अंतर्यात्रा ( भाग 4 )

प्रिय पाठक वृंद, 
सादर नमन।

आपका दिन शुभ व मंगलमय हो। 



अंतर्यात्रा भाग चार में वर्तमान परिदृश्य में हम सचेतन रहकर ही कार्य करें यह अत्यावश्यक है। शब्द "अति " पर ध्यान पूर्वक अधिक जोर देने से मेरा तात्पर्य यह कि हम भारतीय संस्कृति का केवल बखान ही नहीं करते रहें,  वरन मूल्यों से सीख कर हम स्वयं एक आदर्श रूप में अपने आप को जब तक भीतर से प्रस्तुत नहीं करते अंतर में उन भावों से नहीं जुड़ते,  तब तक हमारे व्यक्तित्व का रूपांतरण नहीं हो सकता।

हमें हमारे लक्ष्यों का पता होना चाहिए,  इसके लिए हमें सर्व प्रथम अपने प्राथमिक,  आवश्यक,  आर्थिक,  सामाजिक व आर्थिक सभी मूल्यों का समावेश करना होगा। जिस भी समाज व विश्व में हम रहते हैं उसके प्रति एक सकारात्मक चिंतन के साथ हम जुड़े व क्या समाज के हित में है,  वे बातें पूर्ण निडरता के साथ कहने का साहस हमारे मन में हो।

हम संकल्प बली बने,  इस प्रकार असहाय से मूक दर्शक ना बने रहकर हमें समाज में सभी बातों पर संवाद की परंपरा को कायम रखना चाहिए। जहां पर आपसी संवाद खत्म हो जाता है,  वहां पर फिर विवाद की स्थिति निर्मित होती है। जीवंत संवाद स्वयं से,  घर में सभी से व समाज में,  समाज हित में जो जरुरी हो वह बोलने में कभी अभी परहेज ना करें।

यह हमारा दायित्व है कि आज  जब समाज में चारों ओर हाहाकार सा मचा है। हम कुछ समय रुक कर हमारी सांस्कृतिक विरासत पर अवश्य गौर करें,  यह हमें हमारा आत्मबोध  कराती हैं 

विशेष = स्वयं को जागृत करें,  विवेकवान बने,  सभी परिस्थितियों का अध्ययन करें,  अपने सामर्थ्य को देखें व फिर पूर्ण मनोयोग से अपने लक्ष्य की ओर बढ़े। 

                                                                                                                                                      आपका अपना, 
                                                                                                                                                        सुनील शर्मा।

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