विश्व धर्म और हमारी भूमिका

प्रिया पाठक गण,
सादर वंदन,
आप सभी को मेरा मंगल प्रणाम,
आज विवेकानंद जयंती है,उनके मंगल विचारों को हम आत्मसात कर सके, तो ही हम विश्व गुरु कहला सकते हैं।
      भारतवर्ष की मुख्य उर्जा इसकी संस्कृति में ही निहित है। आज देश में पुनः चिंतन की जरूरत है कि हम क्यों समावेशी संस्कृति को भूल रहे हैं।
     आज विश्व में किसी ने अगर अमंगल किया है, तो वह अमंगल है वैचारिक प्रदूषण, अगर हमें अपनी संस्कृति को बचाना है, वापस उसे विश्व गुरु बनाना है, तो आपको यह सूत्र तो याद करना ही होगा। 
       याद करिए,जब स्वामी विवेकानंद शिकागो धर्म सभा में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे,तब उन्हें सुनने के बाद संपूर्ण हाल में जहां उन्होंने उद्ब़ोधन  दिया था, बहुत सभागृह करतल ध्वनि से गूंज उठा था।
       क्योंकि उन्होंने अपने उद्बोधन में हिंदू संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ तो माना था परंतु अन्य पंथ व धर्मों को हेय नहीं माना।
       स्वामी विवेकानंद अवतारी महापुरुष थे, जिन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को समझा वह उन्हें दूर करने हेतु अथकजिन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को समझा वह उन्हें दूर करने हेतु अथक प्रयास किया। मानव सेवा को उन्होंने अपने जीवन में माध्यम बनाया।
        आज उनके जन्मदिवस के मौके पर सच्ची श्रृद्धांजलि तो वही होगी जब हम राष्ट्र धर्म की बात करें, परंतु दुर्भाग्य से देश में परिपाटी व्यक्ति पूजा की हो चली है।
 जबकि वैचारिकता को प्रमुख स्थान होना चाहिए था।
हमारा देश विचारमूलक देश है, इतने रामकृष्ण, नानक,कबीर, तुलसी, मीरा इनको इनके श्रेष्ठ विचारों के कारण ही महापुरुष जाना।
 ‌    वर्तमान में जो भी व्यक्तित्व राष्ट्र निर्माण में लगे हैं, जिनकी ऊर्जा इस राष्ट्र को बनाने में लगी है। जो सृजन करना चाहते हैं, वे सभी बधाई के पात्र हैं।
      ईश्वर उन्हें आंतरिक बल प्रदान करें,इसी शुभेच्छा के साथ इस लेख का समापन करना चाहूंगा।
     जय हिंद, जय भारत।
विशेष,:-आज विवेकानंद जी के विचार और अधिक प्रासंगिक है, जिन्होंने हिंदू धर्म को सर्वश्रेष्ठ प्रमाणित करते हुए भी अन्य उपासना पद्धति को हेय दृष्टि से न देखने की बात कही थी। आज अगर विश्व हिंसा या उन्माद के विचार से ग्रस्त हैं, तब तो उनके विचारों को और अधिक दृढ़ता पूर्वक अमल में लाया जाना चाहिए, यही विश्व धर्म है।
     आपका अपना
     सुनील शर्मा
इति शुभम भवतु।

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