सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
मेरी यह वैचारिक प्रवाह यात्रा आपको कैसी लग रही है, कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया अवश्य दें।
समाज का निर्माण हम सभी से मिलकर होता है, इसीलिए समाज निर्माण में हम सभी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदारी अवश्य होती है।
अब सवाल यह है कि हम जैसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं, उसके प्रति हम सब स्वयं कितने सजग हैं, क्योंकि हमारी सजगता व समाज के प्रति हमारी सही जवाबदेह ही एक स्वस्थ समाज के निर्माण में सहायक होगी।
जिस देश का समाज स्वस्थ होगा, उन्नति शील विचारों से भरपूर होगा, समाज के सभी वर्ग समाज के हित में कार्य करेंगे, तभी हम समाज का निर्माण कर सकेंगे।
हर काल में नई चुनौती समाज के सामने आती है, उनमें से सबसे महत्वपूर्ण चुनौती पुरानी गलत मान्यताओं को अस्वीकार करके सही मान्यताओं ,जो तात्कालिक परिवेश में अधिक उपयुक्त जान पड़ती है, उन्हें अपनाने की है।
सभी पुरानी मान्यताएं गलत नहीं होती है वह मान्यता जो समय अनुकूल हो, तात्कालिक परिवेश की आवश्यकता को समझ कर नई व पुरानी दोनों में से जो समाज हित में उपयोगी हो उन्हें स्वीकार्यता प्रदान करें।
बदलाव प्रकृति का नियम है, और अच्छे बदलाव को सामाजिक व्यवस्था का अंग बनाना ही समाज का निर्माण करना है।
हमें समाज के निर्माण के लिए वैचारिक संकीर्णता को त्यागना होगा, तभी समाज का उत्थान व निर्माण संभव है।
समाज के सभी वर्ग एक दूसरे के पूरक व सहायक बने, ना कि उनमें वैचारिक संघर्ष हो, कई शताब्दियों से चली आ रही खोखली परंपराओं में से सही परंपरा को जीवित रखने और गलत परंपराओं को ध्वस्त करने का भी हम में साहस होना चाहिए, तभी समाज का निर्माण संभव है।
जब हम स्वयं पूर्ण श्रद्धा से इसके बदलाव के लिए स्वयं भी तैयार होंगे व औरों को भी इसके लिए प्रेरित कर सकेंगे, सदैव गतिशील , विचारशील व प्रयोग धर्मी समाज ही आगे बढ़ते हैं, आइए प्रण करें समाज के निर्माण में हमारी भूमिका हम स्वयं चुने व इस का निर्वहन करें, किस प्रकार से एक बेहतर समाज का निर्माण किया जा सकता है, उस पर विचार करें, मंथन करें, पहल तो करें ,राहे स्वयं बन जाएगी।
विशेष:-समाज का निर्माण समाज के सभी वर्गों की जवाबदारी है, यह सब पर निर्भर है कि वह कैसे अपनी सामाजिक जवाबदेही का समुचित उत्तरदायित्व वहन करते हैं। एक बेहतर समाज का निर्माण तभी संभव है जब सभी वर्ग समाज हित में चिंतन करें व उस में सहभागी बने।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय हिंद
जय भारत।
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