समसामयिक ( कोरोनावायरस से उत्पन्न परिस्थितियां व हम)

प्रिय पाठक वृंद,
सादर नमन,
आप सभी को मेरा मंगल प्रणाम,
मेरा ब्लॉग जो नियमित पढ़ते रहे हैं जो भी नए व्यक्ति जोड़ रहे हैं, उन सभी का हृदय से धन्यवाद।
             जैसा कि मेरे ब्लॉक का नाम है प्रवाह, यानी निरंतरता, हम सभी इस समय वर्तमान में एक विचित्र से दौर से गुजर रहे हैं, अभी संपूर्ण विश्व में कोरोना वायरस का प्रकोप छाया हुआ है।
इस परिप्रेक्ष्य मे भारत की स्थिति को देखें, तो पाएंगे कि यहां विविधता व जटिलताएं भी उतनी ही है, जहां एक और बिल्कुल अल्प शिक्षित, अनपढ़ लेकिन हमारे देश में भीतर से ईमानदार लोग हैं, सुदूर प्रांतों में बिल्कुल नैसर्गिक जीवन जीने के आदी हैं व प्रकृति के नजदीक है।
     दूसरी और एक ऐसा वर्ग है, निम्न वर्ग, निम्न मध्यवर्ग, मध्यमवर्ग, उच्च समाज, राजनेता, व्यापारी, तमाम धनाढ्य वर्ग, किसान, किसानों में भी अलग-अलग श्रेणी के किसान, कुछ अत्यंत गरीब, कुछ मध्यम श्रेणी के, व कुछ धनाढ्य किसान।
      आइए, हम भारत देश की संस्कृति को समझें। हमारी संस्कृति समावेशी संस्कृति है, जो सभी वर्गों, विचारों ,पंथो का समन्वय करती है।
     वर्तमान में भारत में दो तरह की विचारधारा के लोग हैं। एक पूर्णतः भौतिकवादी, दूसरा वर्ग भौतिकता और आध्यात्मिकता का समन्वय  करता है।
   अब इस समय कोरोनावायरस से उत्पन्न स्थिति पर हम थोड़ा सी नजर डालते हैं, अभी तो हम पर स्थिति को नियंत्रण में रखे हुए हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि इस  परिस्थिति से से गुजरने के बाद हमारी तैयारियां क्या है।
यहां मैं केवल शासक वर्ग को उत्तरदायी नहीं ठहराता हूं, बढ़ती हुई भौतिकता व जीवन मूल्यों का क्षरण समाज के सभी वर्गों में तेजी से हुआ है, अगर हम इसमें सुधार कर लें, तब तो चिंता की कोई बात ही नहीं है।
    जो एकजुटता आज भारतीय समाज ने दिखाई है, वह कोरोनावायरस के बाद उसी शिद्दत से जारी रहना चाहिए, संपूर्ण विश्व में अब एक बदलाव आना तय है, भारत देश की उस में महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
     हमें हमारी प्राचीन संस्कृति नूतन परिस्थितियों का उचित समावेश करते हुए रणनीति तैयार करनी चाहिए।
शायद भारत की आजादी के बाद यह सामाजिक बदलाव का एक बहुत बड़ा मौका सिद्ध होगा, जिसमें हम सब भारतवासियों को नए सिरे से सोच कर हमारी अपनी मौलिक संस्कृति को कायम रखते हुए भविष्य का निर्माण करना होगा।
कुछ सूत्र मेरे मन में है वह आपसे इस ब्लॉग के जरिए कहना चाहता हूं।
(1) सर्वप्रथम प्रकृति के संरक्षण पर हमारा ध्यान होना चाहिए।
(2) हमारे देश में स्थानीय व्यापार को बढ़ावा देना चाहिए।
(3) किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए संपूर्ण देश एकजुट रहे, जैसे कि हम आज हैं।
(4) भारतीय जनमानस को थोड़ा और प्रखर, प्रबुद्ध व जागरूक होना चाहिए, तथा जो जागरूक नहीं है उन्हें जागृत करना चाहिए।
(5) हमारी प्राचीन संस्कृति द्वारा प्रदत दिव्य सूत्रों पर कार्य करना चाहिए।
(6) हमारी शिक्षा को सर्व सुलभ व सबकी पहुंच में हो, ऐसा बनाना चाहिए, सभी पंथ व धर्मों को सार रूप में समझ कर एक मानवीय धर्म की रूपरेखा बनाना चाहिए, जिसका अध्ययन हमारी सभी शिक्षा के प्रारूपों में हो, चाहे वे सरकारी हो या निजी।
(7) भारत में जिस राज्य की जैसी भौगोलिक संरचना है, वैसे उद्योग और रोजगार वहीं पर सृजित किए जाए।
(8) एक विश्व स्तर की रणनीति तैयार करने पर बल हो, इसमें स्वास्थ्य, पर्यावरण ,शिक्षा इन सबके लिए भी एक उचित समन्वय वाली नीति बने, मानवीय धर्म को मानकर वैश्विक रणनीति तैयार करनी चाहिए, जिसमें निश्चित ही भारत की मुख्य भूमिका होगी।
(9) हमारे प्राचीन संस्कृति को फिर से पुनर्जीवित किया जाए, वैदिक शिक्षा व आयुर्वेद के सिद्धांतों पर आधारित विश्वविद्यालयों की स्थापना की जाए, जहां हम विश्व मानव निर्मित कर सकें, यह सूत्र सबसे महत्वपूर्ण सूत्र है।
(10) वर्तमान परिदृश्य से उत्पन्न स्थिति पर आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक व वैश्विक परिदृश्य पर एक वृहद परिचर्चा हो, जिससे सही मायने में हम सही मायने में सारे विश्व को एक दिशा दे सके, भारत शुरू से विश्व गुरु रहा है, अब पुनः प्रतिष्ठित होने का इससे अच्छा हो अवसर हमारे देश के सामने नहीं आ सकता।
जय हिंद,
जय भारत
आपका अपना
सुनील शर्मा।

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