प्रिय पाठक गण,
    सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
   आज प्रवाह में हम बात करेंगे युवा वर्ग व समाज। 
       आज समाज में जो विकृति सबसे अधिक उत्पन्न हो रही है, वह है बगैर किसी 
प्रयास के उपलब्धियां को पाने की चाह। 
   एक अजीब सी मृगतृष्णा में हमारा समाज आज है, नैतिक मूल्यों की जो गिरावट आज समाज में देखी जा रही है, वह युवा वर्ग को भी प्रभावित करती है। 
     सृष्टि में सब कुछ नियमानुकूल ही प्राप्त होता है, संघर्ष करने पर ही हमें प्रतिफल प्राप्त होते हैं, सबसे पहले मेरी युवा वर्ग से अपील है, वह पहले अपनी आदत को अवश्य बदले, 
अगर वह सामाजिक रूप से सक्रिय नहीं है, 
लोगों से मिलता जुलता नहीं है, तो सर्वप्रथम समाज में सक्रियता की आदत डालें, इसके साथ ही अच्छे साहित्य का अध्ययन अवश्य करें , अपनी अभिरुचि को किताबों या कोई भी कार्य, जो उसे भीतर से सुकून प्रदान करता है, उसे जीवन में अवश्य अपनाये।

       हम जैसा भी सोचते हैं, आखिरकार हम उस दिशा में फिर कर्म भी करते हैं , व हमारे कर्म की दिशा सही होने पर परिणाम भी अच्छे ही प्राप्त होंगे। 
     युवा वर्ग को चेतना युक्त आचरण करना चाहिये, आज का समय कठिनतम प्रतिस्पर्धा का दौर है, तब तो युवाओं को और अधिक संकल्पबद्ध होकर सही दिशा में सक्रिय होना होगा, सदैव प्रयासरत रहे। 
     जीवन में अपने से जो भी अनुभवी लोग हैं, उनके पास कुछ समय अवश्य बिताये, उनके अनुभव हमेशा ही आपको कुछ बेहतर दिशा दे  पायेंगे।
      उनके अनुभव व वर्तमान की चुनौतियां, 
जो निश्चित ही उनके समग्र अनुभव से मेल नहीं भी रखती हो, मगर फिर भी अनुभव तो अनुभव ही होता है, लोगों की परख करना भी उनसे सीखे। 
        जीवन में कोई ना कोई लक्ष्य अवश्य रखें, जो आपके भीतर से प्रेरणा प्रदान करें, फिर उस लक्ष्य प्राप्ति के लिए अपने आप को समर्पित कर दें।
      युवा ही आने वाले समय में इस देश के 
कर्ण धार है, उनमें सही दिशा बोध हो, इसके लिए समाज को  भी जागरूक  होना  चाहिये,  युवाओं का मार्गदर्शन करना चाहिये, उनमें सामाजिक व नैतिक मूल्यों के प्रति आस्था उत्पन्न करना, यह भी हमारा सामाजिक दायित्व है। 
      इस समय वर्तमान काल में युवा वर्ग धन प्राप्ति व भौतिक साधनों की प्राप्ति हेतु तो सजग है, व उन्हें प्राप्त भी कर लेता है, मगर मात्र भौतिक उन्नति की और ध्यान होने से 
मानवीय जीवन के अन्य पक्ष सामाजिकता, 
स्नेह व आध्यात्मिक चिंतन के अभाव में वह सब कुछ पास में होते हुए भी भीतर से एक रिक्तता का अनुभव करता है, पर इन सभी में उसका भी क्या दोष है? आज हम हमारी सामाजिक व्यवस्था को देखें, तो कथनी व करनी में जो अंतर है, वह अंतर ही वह जब देखता है, तो उसके भीतर एक आक्रोश का जन्म होता है। 
     हमारे सामाजिक मूल्यों का धराशायी होना न केवल हमारे लिये बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी अत्यंत घातक है, इस और ध्यान देने की आवश्यकता है, हम सभी उसी परमपिता के एक छोटे से अंश है, शांति की तलाश हम बाह्य साधनों में करते हैं, जबकि आंतरिक शांति हमेशा हमारे भीतर ही विद्यमान होती है। 
      युवा वर्ग को भौतिक व आध्यात्मिक जीवन के इन दोनों ही पहलुओं को समझना होगा, यह मानो एक ही सिक्के के दो विपरीत पहलू है, मगर अनिवार्य भी है। 
      युवा वर्ग समाज का एक अंग है, अगर वह आध्यात्मिक ऊर्जा से संपन्न न हुआ, तो सभी साधन होते हुए भी सामाजिक मूल्यों के अभाव में वह आंतरिक अतृप्ति का अनुभव हमेशा करेगा, व भीतर आंतरिक अशांति होने पर बाह्य साधनों की प्रचुरता भी उसे वह नहीं दे पायेगी।
     उन्हें जीवन का संतुलन किस प्रकार वह करें, यह अनिवार्यतः सीखना ही होगा, हम सब समाज में रहते हैं, समाज से ही हम प्राप्त करते हैं, व समाज में ही हम सभी से मिलते हैं, व अपनी व्यवहार कुशलता के बल पर हम समाज में अपना स्थान बना लेते हैं, इसी 
व्यवहार कुशलता का अभाव हम युवा वर्ग में आज देखते है।
          उनके भीतर दायित्व बोध को जगाना,
कि हम समाज में रहते हैं, तो अपने साथ-साथ समाज के प्रति जो हमारा कर्तव्य है, वह भी हम करते रहे, प्रथम तो हम जीवन में कृतज्ञता को धारण करें, उस परमात्मा को धन्यवाद दें, 
इस सृष्टि में, हमारे आसपास, परिवार व समाज के जो व्यक्ति हैं, उनके पति हृदय से कृतज्ञ हो, यही कृतज्ञता का भाव हमें  आंतरिक शक्ति  व शांति दोनों ही प्रदान करता है। 
       समाज में युवाओं को जुड़ना चाहिये,
समाज कल्याण मे ही हमारा भी कल्याण निहित है, छिपा है, यह समझ हमें युवा वर्ग में समाज के प्रति विकसित करनी होगी। 
      जब हम समाज से कुछ ले रहे हैं, तो हमारा यह कर्तव्य बनता है, हम समाज को भी कुछ दे, कृतज्ञता पूर्वक , अहोभाव से उनका धन्यवाद करें।
       जीवन तो जीना ही है, मगर हम जीवन को किस प्रकार से, प्रज्ञा पूर्वक जिये, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है। 
      युवा वर्ग के भीतर हमें एक उत्साह का भाव, कृतज्ञता का भाव जगाना होगा, युवा पीढ़ी को दिशा बोध प्रदान करना , सामाजिक दायित्व भी हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग है, उसकी कभी अनदेखी न करें। 
विशेष:- युवा वर्ग को मात्र भौतिक साधनों से परिपूर्ण कर देना ही शिक्षा का व समाज का उद्देश्य नहीं होना चाहिये, उसका सर्वांगीण विकास, यानी उसके व्यक्तित्व का विकास 
वह भी एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू है, उन्हें सामाजिक परिवेश में किस प्रकार से रहना है, 
समाज में आना-जाना, वह करते हुए  कर्तव्य कर्मों को भी निभाना, जो सामाजिक व्यवस्था का एक अनिवार्य अंग है, समाज के प्रति   कृतज्ञता का होना, यह युवा वर्ग के चरित्र का एक अनिवार्य अंग होना चाहिये।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय हिंद, 
जय भारत, 
वंदे मातरम।

प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
   हम सभी एक सामाजिक व्यवस्था में रहते हैं, वह उसके कुछ सामान्य से नियम हैं, एक बात जो हमेशा हमारे सामने आती है, वह है, 
की अधिकतम सभी अधिकारों की तो बात कहते हैं, मगर हमारे अपने कर्तव्य क्या है ?
          वह हम नहीं देखना चाहते, और यह किसी भी काल में संभव ही नहीं कि आप कर्तव्य तो पूरे नहीं करें और अधिकारों की बात करें।
       जो भी व्यक्ति अपने दायित्व या कर्तव्य ईमानदारी से पूर्ण करता है, उसे अपने अधिकारों की प्राप्ति तो स्वत: ही हो जाती है।
         जाने अंजाने में हम यह न्यायिक सिद्धांत भूल गए कि अधिकार प्राप्त ही तब होते हैं, जब आप अपने कर्तव्य को ईमानदारी पूर्वक निभाते हैं।
       यह दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,  इन  दोनों का ही समान महत्व है। 
     जो भी अपने कर्तव्यों को पूर्ण ईमानदारी पूर्वक निभाता है, उसे अधिकारों को प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त प्रयत्न नहीं करना
पड़ते, यह तो उसे स्वत:  ही प्रकृति द्वारा प्रतिफल में प्राप्त हो ही जाते हैं।
     हमारा स्वयं के प्रति, परिवार के प्रति, फिर समाज के प्रति, इस प्रकार से दायित्व या कर्तव्यों को को निभाना चाहिये, अधिकार तो 
हमें स्वयं प्रकृति ही प्रदान कर देगी। 
        यही तो खूबसूरती है, उस परमपिता के न्यायिक सिद्धांत की, हम चाहे किसी भी प्रकार से इन बातों की अनदेखी कर दें, मगर ईश्वर का न्यायिक सिद्धांत पूर्ण रूप से अटल है, उसमें हेर- फेर की कोई गुंजाइश है ही नहीं।
        हम अपने कर्तव्य व दायित्वों का ध्यान
रखें, उन्हें सही ढंग से निभाये, तभी हमें अधिकारो की प्राप्ति  भी होगी।
    जिस प्रकार से यह प्रकृति हम सभी पर समान रूप से कृपा करती है, भेदभाव नहीं करती, कोशिश करें, जो भी कार्य  हम अपने हाथों में ले, उसे पूर्ण निष्ठापूर्वक प्रयास अपनी ओर से निरंतर करते रहे।
    आपका निरंतर सही दिशा में किया गया प्रयास एक अद्भुत शक्ति  व सामर्थ्य  का निर्माण आपके भीतर करता है। आत्म बल व आत्मविश्वास से पूर्ण होने पर आपके अंदर एक दैवीय शक्ति  अपने आप ही जागृत हो जाती है।
       निरंतर प्रयासरत रहे, अपनी निष्ठा को,
   कर्म पूर्ण श्रद्धापूर्वक हम पालन करें, नित्य प्रयास करें, आंतरिक प्रेरणा से कार्य करें। 
    यह संपूर्ण ब्रह्मांड आपकी सहायता को
सदैव तत्पर है। 
    अधिकारों का प्रयोग सावधानी पूर्वक इस प्रकार करें, संतुलित नजरिया हमारा हो, किसी को भी भावनात्मक ठेस पहुंचाये बगैर हम अपनी इस यात्रा को अविरल जारी रखें, एक समय ऐसा अवश्य आयेगा, आपको अपने आप ही आभास होने लगेगा, अपने निज कर्तव्य को पूर्ण ईमानदारी पूर्वक निर्वहन करने पर हमें सभी उपलब्धियां स्वत:  ही प्राप्त होती जाती है। 
      अपने अधिकारों का सदुपयोग करें, दुरुपयोग नहीं, फिर आप देखेंगे, चमत्कारिक ढंग से आपका जीवन परिवर्तित होने लगेगा। 
   जैसे-जैसे हम परिपक्व होते हैं, जीवन की गहराइयों को समझते हैं, हमारा जीवन प्रकाशमय होने लगता है।
      आंतरिक शांति हमारी बढ़ने लगती हैं, व दिव्य प्रवाह, जो संपूर्ण सृष्टि का प्रेरक व रखवाला है, उसकी कृपा आप पर बरसने  लगती है।
    अंतर्मन में सद्भाव अगर जागृत हो रहा है, कोई प्रेरणा भीतर से उठ रही है, तो अवश्य ही दैवीय कृपा आप पर हो रही है।
    परिस्थितियों से घबराएं नहीं, वे तो आती जाती रहेंगी, अपना आत्मबल बनाये रखें,
व अपना मार्ग जो भी भीतर से आपने चुन
रखा है , उस परमात्मा की कृपा शरण होकर उसे करते रहे।
विशेष:- अपने कर्तव्यों को पूर्ण निष्ठा पूर्वक हम करते जाये, हमें अच्छे प्रतिफल ही प्राप्त होंगे, ऐसा कभी होता ही नहीं, आपके कर्म की दिशा सही हो और परिणाम विपरीत आये, आंतरिक रूप से चेतना को हमेशा जागृत रखें।
शेष परमात्मा पर छोड़ दें, कुछ हमारे व कुछ उस सृष्टि कर्ता के हाथों में है।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय हिंद 
जय भारत 
वंदे मातरम।

प्रिय पाठक गण,
    सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
    देश में बिहार चुनाव पर चर्चा चल रही है,
एक बात जो राजनीति में देखने को मिल रही है, वह है व्यर्थ का धन प्रदर्शन व बाहुबल का
प्रदर्शन, बिहार राज्य क्या देश से अलग है?
    जो बिहार की अस्मिता के नाम पर लड़ा जा रहा है, यह तो भावनात्मक शोषण है, कभी महाराष्ट्र में भाषा के नाम पर, बिहार में बिहारी अस्मिता के नाम पर, इस तरह तो भारत देश विखंडन की राह पर चलेगा। 
     सभी पक्ष विपक्ष के राजनीतिक दल क्या अपनी-अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा में देश को पीछे करेंगे। 
   इतने सालों बाद भी देश में कई ऐसे मुद्दे हैं,
जो बहुत ही गौर करने लायक है, हां, पर प्रशांत किशोर जी का यह कथन की बिहार में अभी तक तरक्की जिस तरीके से होना चाहिए थी, वह नहीं हुई, स्थानीय रोजगार और शिक्षा पर कार्य नहीं हुआ, वह सही है, पर इसके लिए राजनीतिक दल सभी चाहे वह पक्ष में हो या विपक्ष में ,दोषी तो है। 
     देश में राजनीतिक दलों को भी एक सर्वमान्य नियमों को अपनाना चाहिए, जो भी कार्य देश हित में स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप हो, उन्हें महत्व प्रदान करना चाहिए। 
जब तक देश में एक सर्वमान्य नीति जो भी इस देश के संपूर्ण हित में हो, नहीं तय की जाती, देश में अभी भी सुधार की गुंजाइश है। 
     वर्तमान समय में राजनीतिक परिदृश्य में 
जो आरोप व प्रत्यारोप लगाए जाते हैं, क्या हमें उनसे कोई दिशा प्राप्त हो रही है? 
      शिक्षा, रेलवे, डाक सेवाएं, बैंकिंग यह ऐसे विभाग है, जिन पर सरकार का नियंत्रण होना जरूरी है। 
   हर किसी विभाग का निजीकरण होने से जो सरकार का नियंत्रण है ,वह समाप्त होता है, और यह स्थिति देश हित में उचित नहीं कहीं जा सकती। 
     स्थानीय रोजगारों को प्रथमिकता, व्यवसाय में छोटे, घरेलू व मंजुले उद्योगों को प्रोत्साहन जरूरी है। 
     देश में संसाधनों की कमी नहीं है, नेतृत्व   वर्तमान में  क्या सबसे बेहतर हो सकता है? 
उस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है,
आज देश में राजनीति में दिखावे पर जितना खर्चा किया जाता है, उतना ही अगर संसाधनों का सही प्रयोग करने पर किया जाये, तो तस्वीर कुछ और हो सकती है।
     भारतीय राजनीति का एक अलग परिवेश है, अलग-अलग प्रांत, उनकी अलग समस्याएं, जब तक स्थानीय समस्याओं का सही समाधान नहीं निकाला जाता, उन्हें प्राथमिकता नहीं प्रदान की जाती, तब तक दिक्कतें आती ही रहेंगी।
   बिहार में पहली बार राजनीतिक मैदान में उतरे श्री प्रशांत किशोर जी ने "जन-सुराज"
के माध्यम से जो सवाल उठाये हैं, वह निश्चित ही प्रासंगिक तो लगते हैं, अब देखना यह है जनता कितना उनका समर्थन करती है, वैसे भी बिहार क्रांतिकारी परिवर्तनों का गढ़ है, किसी समय श्री  जयप्रकाश नारायण ने भी यही से राजनीतिक बदलाव की शुरुआत की थी, जब आपातकाल के बाद उन्होंने जनता दल का गठन किया था, अब फिर वैसी ही बदलाव की आहट बिहार में सुनाई देने लगी हैं। इस समय श्री प्रशांत किशोर जी ने जान स्वराज के माध्यम से जिन विषयों को जन सुराज के माध्यम से उठाया है, वह निश्चित ही जनता को झकझोरते  तो है, मगर उनकी है बातें जनता के वोटो के रूप में तब्दील कैसे होगी, यह एक देखने लायक बात है, वैसे हमारे देश की जनता कई बार चौंकाने वाले फैसले करती रही है, और इस मामले में जनता निसंदेही कई राजनीतिक दलों के
अनुमानो को ध्वस्त कर चुकी है, अगर जनता ने परिवर्तन का मन बना लिया है, तो प्रशांत किशोर जी की जीत तय है, मगर क्या जनता बदलाव का मूड बना चुकी है, और अगर बदलाव का मूड बना भी है तो क्या वह जन सुराज के पक्ष में है, इन सब बातों का पता तो बिहार चुनाव पूर्ण होने के बाद जब परिणाम आएंगे तभी  पता चलेगा, अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
       सभी राजनीतिक दल जो नई-नई घोषणाएं जनता को पैसा बांटने की करते हैं, वह स्वस्थ लोकतंत्र की दृष्टि से तो कतई उचित नहीं है, एक तरीके से यह तो अपरोक्ष रूप  से वोटो की खरीदी ही है, मतदाता को जागरूक होना होगा, उसे प्रलोभनों से दूर रहकर जो सही स्थिति है और जो सही समाज हित में होना चाहिये, वही फैसला करना चाहिये।
      अगर देश में स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराया जाये तो इस प्रकार के
प्रलोभनो की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
    देश की जनता को भी समझना चाहिये,
हमारा कीमती मत बिकाऊ नहीं है, आत्म सम्मान व स्वाभिमान के साथ खड़े होने के लिए यह जरूरी भी है। 
    स्वस्थ प्रजातांत्रिक मूल्यों के लिये हमें स्वरोजगार वह स्थान स्तर पर क्या अच्छा हो सकता है, इस और ध्यान देने की आवश्यकता है।
      यही देश के मतदाताओं से उम्मीद है, अगर जनता सही तरीके से इस चीज को समझ जाये तो इस बार बिहार में हमें बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। और इस समय देश में इसकी जरूरत भी है, स्थानीय स्तर पर अगर रोजगार के सही अवसर उत्पन्न किया जाये तो फिर बिहार क्या किसी भी प्रदेश में वहां के लोगों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा। 
विशेष‌ - भारतीय राजनीति एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जनता को भी चाहिए कि वह सही परिपेक्ष्य में चीजों को देखे व समझे,
अब एक पुनर्निर्माण की और हम अग्रसर हो, 
और इसके लिए जरूरी भी है कि बदलाव अवश्य हो।







प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
            आप सभी को मंगल प्रणाम, प्रवाह की इस मंगलमय व अद्भुत यात्रा में आप सभी का हृदय से स्वागत।
      आज हम बात करेंगे, आत्म शक्ति पर, हमारी आत्म शक्ति ही, हमें संघर्ष जीवन के जो भी हमारे सामने उपस्थित होते हैं, उन संघर्षों 
 में हमें विजय श्री प्रदान करते हैं, स्थितियां चाहे कितनी ही प्रतिकूल ही क्यों न हो, प्रबल आत्मविश्वास हमें उन सभी से पार करता है, 
            प्रबल आत्क्तिमविश्वास द्वारा ही हम परिस्थितियों का सामना करते हैं, अपनी आंतरिक शक्ति को हम कभी भी क्षीण न होने दे, वह आत्म शक्ति ही हमें समझ प्रदान करती है, धैर्यता देती है।
       अनुकूल परिस्थितियों सदैव नहीं होती, 
प्रतिकूल परिस्थितियों भी सदैव नहीं होती,
अनुकूल व प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियां जायेगी, समय ने जो लिख रखा है, वह तो अवश्य घटेगा, घटनाक्रमों से विचलित न होते हुए अपने प्रयासों में निरंतरता बनाये रखें।
          बुद्धि पूर्वक, श्रद्धा पूर्वक, मनोयोग से हर पहलू को हम देखें, जांचे, परखे, फिर हम आगे बढ़े, व्यवधान कोई भी हो, अधिक समय तक वह रहने वाला नहीं, किसी भी निर्णय को लेने से पहले उसके सभी पहलुओं पर विचार करें, तो हम निर्णय ले सकेंगे। 
     अगर हमारी दिशा सही है, तो प्रयत्न करते रहने पर हमें परिणाम अवश्य प्राप्त होंगे।
  कर्म की गति बड़ी ही गहन हैं, आप और हम कई बातों का निर्धारण नहीं कर सकते, कई कर्म सूक्ष्म होते है, कई कर्म हम जानते ही नहीं, सही है अथवा नहीं?    फिर भी हम कर देते हैं, इस प्रकार हम काल व परिस्थितियों के आधीन होते हैं, कई बार हमें सब पता होता है, पर हम विरोध करने की स्थिति में नहीं होते हैं।
     इस कलि- काल में केवल नाम सुमिरन ही हमें समस्त प्रकार के तापों से मुक्त कर सकता है, अन्य कोई भी उपाय है ही नहीं।
     भगवान  का नाम सुमिरन करने पर हम आंतरिक रूप से जागृत होते हैं, हमारे द्वारा 
फिर  कोई गलत आचरण नहीं होगा ,
क्योंकि परमात्मा का नित्य सुमिरन हमें धीरे-धीरे सही मार्ग की और ले जाता हैं, जिससे हमारा जीवन-पथ आलोकित होने लगता है।
        जिनकी कृपा मात्र से अनेकों प्रकार के
संकट स्वमेव हटने लगते हैं, परमात्मा हमें स्वयं प्रेरित करने लगता है, वह अपने भक्तों पर पूर्ण दृष्टि रखते हैं, जो आंतरिक भाव से प्रभु से जुड़ जाता है, उसकी सारी समस्याएं फिर प्रभु स्वयं हल करने लगते हैं, निस्वार्थ भाव से उनका सुमिरन अत्यंत ही मंगलकारी होने लगता है।
      नित्यप्रति उनकी मंगल शरण में रहने से फिर सब मंगल ही होगा , ऐसे परमेश्वर की हम नित्य शरणागति हो, उनका परम वंदन करते रहे। अपने नित्य कर्तव्य कर्मों को करते हुए भी हम उनका लीला गान करते रहे, यही एकमात्र मंगल उपाय है, जो हमें हर प्रकार के दोषो से रहित करता जाता है।
         हमारे सारे कर्म उसकी मंगल कृपा से भस्म हो जाते हैं, जीवन हैं, तब तक हमें जीना तो होगा ही, युक्ति युक्त तरीके से, उनकी मंगलमय शरणागति होकर रहे, उनके मंगल आश्रय में  रहे।
       जो भी घटे, वह उनकी असीम अनुकंपा से घटे, मंगल हो या अमंगल, जो भी प्रभु की इच्छा हो, वह हो, ऐसी अनन्य शरणागति भाव से जीवन की  डोर हम उनसे बांध ले।
       आत्मबोध हो जाने पर फिर हम चाहे गृहस्थाश्रम में हो, अपने निजी कर्म को करें,
कहीं भी रहे, परम कृपा शरण  में रहे।
    नित्य उनकी मंगलमय कृपा का अनुसरण करते रहे। 
     नित्यं ध्यायंते योगिन:, योगी  जन  जिनको नित्य भजते हैं, भक्तजन जिनकी कृपा का सदैव अनुभव करते हैं, कर्मयोगी अपने कर्म द्वारा जिनका मंगलमय आचमन करते हैं,
इस प्रकार इस संसार सागर को पार करने में हम सक्षम नहीं, उनकी मंगल कृपा का नित्य अनुभव करते रहे, सांसों में वह बसा है, हर क्षण उसका मंगल सुमिरन चलने दे।
       परमात्मा का सुमिरन करते रहें, उसकी कृपा सदैव बरस रही है। 
विशेष:- अपनी आंतरिक आत्म शक्ति को कभी भी क्षीण न होने दे, संसार में जो भी सफल हुआ है, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो,
उसकी मंगलमय कृपा आधार बिना कुछ संभव ही नहीं है, परमेश्वर आप सभी पर कृपा करें, हम सभी चाहे या ना चाहे, उसके आधीन है, जो भी घटे, वह मंगल ही घटे, यही मंगल कामना। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय हिंद, 
जय भारत, 
वंदे मातरम।

प्रिय पाठक गण,
    सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
       प्रवाह की इस मंगलमय व अद्भुत यात्रा में आप सभी का स्वागत है।आज हम बात करेंगे उम्मीद व वास्तविकता में क्या अंतर है? 
       कोई भी इंसान में अगर कल कुछ बेहतर होगा, इसकी उम्मीद कायम है, तो वह जीवन में कभी भी निराश नहीं होंगा, अगर उम्मीदे  कायम है, तो वह उम्मीद के सहारे कुछ न कुछ
प्रयत्न अवश्य करेगा व कामयाब भी होगा। 
       अगर जीवन में उम्मीद ही न हो, तो मनुष्य फिर क्यों अपनी भाग -दौड़ करेगा, वह तो निष्क्रिय हो जायेगा ।
      निष्क्रिय हो जाने पर तो वह कुछ भी नहीं पा सकेगा, पर उम्मीद के साथ-साथ आप वास्तविक धरातल पर हम क्या कर सकते है?
 यह हमेशा देखें। 
         उम्मीद जीवन में आशा व उत्साह का संचार करती है, वह हमें अपने स्वप्नों पर खरा उतरने के लिए प्रेरित करती है, हमें अनिवार्य जीवनी शक्ति प्रदान करती है, जीवन संघर्ष में हमारी सहायक होती है।
       भिन्न-भिन्न प्रकार की विचारधारा, भिन्न लोग, अलग-अलग परिस्थितियां, इन सबसे अगर हम रूबरू होते हैं, तो वह कौन सी शक्ति है? जो हमारे मनोबल को अत्यंत विपरीत समय में भी साहस प्रदान करती है।
तो वह उस परमपिता की कृपा ही है, जो हमारा मार्गदर्शन करती है, उनकी मंगल कृपा से हम परिस्थितियां विपरीत होने पर भी साहस करते हैं, वह फिर जो भी हमारा लक्ष्य 
हो, उसे पाते है।
       जीवन में हमें भौतिकता,आध्यात्मिकता, 
व्यावहारिकता, मनोवैज्ञानिक पहलू, वास्तविकता में क्या हो रहा है? इन सब पर अपनी पैनी दृष्टि रखना चाहिये?
     अंतर्मन में सदैव मंगल का भाव रखते हुए 
वर्तमान परिस्थितियों को सही ढंग से समझते हुए हम प्रयास करते रहें, यही केवल हमारे हाथों में है। 
      निरंतर प्रयास जब हम किसी भी एक दिशा में करते हैं, तो हमें सफलता प्राप्त हो जाती है। 
           नित्य ,निरंतर उस परमात्मा का अवश्य सुमिरन करते रहे, वही हमें सब और से शक्ति व सामर्थ्य को प्रदान करने वाला है।
       विपरीत समय में साहस देने वाला व अपनी शरण में रखने वाला है।
     सभी को हृदय से प्रणाम करें, अपने भावों को नित्य शुद्ध करते रहें,  समय से जो भी घटेगा, वह घटेगा ही, उसे हम रोक भी नहीं सकते।
     पर्याप्त केवल इतना है, प्रयास करें, जो भी लक्ष्य आपने हाथों में लिया है,  वास्तविकता में उसमें क्या हो सकता है?
क्या हम बेहतर कर सकते हैं? इस और हमारा निरंतर ध्यान हो।
      उम्मीद कभी-कभी टूट भी जाती है, मगर निराश न हो, एक राह अगर बंद हो, तो दूसरी अवश्य ही खुलती है।
     विनम्रता को हमेशा धारण करने का प्रयास करते रहे, अपने संकल्पों में दृढ़ निश्चयी रहे, 
 जो भी बाधाएं हैं, युक्ति युक्त तरीके से उनका सामना करें, सफलता आपकी राह देख रही है। 
     अपने लक्ष्य पर पूर्ण ध्यान व समर्पण ही
हमें उसे पूर्ण करने की सामर्थ्य प्रदान करता है।
    समय -गति को समझ कर फैसले करते रहे, परमपिता की मंगल कृपा शरण रहकर चले, फिर कुछ विपरीत घटेगा ही नहीं, 
विपरीतता भी अनुकूलता में परिवर्तित होने लगेगी। 
     नित्य- निरंतर समीक्षा करते रहे, अपने प्रयासों को गति दें , परमात्मा सदैव अपनी अनुकंपा हम सभी पर बरसा रहे हैं, उनके अभेद्य दृष्टि से कुछ भी नहीं छिपा है, वे  ही तारणहार है।
      लक्ष्य जो भी चुने, उसमें निरंतरता अवश्य बनाये रखें।
विशेष:-  परिस्थितियों जीवन में हमेशा परिवर्तित होगी ही, कभी अनुकूल होंगी ,कभी प्रतिकूल होगी , कभी सहज होगी, कभी हम चाह कर भी उसे अनुकूल न कर सकेंगे। 
   मगर अपने प्रयासों की निरंतरता अवश्य बनाये रखें, वास्तविक परिस्थितियों अनुकूल हो या प्रतिकूल, उम्मीद कभी भी ना छोड़े, निरंतर प्रयासरत अवश्य रहे। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत, 
जय हिंद, 
वंदे मातरम।

प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
    प्रवाह की इस मंगलमय व अद्भुत यात्रा में 
आप सभी का स्वागत है।
      आज हम बात करेंगे, मनुष्य की अपार क्षमताओं के बारे में, हर मनुष्य को अपने-अपने जीवन में परमात्मा ने समान अवसर दिये, फिर क्या कारण है? कोई हमें सफल होता दिखता है, कोई असफल। 
        अगर हम विश्लेषण करे तो पायेंगे, कोई भी व्यक्ति, जो अपने जीवन में सफलता का शिखर छूना चाहता है, तो सबसे प्रथम तो उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य क्या है? 
      जब तक यह वह स्वयं तय नहीं करता, कोई और भी किस प्रकार से उसकी मदद करेगा?
      प्रथम संवाद हम अपने आप से करें, 
हमने क्या लक्ष्य तय किया? और जो भी लक्ष्य तय किया कितनी ईमानदारी व पारदर्शिता से हम कार्य कर रहे हैं? कौन क्या कर रहा है? 
इससे विचलित न हो?
        आप अपने परिदृश्य में, परिवेश में, आपके पास जो भी साधन उपलब्ध है, उनसे आप कितना युक्तियुक्त सही इस्तेमाल उन साधनों का करते हैं। 
             हम सभी की सोच व समझ अलग-अलग होती है, मगर हम एक बड़े परिप्रेक्ष्य में अगर  समझे, तो हम पाएंगे, मानव में अपार क्षमता होती है, मगर वह अपनी क्षमताओं का कितना बेहतर इस्तेमाल करता है, उसका लक्ष्य क्या है?
       अगर हम पूर्ण ईमानदारी पूर्वक किसी भी लक्ष्य को धारण करते हैं, तो फिर उसे पाने का प्रयास भी अवश्य ही करेंगे।
      हम सभी को जीवन में हमेशा ही दुविधा 
यह होती है, हम अपने वास्तविक लक्ष्य  व जमीनी हकीकत दोनों का सही समन्वय नहीं कर पाते।
     हमें जीवन में दो प्रकार के  लक्ष्यों  को लेकर चलना चाहिये, यह मैं मेरे निजी अनुभव के आधार पर कह रहा हूं, हो सकता है आपका मत इससे भिन्न हो।
       आप कितने भी अच्छे इंसान हो, जमीनी हकीकत, वास्तविक स्थितियों को कभी भी 
नजर अंदाज नहीं करें। 
     वर्तमान समय को सही तरीके से परखे, 
सबसे अधिक महत्वपूर्ण आपको क्या लगता है ,अपनी परिस्थितियों अनुसार उस पर विचार करें व फिर उस पर कार्य करें।
      जीवन में दो लक्ष्य यानी आध्यात्मिकता व भौतिकता दोनों का उचित संतुलन जीवन में अवश्य करें, मात्र आध्यात्मिक हो जाने से आप गृहस्थ जीवन में है, आपका कार्य नहीं हो सकता, भौतिकता की और अधिक झुकाव होने से भी आप मानसिक रूप से परेशान हो सकते है, जीवन में इन दोनों ही लक्ष्यों को समान रूप से महत्व प्रदान करें।
       और हम मात्र आध्यात्मिक उन्नति पर ध्यान देंगे तो हमें मानसिक शांति तो प्राप्त  होगी, मगर केवल उससे जीवन यापन नहीं हो सकता, यहां पर हमें भौतिक साधनों व धन की आवश्यकता होगी, वहां पर वे ही कार्य  करेंगे, जब तक हम दोनों को समान महत्व नहीं प्रदान करते, हम हमेशा तकलीफ में होंगे।
      वर्तमान समय में भौतिकता का ही बोलबाला है, तो हमें भौतिक साधन तो जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये 
जुटाना हीं होंगे।
        अब हम देखते हैं, जीवन का आध्यात्मिक पक्ष, तो हमें आंतरिक शांति जीवन में किसी की मदद करके ही प्राप्त होंगी, हम अपना जीवन यापन करने के 
साथ -साथ किस प्रकार से अन्य लोगों की बेहतरी के लिये भी कार्य कर सकते हैं, वह आपके आध्यात्मिक पक्ष को मजबूती प्रदान करता है।
     हमें अपने जीवन में दोनों ही पक्षों में संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता है। 
    किसी भी एक का आवश्यकता से अधिक होना हमें परेशान कर सकता है, अतः एक संतुलित मार्ग अपनाना आवश्यक है।
     जीवन में अपने मूल लक्ष्यों को पहचाने ,
आपके भीतर से क्या अधिक प्रिय है? आप किन बातों में सुकून या शांति महसूस करते हैं, उन पर अपने जीवन में कार्य अवश्य करिये।
    हम सभी यात्री हैं, जिंदगी एक सुंदर सा सफर है, अवरोधों से कभी न घबराये, वे अवरोध ही आपकी ताकत भी है, उनसे धैर्य पूर्वक हम पार पाये।
    लक्ष्यों को पहचाने, हम सभी अपार क्षमताओं के मालिक हैं, जब हम अपनी संपूर्ण ऊर्जा किसी भी लक्ष्य पर लगाते हैं, 
तो निश्चित ही परिणाम आपके ही पक्ष में होंगे। 
      भीतर से कोई चीज आपको बारंबार पुकार रही है, तो समझिये, आपकी चेतना आपसे क्या कह रही है? 
 विशेष:- हमें स्वयं अपनी अपार क्षमताओं को पहचानना होगा, स्वयं का आकलन करें, हमारी जो भी विशेषता है, वह क्या है? उस गुण -विशेष पर अपना कार्य करें, निश्चित ही हम सभी में अपार संभावनाएं छुपी हुई है, 
बस हमें अपना लक्ष्य ठीक ढंग से पहचानना
 है, व संपूर्ण ईमानदारी से उस पर कार्य करना है।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत, 
जय हिंद, 
वंदे मातरम।


प्रिय पाठक गण,
   सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
     प्रवाह की इस मंगलमय व अद्भुत यात्रा में आप सभी का स्वागत है।
       हम सभी उसी एक परमपिता के अंश है,
माया के आवरण के कारण हम यह समझ नहीं पाते हैं, भौतिक सुख सुविधाओं की अत्यधिक चमक वह बहुलता ने मानो हमारे भीतर की शुद्धता भीतर तक नष्ट कर दिया है,
इस विश्व में हम सभी किसी न किसी रूप में 
एक दूसरे पर आश्रित है, यह संपूर्ण ब्रह्मांड भी एक दूसरे से सहयोग करता हुआ चालित हैं,
यही परम सत्य है, जिसे हमारे प्राचीन मनीषियों ने अपने अर्थबोध द्वारा जान लिया था, फिर सर्वसाधारण के लिये उन्होंने उसे रहस्य को ग्रंथो व पुराणों में विभिन्न श्रुतियों के माध्यम से कहा।
      परंतु जो ऋषि या मनीषी उसके मूल स्वरूप को जान गये, उनकी बातों को बाद में अपनी बातें मिलकर इसका मूल स्वरूप बदल दिया गया, और यहीं से मनुष्य का चातुर्य, जो वह करना चाहता है, उसे किस प्रकार से मोड़ना है, वह करने लगता है। 
    यह सृष्टि अनंत काल से अपने ही स्वाभाविक नियमों पर ही कार्य करती आ रही है, इसमें तनिक भी संशय  नहीं है।
     भौतिक आवरण अधिक गहरा होने से हम उसे तथ्य को स्पर्श ही नहीं कर पाते हैं, जो की परम चेतना से आबद्ध है।
       कथन भी है सत्यम, शिवम, सुंदरम 
सत्य ही शिव है, और शिव ही सुंदर है।, 
     उसकी कृपा के विविध रूप हमें प्रकृति की उदारता में देखने को मिलते हैं, कैसे वह सहज रूप से सभी का पोषण करती है, किसी से भी भेदभाव नहीं करती। 
      यही तो उसका परम रहस्य है, वह इसका आशय जो भीतरी गहराई में जाकर समझ जाता है, वह इस संसार सागर को जीता हुआ भी इसमें लिप्त नहीं होता, उस परम आश्रय  की शरण में  वह अपना जीवन चलाने लगता है।
        वह समान रूप से सभी का भरण पोषण करता है, वही अविनाशी सत्ता, जिसका कभी भी विनाश नहीं होता, युगों युगों से स्वचालित होकर सब की रक्षा कर रही है। 
       आंतरिक शांति हमें तभी प्राप्त हो सकती है, जब हम उसके परम आश्रय के भीतर चलते हैं, अपने हदय में  उस अविनाशी सत्ता 
को जिसने भी स्थान प्रदान किया, फिर उस परमात्मा के द्वारा वह निमित्त बन जाता है, और फिर उसके द्वारा वहीं घटता है ,जो वह चाहता है, हम सभी एक निमित्त हैं, कौन कब, कहां ,क्या भूमिका निभायेगा, वह तय करने 
वाला भी है, और प्रेरणा प्रदान करने वाला भी। 
     क्या कारण है?  हम चाह कर भी वह नहीं कर सकते जो हम चाहते हैं, हम वही करते हैं जो वह चाहता है, यह बहुत ही सूक्ष्म भेद है,
कुछ तो ऐसा अवश्य है, जो हम सभी की समझ के बाहर है। 
      हम जन्म लेते हैं, एक दिन मृत्यु को प्राप्त होते हैं, मगर इन सब के मध्य का जो जीवनकाल है, वह हमारा अपना है, हम उसे किस प्रकार गुजारते हैं, इस पर ही हमारे भविष्य की नींव है। 
      बुद्धिमानी पूर्वक जगत को हम कैसे जिये,
जब हम यह कला जान लेते हैं, तो हमारे बहुत सारे संशय स्वयं चिन्ह भिन्न हो जाते हैं।
       कोई भी कर्म एक दिन में पूर्ण नहीं होता, एक लंबी प्रक्रिया होती है, उसके उपरांत ही कुछ घटता है, उसके आरंभिक बीज तो हमारे अवचेतन मन में पहले से ही पढ़ चुके होते हैं, जैसे-जैसे हमारी आंतरिक चेतना जागृत होती है, हमें भीतर से आंतरिक शांति का अनुभव होने लगता है। 
       भौतिक संसाधनों का कब, कैसा , कहां क्या उपयोग करना है, भावनात्मक रूप से कब हमें प्रभावित होना है? यह हमारी समझ में आने लगता है, और यह समझ में आ जाना भी उनकी कृपा का ही एक रूप है, जिसे जितने सही रूप में हम समझते जाते हैं, उतना ही हमारा जीवन आसान होने लगता है, जीवन की जो भी गांठे हैं, वह सुलझने  लगती है, धीरे-धीरे हम महाप्रयाण की ओर बढ़ने लगते हैं।
     शनै- शनै हम परमात्मा की कृपा को जीवन में अनुभव करने लगते हैं, उसकी कृपाल के हम पात्र बन जाते हैं, फिर वह जो भी भूमिका हमें प्रदान करें। 
विशेष:- हम सभी उसी के परम आश्रय में है,
           उसकी कृपा के बिना जीवन में कुछ घटता ही नहीं, बस हम उसकी कृपा के पात्र बने रहे, बस यही विनय हम करते रहे, फिर जो भी होगा, वह उसकी कृपा से ही घटेगा।
आपका अपना 
सुनील शर्मा, 
जय भारत 
जय हिंद, 
वंदे मातरम।