मानवीयता

प्रिय पाठक गण,
       सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
                             उसे परमपिता परमेश्वर की ही हम सभी संतान है, एक सच जो हम सभी को पता है, भीतर से  हम सभी
जानते हैं, मगर हमारा अहंकार ही है, जो उसे सच को हर बार ढक लेता है, उसे परम शक्ति ने जब यह सृष्टि उत्पन्न की, तब कि बोध के साथ सृष्टि को बनाया , गहन अध्ययन करें, जब सभी तत्व भूमि, आकाश, वायु , जल , खनिज पदार्थ, वृक्ष, नदियां व यह 
संपूर्ण बह्मांड जिस प्रकार से इसकी रचना है, उसका शाश्वत 
सिद्धांत अगर हमारी समझ में आ जाये कि सारे अनर्थों की जड़ केवल हमारा अहंकार ही है।
                 अगर हम इसे ईश्वरीय वरदान माने तो बतायें, उसने 
संपूर्ण संसार से क्या इन चीजों का क्या कोई शुल्क लिया है, उस परमपिता ने सभी के लिये समान रूप से इनका वितरण किया है।
क्या वायु व सूर्य का प्रकाश हम सभी को समान रूप से प्राप्त नहीं है, क्या पृथ्वी माता हम सभी का समान रूप से पोषण नहीं करती है, जब उसे परम पिता ने इस सृष्टि के मूल विधान की रचना ही इस प्रकार की है, सबके लिए उसने उधर चित्त होकर सारी व्यवस्था समान रूप से वितरित की है, तो हमें समग्रतापूर्वक गहन दृष्टि से यह विचार करना चाहिए कि आखिरकार हमसे  चूक कहां हो रही है।
        धर्म तो एक ही है, मानवीयता, उसके सिवाय जितने भी है वह सारे पंथ हैं, रास्ते है, मूल सत्य तो एक ही है, इसको उदाहरण द्वारा समझे, जैसे मान लो, इंदौर में राजवाड़ा , तो सत्य तो एक राजवाड़ा है, उस तक पहुंचने के मार्ग अवश्य भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। अगर हमें राजवाड़ा पहुंचना है, तो भिन्न-भिन्न मार्ग से भी मार्ग तो हमें उसे और जाने वाला ही पकड़ना होगा, तभी हम राजवाड़ा तक पहुंच सकेंगे, ऐसा तो नहीं हो सकता कि हम अन्य कोई मार्ग पकड़ ले और राजवाड़ा पहुंच जाए, इसी प्रकार एक सत्य धर्म ही है, वह है मानवीयता।
                   अब एक और उदाहरण से समझते हैं, इस सृष्टि में सभी मनुष्यों के रक्त का रंग एक है  है, चाहे वह नर हो या नारी, अगर उसे भेद ही करना होता तो वह सभी के रक्त के  रंग को भिन्न-भिन्न कर देता । 
                शिव व शक्ति, न शिव है नर शिव है  व नारी शक्ति है ,
  इस प्रकार संपूर्ण संसार का असल स्वरूप तो यही है। नर व नारी इनसे ही फिर आगे की सृष्टि जन्मती है। केवल हमारी मनुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ क्यों कही गई, हम अपने जीवन काल में ही उस स्थिति को पा सकते हैं, जिस स्थिति का नाम मोक्ष है ।
             हां, मेरे स्व अनुभव में तो यह संपूर्ण ब्रह्मांड स्वर्ग ही है ,
यदि हम सृष्टि के नियमों को सही समझे, अन्यथा हमारा यही जीवन नर्क है। स्वर्ग की सृष्टि तब होगी, जब हम मानवीय गुणो को अपनायें। सहयोग, क्षमा, उदारता, मैत्री भाव, करुणा, प्रकृति के प्रति संरक्षण का भाव ना कि मात्र केवल दोहन, अगर हम प्रकृति से ले रहे हैं तो उसे पुनः लौटाना भी हमारा कर्तव्य है। 
              वृक्षों को लगाना, तालाबों का संरक्षण, नदियों का संरक्षण, सभी साधन जो हमें प्रकृति ने निःशुल्क दिये हैं, उसके लिए उस परमेश्वर को धन्यवाद वह उसके समान वितरण हेतु यथाशक्ति प्रयत्न, यही एक मार्ग है, यही एक मार्ग है जो मानव व सृष्टि के विनाश को रोक सकता है।
              हमने अपने अल्पज्ञान से जीवन में कई प्रकार के 
विरोधाभास खड़े कर लिये है। वह तो हमारा जीवन नारकीय यंत्रणा से ग्रस्त है, जैसे ही हमें प्रकृति के मूल सिद्धांत समझ आ
जायेगा, हमारी उलझने स्वत समाप्त हो जायेगी।
            माननीय स्वभाव  है कि वह जिज्ञासु प्रवृत्ति का रहा है,
पर यह जिज्ञासा मात्र भौतिक पदार्थों की है तो निश्चित ही विनाश का ही संकेत है। भौतिकता व ज्ञान का उचित संगम ही हमें 
परिपूर्ण करता है, यह ज्ञान होना कि जब परमात्मा ने किसी प्रकार का भेद किया ही नहीं, तब हम क्यों कर रहे हैं, और अगर हम ऐसा कर रहे हैं तो निश्चित ही सृष्टि के मूल नियम की अनदेखी कर रहैं  हैं वह प्रणाम निश्चित ही विपरीत ही होगे ।
             यह तो पिंडे तत ब्रह्मांडे , यह सूत्र वाक्य इसी  ज्ञान पर आधारित है, हम जो भी विचार इस ब्रह्मांड में छोड़ते हैं, वही परिवर्तित होकर हम तक पहुंच रहा है। अच्छा बोले, अच्छा सोचे,
अच्छा ही प्रयास करें।
            मानवीय  मूल्यों को बचाएं, मावीय मूल्यों का हम आदर करें , यही यही हमारे लिए उचित होगा। 


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