल्यों से मेल न खाती हो, हम राष्ट्र को जोड़ने वाले प्रत्येक कार्य का समर्थन करें, पर साथ ही जो राष्ट्र के प्रति सही न हो, राष्ट्रीय विखंडन की जो बात करें, सर्वप्रथम उसके आचरण को परखे, अगर आचरण राष्ट्र हित की और नजर आता है, तो निश्चित ही उसका समर्थन भी अवश्य करें, वह जो भी राष्ट्र विरोधी कृत्य करता हो, उसका समर्थन न करें, तभी हमारे जनतंत्र की सार्थकता होगी। हम स्वयं भी वह आचरण न करें, जिसकी उम्मीद हम सामने वाले से करते हैं। मेरा आशय यहां यह है, की सर्वप्रथम जनता को भी राष्ट्र के प्रति जागरूक होना ही होगा।
विशेष:- जनतंत्र में जनता जनार्दन की महिमा हमारे राष्ट्रगान की प्रथम पंक्तियों में ही वर्णन कर दी गई है, आइये, राष्ट्र की गरिमा के प्रति हम स्वयं तो सचेत रहे, हमारे आस-पास भी उसे चेतना का हम निर्माण करें, राष्ट्र की गरिमा ही सर्वप्रथम है, इसे सदैव जनता भी ध्यान रखें, तभी जनतंत्र , हमें राष्ट्रबोध के साथ ही अपने आसपास घट रहे वातावरण से भी परिचित होना होगा, क्योंकि चेतना से युक्त होने पर ही हम सही निर्णय कर सकेंगे।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत
जय हिंद