शिक्षा का वर्तमान स्वरूप

क्या आज की शिक्षा हमारा सर्वांगीण विकास कर रही है क्या वह जीवन मूल्यों पर आधारित है सामाजिक मूल्यों के बारे में भी हमे सचेत करती है शिक्षा के ज्ञान को आज एक बाजार या व्यवसाय का रूप दे दिया गया है और उच्च शिक्षा सामान्य वर्ग के दायरे से बाहर है। 
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यह एक सामाजिक विसंगति जी कैसी रहेगी की शिक्षा को मात्र जीवन में जीविका उपार्जन का माध्यम बना दिया गया है ,व इसी दिशा में आधिकारिक ध्यान दिया जा रहा है। 
उसके सर्वाधिक सबल पक्ष ज्ञान पर अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है शिक्षा केवल इसीलिए नहीं दी जाती है कि आपके लिए भरण पोषण का माध्यम बन सके। 

वह आपको जब तक अपनी संस्कृति,जीवन मूल्यों ,वैश्विक परिवर्तन, प्रकृति का संरक्षण ,परस्पर सहयोग व समन्वय जैसे मानवीय गुणों का विकास नहीं करती,वह अधूरी शिक्षा ही कही जाएगी। शिक्षा का रोजगार के साधन के प्रचार-प्रसार से जुड़ा होना एक अत्यंत महत्वपूर्ण पक्ष है, पर शिक्षा के प्रश्नों की जबरदस्त अवहेलना का अन्य परिणाम ही सामाजिक भ्रष्टाचार को बढ़ाता है।

जब हम शिक्षा में मानवीय मूल्यों का समावेश करते हैं तो वह व्यक्तित्व विकास में भी सहायक होती है। 

जैसे सत्य कहना एक अच्छी बात है, क्योंकि एक सत्य आपको कहीं असत्य कहने से बचाता है। असत्य कहने पर आपको फिर उस असत्य को छुपाने के लिए असत्य का सहारा लेना पड़ेगा वैसे भी सत्यम शिवम सुंदरम यह कथन ही अपने आप में सत्य की महानता को प्रकट करता है।


  

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