अंतर्यात्रा ( भाग 5 )

प्रिय पाठक वृंद, 
आपका दिन शुभ व मंगलमय हो।

अंतः प्रेरणा जो हमारे भीतर से उठती है,  जिसे हम अवचेतन भी कह सकते हैं। चेतन व अवचेतन,  कभी-कभी अवचेतन मन चेतन से भी शक्तिशाली हो जाता है।

अतः अपने भीतर उठ रहे सभी विचारों की शृंखला चलने अवश्य दे,  पर उनके साथ कोई भी छेड़खानी न करते हुए  शांत चित्त इन सभी विचारों को जाने जो आपके भीतर उठ रहे है। द्वितीय क्रम में उनमें से अनावश्यक व आवश्यक दो श्रेणियों में विभाजन करें। क्या आप की परिस्थिति से वह मेल खाते विचार हैं। पूर्ण रूप से अपने विचारों को जानने का पूर्ण ईमानदारी से प्रयत्न करें। फिर उन विचारों पर अमल करने के बाद परिणामों का अध्ययन करें। याद रखिए आपका कोई सा भी कर्म  विचार से ही प्रारंभ होता है,  वह मूर्त रुप बाद में लेता है। सोच विचार कर अपने विचारों को गढ़े। 

जीवन जीने की एक निश्चित प्रक्रिया अपनाएं,  इसमें आपका समय संयोजन, आर्थिक संयोजन,  वैचारिक संयोजन तीनों का सम्मिश्रण हो। आज के समय में आर्थिक पहलू भी एक आवश्यक अनिवार्य घटक है। जिस प्रकार से सामाजिक वातावरण निर्मित हो रहा है। राजनेता व समाज दोनों ही अपना संयम व धैर्य खो रहे हैं। इस बात की महत्ता और बढ़ जाती है क्योंकि साधन तो अल्प है और कार्य अधिक। विचारशील होकर ही आप अपनी सामर्थ्य को क्रमशः बढ़ा सकते हैं।

समस्याओं के निराकरण हेतू पूर्ण सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर उनका हल निकालने का प्रयास करें,  आप अवश्य सफल होंगे।  साहसी बने,  विचारवान बने,  बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय ले,  आप के मार्ग की कठिनाइयां धीरे-धीरे कम होने लगेगी। आप व्यापार के क्षेत्र में हो या नौकरी के क्षेत्र में पूर्ण सजग होकर निर्णय ले। 

विशेष = परिस्थितियों का संपूर्ण अवलोकन करने के उपरांत निर्णय ले,  आप निश्चित ही सही निर्णय की ओर अग्रसर होंगे। 

                                                                                                                                                               आपका अपना,
                                                                                                                                                                 सुनील शर्मा।

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