आप किसी भी पंथ या धर्म को ले, उसके एक निश्चित प्रार्थना होती है। प्रार्थना से हम उस परमपिता परमेश्वर के या पराशक्ति के सबसे निकट खड़े होते हैं। प्रार्थना से हमें स्वयं को भी क्षमा करने का नैतिक साहस प्राप्त होता है।
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जब तक हम स्वयं को ही अपनी गलतियों के लिए क्षमा नहीं करेंगे, औरो को क्षमा करने की ताकत हमें कहां से प्राप्त होगी।
हम किसी भी पंथ या धर्म का विवेचन करते हैं तो उसमें प्रार्थना का महत्व पाते हैं। हिंदू धर्म में तो अनन्य शरणागति को बहुत महत्व प्रदान किया गया है। भगवान श्री कृष्ण तो " श्रीमद भगवत गीता" में स्पष्ट उल्लेख करते हैं।
सब प्रकार के भय त्याग कर मेरी शरण में आ जा।
अर्जुन ने श्री कृष्ण में सखा भाव ( मित्र ) रखते हुए उनकी अनन्य शरणागति व उनकी सलाह का अनुसरण किया व महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की।
हमारे जीवन में कई अंतर्द्वंद चल रहे होते हैं। हम ईश्वर से पूर्ण ह्रदय से अगर प्रार्थना करते हैं तो वे मार्ग अवश्य प्रदान करेंगे।
सब प्रकार के भय त्याग कर मेरी शरण में आ जा।
अर्जुन ने श्री कृष्ण में सखा भाव ( मित्र ) रखते हुए उनकी अनन्य शरणागति व उनकी सलाह का अनुसरण किया व महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की।
हमारे जीवन में कई अंतर्द्वंद चल रहे होते हैं। हम ईश्वर से पूर्ण ह्रदय से अगर प्रार्थना करते हैं तो वे मार्ग अवश्य प्रदान करेंगे।
जय श्री कृष्ण
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