सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम।
मैं और आप सब हम सभी लोग इस समय एक अदृश्य महामारी का सामना कर रहे हैं। अब जबकि यह अदृश्य है, तमाम मानव जाति के सामने एक भीषण संकट है, हमें इसके तात्कालिक उपायों को करने के साथ पुनः हमारी सांस्कृतिक विरासत को देखना होगा।
जहां पर सूक्ष्म दृष्टि से हमारी पुरी सांस्कृतिक रचना,जिसे हम सनातन संस्कृति कहते हैं,उसके रहस्यो को समझना होगा व उस पर अमल करना होगा।
आज विदेशों में हमारी जो हवन व यज्ञ की हमारी संस्कृति है, उस पर शोध हो रहे हैं, वे हमारे प्राचीन संस्कृति व ज्ञान पर अमल कर रहे हैं और हम हमारी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं।
अभी ताजा रिसर्च मैं यह साबित हुआ है कि हम हवन सामग्री इसमें कई जड़ी बूटियां शामिल होती है, 1 किलोग्राम के बराबर हवन सामग्री से हवन किया जाता है, तो लगभग 94% बीमारियों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं, तथा यह लगभग 1 माह तक प्रभावी रहते हैं।
इतनी शक्तिशाली व वैज्ञानिक हमारी संस्कृति को छोड़ हम भौतिकवाद की ओर तेजी से जो अग्रसर हुए हैं, उसी का दुष्परिणाम हमें यह प्राप्त हो रहा है।
हमें आज के दौर में प्रतिस्पर्धा के कारण कई समझौते करना पड़ते हैं, पर हमें प्रकृति से सामंजस्य को नहीं भूलना चाहिए, हमारी संस्कृति में नवग्रह के मंत्र भी हैं, सनातन संस्कृति में चार वेद है।
जिनके नाम क्रमशः ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद, यजुर्वेद है।
इन सभी ग्रंथों में संपूर्ण ज्ञान मंत्रों सहित बताया गया है, जो कि एक सूक्ष्म प्रक्रिया ही है।
हमारे हिंदू सनातन संस्कृति के इस मंत्र पर गौर करें
सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मां कश्चित् दुख भाग भवेत्।
इस प्रकार हमारी संस्कृति तो सबके मंगल की कामना करते हुए स्वस्थ जीवन शैली का उद्घोष करती है।
हमारी संस्कृति पूर्ण वैज्ञानिक है,इसमें प्रकृति से संतुलन को अपनाते हुए जीवन जीने की अवधारणा पर बल प्रदान किया गया है।
एक और मंत्र देखें, ओम त्र्यंबकम यजामहे, सुगंधिम पुष्टिवर्धनम, उर्वारिक बंधनान्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
इस मंत्र में भी हमारी शारीरिक पुष्टि की कामना की गई है, तथा हम जो हवन करते हैं उसने भी औषधी का हवन किया जाता है, इस प्रकार हम अवलोकन करें तो हमारी संस्कृति का वैविध्य हमें आश्चर्यचकित कर देगा, और आप पाएंगे कि यह वास्तव में अद्भुत है।
अब हम एक और बात पर गौर करें तो हमारा शरीर पंचमहाभूत पृथ्वी, आकाश, वायु, जल, अग्नि इन से निर्मित है, इसमें जो प्राण तत्व है, वही हममें ईश्वर का अंश है, जिसे हम हमारी जीवन ऊर्जा कह सकते हैं, हम हमारी जीवन ऊर्जा को अभ्यास द्वारा बढ़ा भी सकते हैं।
जितना नैसर्गिक व प्राकृतिक हमारा जीवन होगा, उतनी ही हमारी जीवनी शक्ति प्रबल होगी।
हम अंग्रेजी में जिसे इम्यून सिस्टम कह सकते है,हिंदी में ही रोग प्रतिकारक क्षमता भी कह सकते हैं।
हमारी संस्कृति में त्यौहार है, पग पग पर लोक संस्कृति में कोई पर्व है, जिसमें गीत संगीत के द्वारा जीवन के उल्लास को बनाए रखा गया है, इससे भी हमारी जीवन चेतना व ऊर्जा का विकास होता है, हम तनाव रहित होते हैं।
हमारी संस्कृति प्रकृति का संपूर्ण आदर करते हुए उससे समायोजन पर बल देती है, हम प्रकृति का संरक्षण करें वह हमारा रक्षण करेगी इस प्रकार का सुंदर भाव हमारी संस्कृति में संनिहित है।
हमारी संस्कृति नदियों ,पेड़ों, पौधों सभी के रक्षण पर बल देती है, हमारी संस्कृति में नदियों को भी मां का दर्जा दिया गया है, पृथ्वी को माता कहा गया है, सूर्य देव की उपासना पर भी बल दिया गया है, हमारी संस्कृति प्रकृति का आदर करते हुए उनका संरक्षण करती है।
मगर आज के मानव ने समस्त माननीय मर्यादाओं को किनारे पर रख दिया है, प्रकृति की अंधाधुंध दोहन से यह स्थिति निर्मित हुई है।
यह समय हमें सबक देने वाला है, अगर हम इस से सीख सकें, अन्यथा आज यह महामारी है, कल कोई दूसरी होगी।मेरा यहां दृढ़ विश्वास है कि हमें तात्कालिक जो उपाय हैं वह तो सभी करना ही है, हमें हमारी संस्कृति में जो सूत्र दिए हैं ,उनके परिपालन पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।
जिसमें जीवन को सही तरीके से कैसे जिया जाता है,वो व्यवस्था हमारे प्राचीन ऋषि यों द्वारा गहन अनुसंधान के द्वारा बनाई गई है, विदेशों में भी इस पर शोध हो रहे हैं, वे इसे अपना रहे हैं और हम लोग हमारी मूल संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं।
मेरे कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि हम अभी के विज्ञान से मुंह मोड़ ले, पर विज्ञान व प्रकृति का उचित समन्वय ही मानव जाति को उत्थान की ओर ले जा सकता है, हमें प्राकृतिक संरक्षण पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।
संपूर्ण मानव जाति को विनाश से रोकने के लिए यह आवश्यक कदम उठाने ही होंगे,इसमें वास्तव में भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
विशेष:-वर्तमान समय में अभी तो हमें इस महामारी का मुकाबला करना ही है, मगर जैसी परिस्थितियां निर्मित हुई है, हमें बहुत सी चीजों पर गौर करना होगा।
हमें पर्यावरण संरक्षण का ख्याल रखना ही होगा, संपूर्ण विश्व को इस बारे में एक विशेष संविधान बनाने की जरूरत है, जो संपूर्ण विश्व के हित में हो , भारत देश इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
जय हिंद ,जय भारत।
आपका अपना
सुनील शर्मा
इति शुभम भवतु
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