असीम कृपा

प्रिया पाठक गण,
सादर वंदन
आप सभी को मेरा मंगल प्रणाम,
परमपिता परमेश्वर की असीम कृपा को हृदय  में धारण करते हुए उनकी अनुकंपा को संपूर्ण शरीर में महसूस करते हुए शब्दों को लिख रहा हूं।
उनकी असीम कृपा ही जीवन में मंगल प्रदान करती है।
जहां सुमति तहां संपति नाना, इस सुंदर वाक्य को भलीभांति समझ कर जो भी हृदय से मेरे प्रभु का स्मरण करता है उन्हें हर पल जीवन में मंगल कृपा शरण का अनुभव होता है।
स्वयं ही प्रकट होकर एक मंगलमय अनंत ऊर्जा का निर्माण करने लगता है। उसका तेज देह में प्रकट होता है, उनके देदीप्यमान स्वरूप की वंदना करते करते हुए भक्त स्वयं ही उनका रूप हो जाते हैं।
      परम मंगलकारी प्रभु श्री राम जी के चरणों में मंगल वंदन वअसीम कृपा ही जगत में मंगल यश को प्रदान करने वाली है।
     जो उनकी शरण ओट में चल देते हैं, दे प्रभु स्वयं भक्तों के साथ प्रतिपल उसका रक्षण करते हुए स्वयं ही साथ चल देते हैं। उनकी दया शब्दों में वर्णन करना लगभग असंभव है।
यह उनकी सुंदर कृपा ही है इस प्रकार लेख लिख पा रहा हूं। उनकी कृपा को स्मरण करने से ही रोम रोम ऊर्जा से भरपूर होता है। और परमानंद सभी को जीवन में प्राप्त हो सके, सबके जीवन में अमृत में वर्षा का मंगल संचार हो।
इन्हीं शब्दों के साथ आज विराम
शेष फिर अगले लेख में।
विशेष:-, जो भी परमपिता की असीम अनुकंपा को जीवन में महसूस कर लेते हैं। यह समस्त जगत के कल्याण का हेतु बन जाता है, वह भक्ति की मंगल धारा को धारण कर जगत में विचरण करते हैं, उनकी अमृतयय कृपा सदैव उनको सही दिशा बोध प्रदान करती हैं।
आपका अपना
सुनील शर्मा
इति शुभम भवतू

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