सादर नमन,
आज कविता प्रवाह में लिख रहा हूं जिसका शीर्षक है सत्य आवरणो में कैद हैं।
आज सत्य को आवरणो में कैद है, उसका अब दम घुटता है।
चापलूसो की फौज है, सत्य अब क्यों सहमता है।
इक राम थे, उनको हम आदर्श तो मानते हैं,पर उनकी जीवन चर्या को जीवन में नहीं उतारते हैं।
मूल्यों का इतना हनन आज समाज में, सत्य कई परतों में मानो दब गया है।
लगता है फिर कोई राम सा महापुरुष जन्मेगा , फिर से रावण को ललकारेगा।
एक बार फिर कालचक्र अपने को दोहरायेगा।
आशा है पूर्ण सत्य वो जो, सामाजिक हित में हो फिर से झिलमिलायेगा।
राजनीतिक दलों के अहंकार आज आपस में टकरा रहे, सच सहमा सा क्यो है।
क्यों ललकार गूंजती नहीं, रण में लड़ने वाले योद्धा क्यों हार रहे हैं।
सत्य क्यों समझौता कर रहा है, सत्य आज आवरणो में कैद है।
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