हिंदी है हम वतन है हिंदोस्तां हमारा

प्रिय पाठक गण, 
सादर नमन।

आप सभी को हिंदी दिवस पर अनेकानेक शुभकामनाएं,  आपका जीवन समृद्ध हो,  आज आप से चर्चा करेंगे हिंदी की आज के समय आवश्यकता पर,  आज सामाजिक परिवेश में बड़ी ही तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है,  तब तो हिंदी का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। चाहे आप इसके महत्व को नकारे  व अंग्रेजी भाषा को अधिक सम्मान दें किन्तु इससे हिंदी भाषा का महत्व कम नहीं हो जाता।  

हिंदी गीत पहले रचे गए थे, पर आज भी जब हम सुनते हैं,  तब उनकी अमरता का सुंदर सा ऐहसास ( यह शब्द भले ही उर्दू या फ़ारसी का हो मुझे स्वयं ठीक से नहीं पता ) होता है लेकिन यही तो हिंदी की गरिमा है कि वह अन्य भाषा व उनके शब्दों को भी बड़ी आसानी से आत्मसात कर लेती है। आज जो समाज में शब्दों का महत्व कम हो रहा है,  सामाजिक जागृति के उपाय के बाद भी लोगों में अंधविश्वास है,  तब हमें और अधिक गहराई पूर्वक भाषा की ताकत को हृदय से महसूस करना होगा। 

हमारी मातृ भाषा,  राष्ट्रभाषा हमारे अपने भावों की अभिव्यक्ति का सबसे सुंदर माध्यम होती है,  आप अपनी मातृभाषा में जितने सुंदर ढंग से अपने आप को अभिव्यक्त कर पाते हैं,  अन्य भाषा में नहीं,  तो आइए हम अपने देश को प्रेम करते हुए इस माटी का कर्ज चुकाते हुए हिंदी की सेवा करें। उसे अपने बोलने का अभिव्यक्ति का माध्यम बनाएं,  गर्व से कहें व दोहराये यह पंक्तियां "हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा" मेरे प्यारे हिंदुस्तान में रहने वाले सभी प्रकार के  विभिन्न मतों को मानने वालों से भी यह राष्ट्र उतना ही प्रेम करता है जितना की हिंदी भाषा के लिए,  हमें अपनी मातृभाषा पर अवश्य गौरव होना चाहिए साथ ही अन्य भाषाओं का भी आदर करना चाहिए। 

आज संपूर्ण विश्व में एक समावेशी संस्कृति की ओर बढ़ रहा है,  पर अपनी परंपराएं जो सुंदर हैं,  उनका पालन करना व इसमें समय के साथ इसमें जो विकृतिया आ गई है,  उन्हें दूर करना भी हमारे सामाजिक कर्तव्यो में से एक हैं।
आनंद में डूब कर हम समवेत स्वर से जनगणमन गाएंगे जन गण मन अधिनायक जय है भारत का भाग्य विधाता है,  इन पंक्तियों में जन गण मन इन तीनों की जो कल्याण की कामना करता है वही सच्चा भारतीय है।  

आइये जन गण मन की कल्पना को हम सामूहिक रुप से राष्ट्र के हित की कामना करते हुए जो भी जहां पर कार्यरत है पूर्ण संकल्प से ईमानदारी से कार्य करते हुए इस राष्ट्र को ऊंचाइयों के सर्वोच्च शिखर पर स्थापित करें। हमारी परंपरा " सर्वे भवंतु सुखिन,  सर्वे संतु निरामया,  सर्वे भद्राणि पश्यंतु,  मां कश्चित् दुःख भाग भवेत्।" की रही है। ऐसी सुंदर भावोवाली स्वस्थ विचार वाली संस्कृति का हम सम्मान करें व राष्ट्र की कीर्ति में अपना योगदान दें। जय हिंद,  जय भारत।                                                     
विशेष = आप पाठकों का स्नेहा वह इसे पढ़ना ही मेरे लिए इसे लिखने का प्रेरणा स्त्रोत है इसी आशा सहित आप सभी का हृदय से आभार।                                                                                                                                                        

                                                                                                                                                             आपका अपना, 
                                                                                                                                                              सुनील शर्मा। 

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