सादर नमन,
प्रथम संवाद हमारा स्वयं से होना चाहिये, हम क्या कर रहे है , क्यों कर रहे हैं, उसका हम क्या परिणाम चाहते हैं।
जीवन में संतुलन की स्थापना किस प्रकार हो, हम सभी का जीवन चाहे -अनचाहे ही सही, आपस में जुड़ा ही है, क्या हम ऐसे समाज या परिवार की कल्पना कर सकते हैं, जहां पर सब सहयोग करने की बजाय आपसी खींचतान करते हो, अगर ऐसा होता है,
तो यह एक अच्छा संकेत नहीं है, हमें स्वयं सबसे पहले सहयोगात्मक वह सकारात्मक रूख पर ही कार्य करना होगा, स्व- परिवर्तन मैं दृढ़ता अगर होगी तो हमारे आसपास भी परिवर्तन अवश्य होगा।
स्वर्ग व नरक दोनों का निर्माण हमारे स्वयं के हाथों में है। जहां पर सहयोग है, समर्पण है, निष्ठा है, एक -दूसरे के प्रति कुछ करने का भाव है, वहां पर स्वर्ग की सृष्टि स्वयं ही हो जायेगी, जहां पर हम आपसे खींचतान में होंगे, नरक का निर्माण हम स्वयं कर होंगे।
सामंजस्य के जहां पर स्वर हो, वहां पर स्वर्ग ही है, जहां पर सामंजस्य नहीं है, वहीं पर नर्क है, सबसे पहले हम स्वयं का सुधार करें, फिर उस सुधार पर दृढ़तापूर्वक हम अमल करें, ऐसा करने पर हमारे आसपास भी परिवर्तन अवश्य आयेगा ही।
अपनी मौलिक सोच पर पूर्ण दृढ़ रहे, जब भी ,जहां भी ,
जैसे भी हो, हम प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करें, माना कि सबका स्वभाव भिन्न है, मगर फिर भी लगातार अच्छी दिशा में की गई कोशिश अंततः सुखद परिणाम ही लाती है।
हम साधनों का उपयोग करें न कि साधन हमारा, जब साधन हमारी सोच -समझ पर हावी हो जाये तो समझे हम कहीं ना कहीं गलत राह पर हैं, चिंतन- मनन द्वारा ही इसका समाधान संभव है।
हम स्वयं कहां पर चूक कर रहे हैं, इसे भी समझना आवश्यक है, प्रतिदिन हमें क्या करना है, क्या नहीं, इसका जितना सही निर्धारण हम करते जायेंगे, उतना ही अधिक प्रभावी ढंग से हम अपने जीवन को सही दिशा की और लेते जायेंगे, स्वयं के विचारों के बीच में जो बहुत सारे विचार एकत्र हो जाते हैं, उनमें से हमें जिन पर कार्य करना है, वह हम अलग कर ले, तभी हम हमारे कार्य का निर्धारण सही रूप में कर सकते हैं, जितना हम अपने आप को व्यवस्थित करते हैं, उतना ही अधिक सुधार हमें जीवन में देखने को प्राप्त होगा।
समय अनुकूल निर्णय क्या सही है, परिस्थितियों का सही निर्धारण करने के बाद तुरंत निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करना, यह आपको स्वयं सीखना होगा, आप जितनी सूझबूझ से निर्णय लेंगे, उतनी ही सटीकता आपके जीवन में आती जायेगी, अपनी आंतरिक दृढ़ता को कायम रखें।
स्वयं परिस्थितियों का सही अवलोकन करे, उसके उपरांत निर्णय ले, आपका निर्णय सही होते जायेंगे। बुद्धिमानी पूर्वक सोच समझ कर, आसपास की घटनाओं का सही विश्लेषण करने के बाद आप जो भी निर्णय लेंगे, वह कमोबेश सही होगा।
आपकाअपना
सुनील शर्मा
जयभारत
जय हिंद।
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें