सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
मुझे पूर्ण विश्वास है, विभिन्न विषयों पर लिखे गये मेरे लेख आपको निश्चित ही पसंद आ रहे होंगे, यदि आप किसी विषय-विशेष पर मुझे संवाद करना चाहते हैं, इसका माध्यम मेरे यह लेख है, जिसे मैं समझ में हो रही, घट रही, विभिन्न परिस्थितियों, जिनमें वर्तमान समय, हमारी प्राचीन संस्कृति, युवा वर्ग, राजनीतिक संवाद, शिक्षा, वर्तमान में क्या प्रासंगिक, सभी विषयों पर मैंने अपनी पूर्ण कोशिश की है, पूर्ण हृदय से लिखने की।
जो मुझे भीतर से सही लगा, वही सब मैंने मेरी लेखनी में लिखा है, जिसका मूल उद्देश्य मेरा सामाजिक चेतना को जागृत करना ही है, अगर हमारा युवा वर्ग, महिला वर्ग अगर मेरे इन लेखो का मूल उद्देश्य अगर समझ गए, तो मैं समझूंगा, मेरा लेखन एक सार्थक दिशा में जा रहा है, मेरा पूर्ण प्रयास है , जो मैं दिल से महसूस करता हूं, वही लिखू।
जब भाषा में बनावट आ जाती है, तो वह हमें आपस में आंतरिक रूप से नहीं जोड़ पाती है।
मां सरस्वती की मुझ पर अनुपम कृपा है कि वह मुझे नित्य निरंतर प्रेरणा प्रदान करती है, आंतरिक जो भी मेरी सोच है, वह मेरी कलम या लेखनी के द्वारा प्रकट हो, अगर मेरी लिखने द्वारा सामाजिक सार्थक परिवर्तन आता है, तो मैं इसे अपने जीवन का सौभाग्य समझूंगा।
आते हैं आज के मूल विषय पर जियो और जीने दो।
मनुष्य ही है, जो सबसे अधिक बुद्धिमान प्राणी है, जिसे ईश्वर ने सोचने- समझने, बात करने, मनन करने की जो क्षमता प्रदान की है, वह अन्य किसी भी योनि में हमें प्राप्त नहीं है, हम सभी मनुष्य हैं, इस प्रकार हमारा जीवन हम इस तरह से जिए कि हमारा तो जीवन यापन हो ही, साथ में हमारे आसपास भी जो है, वह अपना जीवन यापन सुख पूर्वक कर सके।
यह एक मनुष्य होने का सबसे बड़ा गुण है, और यही हमें मनुष्यता प्रदान करता है, वरना फिर जानवर भी अपना जीवन यापन कर ही लेते हैं, वे भी खाना खाते और अन्य वही क्रिया जो हम करते हैं सभी वे भी करते हैं ।
मंत्र मनुष्य जीवन में ही हमें यह सुविधा प्राप्त है, हम अपने आप को मनुष्य बन सकते हैं, हम हमारे भीतर मानवीय गुणों
जैसे समता, दया ,करुणा , आपस में प्रेम, एक दूसरे की आवश्यकता पड़ने पर मदद हम कर सकते हैं, यह भाव जब संपूर्ण समझ होगा तो सामंजस्य बढ़ेगी, मेरे संपूर्ण लेखो का जो मौलिक उद्देश्य है, वह केवल सार रूप में यही है।
हम अपने आप ही, स्वयं अपने जीवन की समीक्षा करें, क्या हम सही राह पर हैं, अगर कहीं हमें भीतर कुछ ऐसा लगता है कि
कुछ तो सुधार की गुंजाइश है, अगर हम स्वयं को थोड़ी दिशा भी प्रदान कर पाए, तो हमारे आसपास रहने वाले भी हमारी निरंतर सही दिशा में आस्था देखकर परिवर्तन अवश्यं करेंगे।
हम अपने परिवार में सबसे पहले उचित सामंजस्य का निर्माण करें, फिर क्रमशः गली, मोहल्ला, नगर, जिला व राष्ट्र इस प्रकार हम एक राह बनाये।
आपका अपना
सुनीलशर्मा
जयभारत
जय हिंद।
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