व्यक्तित्व निर्माण

प्रिय पाठक वृंद,
सादर नमन,
आप सभी सुधी पाठकों को मेरा ह्रदय से पुनः मंगल प्रणाम।
आइए, आज हम संवाद करते हैं, व्यक्तित्व निर्माण पर,
हर व्यक्ति में कुछ न कुछ विशिष्टता अवश्य होती है, किसी में प्रबंधन, किसी में दयालुता, किसी में संघर्ष की क्षमता, इस प्रकार किसी भी व्यक्ति की मौलिक जो भी विशेषता है, वह संपूर्ण रूप से निखर कर आए, यही मेरी नजर में व्यक्तित्व निर्माण है।
         आज जब प्रतिस्पर्धा चरम पर है, तब तो यह और भी आवश्यक है कि हम अनावश्यक विचारों से बचें, जो हमारे जीवन के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, उसका चयन करें।
    ‌  ‌‌‌‌  निश्चित ही परिवार, समाज, शिक्षक व सामाजिक परिवेश,स्वयं की प्रज्ञा यह सब इन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।
       अगर हमें वैश्विक शांति व खुशहाली का वातावरण बनाना है, तो हमें सभी क्षेत्रों में राजनीतिक, सहकारिता का नेतृत्व, अध्यापक, डॉक्टर, इंजीनियर व सामान्य वर्ग,
       सभी में एक मानवीय विचार हमें डालना होगा, और इसके लिए हमें एक वातावरण तैयार करना होगा, जहां पर केवल मानवीय मूल्यों की ही बात हो, उसी को मद्देनजर रखकर कार्य हो।
        सहयोग ही सफलता का मूल मंत्र है, न केवल मानवीय सहयोग, अपितु संपूर्ण ब्रह्मांड से सहयोग।
        पृथ्वी ,जल ,अग्नि ,वायु ,आकाश इन पांच तत्वों के सहयोग से यह हमारा मानव शरीर निर्मित हुआ है, तथा इसमें परम चेतना का जो अंश है उसी के कारण हम जीवित रहते हैं। कुछ हम प्रकृति से ले, तो बदले में उसे दे भी, हमारी सनातन संस्कृति में तो यह भाव शुरू से ही विद्यमान है।
      प्रकृति से हम जब ले रहे हैं, तब उसका संरक्षण भी इतना ही आवश्यक है। समाज से भी हम जो ले रहे हैं, पुनः समाज में उसका वितरण भी हो, यह सब बातें हमें संस्कार रूप में डालना चाहिए।
    जब बच्चों की उम्र छोटी होती है,तब हम किस प्रकार का वातावरण व परिवेश  प्रदान करते हैं, उस समय उनके मानस में अच्छी बातों की, मानवीयता, दयालुता, संवेदना, निडरता इन मानवीय गुणों  की हम उन में स्थापना कर सकते हैं, क्योंकि जो शैशव काल होता है, इस दौरान हम जैसा भी उन्हें सिखाते हैं, उनके अंतर्मन पर उसका गहरा प्रभाव होता है।
         व्यक्तित्व निर्माण के प्रयास हर काल में होते रहे हैं,  युग अनुरूप इसमें आवश्यक फेरबदल भी होना चाहिए।
       आज व्यक्तित्व निर्माण में इन पहलुओं को अवश्य जोड़ा जाना चाहिए।
(1) सहयोग:- सभी से प्रकृति, मानव व संपूर्ण ब्रह्मांड से जिसके हम छोटे से हिस्से हैं, हमें सहयोग करना चाहिए, वह सहयोग किस प्रकार का हो, जब हम उसी ब्रह्मांड के एक छोटे से हिस्से हैं, तो हमारा कोई भी कार्यकलाप ऐसा नहीं होना चाहिए जो उसके विरुद्ध हो।
(2) समर्पण:- लक्ष्य के प्रति संपूर्ण निष्ठा से समर्पण,यह गुण हमें व्यक्तित्व के अंदर प्रतिस्थापित करना होगा।
(3) ज्ञान व विज्ञान:- हमें ज्ञान विज्ञान दोनों का पूरक रूप में संतुलित विकास के लिए किस प्रकार प्रयोग करें, यह मनुष्य के व्यक्तित्व में डालना होगा।
(4) मानवीयता:- हमें नई पीढ़ी के ऐसे विश्व मानव तैयार करना होंगे, जो मानवीयता से ओत-प्रोत हो।
(5) नीतिगत नियमो का पालन:- नीतिगत नियमों का पालन अनिवार्य रूप से करें, जो हमारे लिए गलत है, वही नियम समान रूप से दूसरे के लिए भी लागू होता है, कोई भी कार्य नियम विरुद्ध न करें।
(6) वैश्विक आधार:- आज जब संपूर्ण विश्व एक दूसरे पर हर तरह  से आधारित है, तब हमें एक वैश्विक सभ्यता का निर्माण करना होगा व ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण हमें शिक्षा पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन करके ही करना होगा, जहां पर नैतिक व मानवीय आधार सबसे सर्वोपरि हो, ऐसी विश्व संरचना को हमें तैयार करना पड़ेगा।
(7) विविधता में एकता:- यह हमारी संस्कृति का मूल तत्व रहा है, अब समय आ गया है इसे संपूर्ण विश्व में पूर्ण ईमानदारी से लागू करने की और कार्य किया जाए।
       इन बातों को ध्यान में रखकर हमें आज के मानवीय व्यक्तित्व को तैयार करना चाहिए, ताकि आने वाले समय में हमें शांति भरा और सुकून भरा समाज देखने को मिले, इस समय सभी वैश्विक नेताओं का यह नैतिक दायित्व भी बनता है।
    हर एक व्यक्ति अपने आप में महत्वपूर्ण है, विशिष्ट है, यह अंतरबोध हमे उसे दिलाना होगा, इस प्रकार जब हम मानवीय चेतना को जागृत कर सके , तभी हम अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण कर सकेंगे व मानवीय संबंधों के बीच सेतु का कार्य कर सकेंगे, न कि विश्व के विध्वंस का।
अगर हम यह मानवीय चेतना इस सदी में विकसित कर सकें, तभी संपूर्ण विश्व कल्याण के पथ पर अग्रसर हो सकेगा।
इति शुभम भवतु, 
जय हिंद,
जय भारत।
आपका अपना
सुनील शर्मा।



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