निजधर्म की उपेक्षा ना हो

प्रिय पाठक गण,
सादर वंदन,
आप सभी को मेरा मंगल प्रणाम,
  निज धर्म की उपेक्षा ना हो, निज धर्म से मेरा तात्पर्य स्वयं से है,जैसे मान लो कि मैं आप सभी को अच्छी बातें करता हूं,पर अपने निजी जीवन में उन सिद्धांतों या जीवन मूल्यों को स्वयं  के आचरण में नहीं उतारता तो फिर यह ब्लॉक केवल मेरा लिखना भर  ही रह जाएगा।
     ‌   इसका समुचित प्रभाव तो तब ही पैदा होगा, जब उन्हें इन बातों को अपनी वास्तविक जीवन चर्या में भी अपनाऊ, नहीं तो अगर मैं लिखता तो अच्छा हूं, पर उसे अपनाता नहीं, तो यह केवल प्रसिद्धि पाने की एक असफल सी कोशिश ही होगी।
          जमीन मूल्यों को स्वयं जीवन में उतार पाऊंगा, तभी ही मेरा है लेखन सर्वश्रेष्ठ रूप ले पाएगा, क्योंकि तब मेरे जो अनुभव होंगे वह उस आचरण के कारण जो अच्छा पर मुझे प्राप्त हुआ, उसे बताएंगे और ऐसा करने कि मैंने अपने जीवन में भरसक प्रयास किए हैं वह करता रहता हूं। जीवन में निरंतर सुधार ही जीवन है, जब भी हमें अपनी कोई चूक महसूस हो, उसे तुरंत ही सुधारना चाहिए, समय बीत जाने पर उस पर विचार का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।
निज धर्म में स्वयं का रक्षण, परिवार का रक्षण,फिर क्रमशः गली ,मोहल्ला, नगर ,राज्य ,देश व  विश्व यह क्रम होना चाहिए।
क्योंकि तुम बता ही तो जीवन को सुचारू रूप से चलाने हेतु एक आवश्यक उपाय हैं। मेरा विश्वास करें, ब्लॉक में मैंने जो भी लिखा है, नितांत निजी अनुभव का खजाना ही आप सबको दे रहा हूं।
मुझे इन उपायों को अपनाकर एक सार्थक जीवन दिशा मिली, तभी तो मैंने अपने अच्छे अनुभव को एक ब्लॉक की शक्ल देना तय किया।
हम अच्छे ,जग अच्छा।
नेकी करते रहिए, यह अवश्य फलती है।अपने परिवार का साथ किसी भी कीमत पर नहीं छोड़िए, लाख खामियां हो परिवार में, सहकार अगर बनाया जाए तो बात बन ही जाती है।
परिवार व समाज में आपस में सभी को जोड़िए, जीवन जीने का मुख्य सूत्र है।
विशेष:-अपनी निजता व स्वाभिमान को कायम रखते हुए भी परिवार हित में अगर उसे त्यागना  पड़े तो हमेशा तैयार रहना चाहिए। टूटे नगर रिश्तो में आती है तो वक्त मरहम बनता है, अपने अच्छे दृष्टिकोण व विचारों का दृढ़ता पूर्वक पालन करें, आप अवश्य ही जीवन में यश की प्राप्ति करेंगे।
आपका अपना
सुनील शर्मा

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