आनंद ही जीवन है

प्रिय पाठकगण,
सुप्रभात,
आनंद ही जीवन है, इस लंबे जीवन काल में हम कई उतार-चढ़ाव से गुजरते हैं, कई व्यक्तियों से हमारा परिचय होता है, जो आत्मानंद लोग होते हैं उनसे मिलकर मन प्रसन्नचित होता है। आनंद आत्मा का प्रसाद है।
हमारे जीवन में विषाद, प्रसन्नता, वियोग, सुख दुख, जय पराजय इस प्रकार हमें कई परिस्थितियों से गुजरना होता है। इन सब परिस्थितियों के होते हुए भी आनंद भाव ही आत्मा का मूल भाव है, जब हम आत्मानंद की स्थिति में रहना सीख जाते हैं  तब उस स्थिति का आनंद ही अलग होता है।
जो व्यक्ति अपने आत्मानंद में जीवन को जीना सीख जाता है, फिर उसके लिए परिस्थितियां कोई मायने नहीं रखती है क्योंकि  वह दुरूह व कठिन परिस्थितियों का मुकाबला भी अपनी सहज आत्मानंदी प्रवृत्ति के कारण आसानी से कर लेता है।
किसी भी व्यक्ति के जीवन में परिस्थितियां हमेशा बदलती रहती है मगर दृढ़ निश्चयी व्यक्ति अपने आत्मानंदी स्थिति के प्रवाह को हर स्थिति में बनाए रखने के कारण  विचलित नहीं होता है।
हम, आप, सभी एक ही  ईश्वर की कृति है। आपसी प्रेम भाव से बड़ा ईश्वर कोई नहीं, उसने हम पर दया करके मानव जीवन प्रदान किया, जोकि देवताओं को भी दुर्लभ है पर इस मानव शरीर को पाकर हम अपनी विचार व काया का परिमार्जन न कर सके तो मानव जीवन का आनंद नहीं उठा सकेंगे।
इसका मूल रहस्य आपसी प्रेम, सामाजिक सद्भाव व आपसी समझ बूझ में ही छिपा हुआ है। जिस पर भी मेरे प्रभु कृपा करते हैं उसे ही  यह बोध हो पाता है।
आज इतना ही शेष फिर अगले लेख में।

आपका अपना,
सुनील शर्मा।

प्रत्येक परिस्थिति में अपनी आत्मानंद की स्थिति में बने रहे।
जय श्री कृष्ण।

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