अंर्तयात्रा भाग 12

प्रिय पाठक वृंद,
सादर नमन।

आपका दिन शुभ मंगलमय हो ईश्वरीय कृपा आप सभी पर सदैव बनी रह, इन्ही मंगलकामनाओं के साथ भाग 12 में आज बात करेंगे आस्था व विश्वास पर।

अगर हम अपने किसी भी विचार पर पूर्णरूपेण दृढ़तापूर्वक आंतरिक व बाह्य दोनों ही रूपों में दृढ़ रहते हैं जो प्रकृति के चमत्कार आपको अवश्य मिलेंगे आप आस्थावान रह अपनी स्वयं की प्रतिज्ञा के प्रति सचेत रह कर बारंबार उसे मानसिक रूप से दोहराते हैं तो आपका दृढ़  निश्चय.वैसी ही परिस्थितियों का निर्माण करने लगता है।

इसीलिए संगत का बड़ा महत्व दिया गया है अगर आपके मन में अच्छे विचारों का प्रादुर्भाव हैं तो आप वैसे ही व्यक्तियों के समीप पहुंचेंगे जिस प्रकार के आपके विचार हैं सूक्ष्म जगत  भी अपना प्रभाव निश्चित तौर पर दिखाता है सूक्ष्म जगत का प्रभाव स्थूल जगत पर अवश्य पढता हैं।

यहां.गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत कार्य करता है अखिल ब्रम्हांड में कई प्रकार की एनर्जी का प्रादुर्भाव होता रहता है आप कौन सी एनर्जी से जुड़ना चाहते हैं यह आप के आर्थिक विचार व पूर्व जन्मों के संचित कर्म तय कर देते हैं वह आपको अपने आप ही उस धारा की ओर बहा ले जाएंगे क्योंकि संचित कर्म अत्यंत ही शक्तिशाली होते हैं।

कर्म का बंध हमें अवश्य ही भोगना पड़ता है इससे मुक्त होने का एक ही उपाय है उस सर्व शक्तिमान परमात्मा को अपने सर्व कर्मों का समर्पण कर के हम कार्य करें ताकि हमारी मानसिक और शारीरिक दोनों ही़ उर्जा स्वस्थ बनी रहे।

इस सृष्टि में कई आयाम है उनमें से यह भी एक आयाम है कोई एक सत्ता केंद्र इस सृष्टि में अवश्य है जो एक निश्चित सिद्धांतों की वैज्ञानिकता के.तहत कार्य करता है न कि.काल्पनिक रूप मे यंह एक निश्चित सिदधांत पर कार्य करता है जैसे कार्य व कारण का सिद्धांत आप जो भी कार्य करते हैं वह अपने विचार के रूप में आप के भीतर प्रविष्ट होता है जब विचार.मे होता है तब वह कार्य रुप में भी अवश्य होता है।

यही सृष्टि का सिद्धांत है सृष्टि वह चाहे विचारों की हो या कर्म की पहले विचार रूप. मे.प्रकट होती है उसके उपरांत कार्य रुप में इसीलिए जब हम किसी भी काम में मन वचन.व कर्म.तीनों का प्रयोग एक दिशा में करते हैं तो हमे.उस केके  परिणाम प्राप्त होने लगते हैं।

विशेष = सृष्टि के अनुपम रहस्य को समझें वृक्ष सभी को समान रुप से प्राणवायू देते हैं, सूर्य सभी को समान रुप से प्रकाश देते हैं,चंद्रमा शीतलता व पृथ्वी सभी का भरण पोषण करती है। आकाश सभी के लिए है, जिन पंचतत्व से हमारा शरीर बना है, इसमें प्राण रूप में ईश्वर का अंश है, इस मनुष्य में विराजमान है, जिसे हम इस मनुष्य देह में आत्मा के नाम से पुकारते हैं, वह ऊर्जा ही हमारे प्राण तत्व है वह हमें भी इन तत्वों की भांति सबके ऊपर उपकार आत्म कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए।

आपका अपना,
सुनील शर्मा।

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