आज हम प्रवाह में चर्चा करेंगे प्रज्ञावान शब्द की व्याख्या पर, प्रज्ञावान कौन?
संस्कृत भाषा में सूत्रों में बात कही गई है।
उसी कड़ी में एक सूत्र है, यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्र करोति किम्।
इस सूत्र में कहा गया है कि जिसकी स्वयं की मेधा या प्रज्ञा कार्य न कर रही हो, फिर शास्त्र उसका क्या करेगा?
इसका सरल अर्थ तो यही है कि शास्त्र में तो सब लिखा है, पर जो प्रज्ञावान है, वे ही इसका अनुसरण करेंगे, अन्य नहीं।
बुद्धिमान व प्रज्ञा वालों में एक सूक्ष्म अंतर है, बुद्धिमान व्यक्ति चतुर चालाक हो सकता है।
प्रज्ञावान सदैव विनम्र व सही मार्ग पर चलने वाला होगा,अन्य को भी उसी मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करने वाला होगा।
यही मूलभूत अंतर बुद्धिमान व प्रज्ञावान में होता है।
विशेष:-प्रज्ञावान कितनी भी विषम परिस्थितियों में भी स्वयं की प्रज्ञा के कारण सही सूत्र या मार्ग को खोज ही लेते हैं वह उसका प्रतिबद्धता पूर्वक अनुसरण भी करते हैं ।
आपका अपना
सुनील शर्मा
इति शुभम भवतू
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