समसामयिक

प्रिय पाठक गण,
सादर नमन,
  आप सभी सुधि पाठकों को हृदय से नमन, चैत्र नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
    इस समय संपूर्ण विश्व एक महामारी से ग्रस्त हैं। कोरोनावायरस जो प्रकृति जनित या कृत्रिम जैसा भी हो, विश्व के कई देशों में अपना कहर बरपा रहा है।
   हमारा भारत देश भी इस समय इस महामारी से संघर्षरत है, वैसे भी जो इस महामारी से लड़ रहे हैं, बधाई के पात्र हैं।
  इस समय हमें जो सावधानी रखनी है ,वह तो रखनी ही है, वे इस महामारी के तात्कालिक उपचार हेतु आवश्यक भी है। हमें तात्कालिक उपायों द्वारा इस पर नियंत्रण की आवश्यकता है।
    साथ ही हमें गहन चिंतन करना होगा, यह परिस्थितियां जो निर्मित हुई है इसमें मानव भी दोषी है।
प्रकृति शुरुआत से ही सह अस्तित्व के सिद्धांत पर चलती आई है, वृक्ष हमें प्राणवायु देते हैं, हम जो सांस छोड़ते हैं वह उनके प्राण है, उनका भोजन है।
    इस प्रकार संपूर्ण पंचमहाभूत, जिनसे हमारा शरीर निर्मित है। पृथ्वी ,जल, वायु, अग्नि ,आकाश यह सभी मानव जाति को निशुल्क प्राप्त हुए हैं, यह कहीं भी मानव मात्र से भेदभाव नहीं करते हैं।
     आज मनुष्यों ने केवल एक ही और, भौतिक संसाधनों को बढ़ाने की ओर ध्यान दिया,उन्होंने जीवन के अन्य पक्षों की उपेक्षा कर दी, उसी का दुष्परिणाम हमें आज इस रुप में देखना पड़ रहा है।
    भौतिकता की अंधी दौड़ में हमने प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्य को विस्मृत कर दिया है, अगर समय रहते हम इस और सचेत नहीं हुए, तब तो स्थिति और भयावह हो सकती है, यह केवल शुरुआत है, हमें अपनी प्राचीन संस्कृति को पुनर्जीवित करना ही होगा, इसके सिवाय दीर्घकालिक अन्य कोई उपाय नहीं है।
   हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों में कई रहस्य छुपे हुए हैं, सह अस्तित्व के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है, हमें इस सत्य को स्वीकार कर इस दिशा में अवश्य प्रयत्न करना चाहिए, तत्कालिक उपायों के साथ दीर्घकालिक उपायों पर भी कार्य करना बहुत जरूरी है
  पुनःआप सभी को चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं, मां दुर्गा सभी को इस महामारी से लड़ने की शक्ति प्रदान करें, इसी शुभेच्छा के साथ वाणी को विराम। शेष फिर।
विशेष:-अभी संपूर्ण विश्व में कोरोना नाम की महामारी छाई हुई है, भारतवर्ष में भी इस महामारी ने अपना प्रकोप जारी कर दिया है,हमें पूर्ण मुस्तैदी से इसका मुकाबला करना चाहिए, तात्कालिक निराकरण के साथ भविष्य में इस प्रकार की महामारी की पुनरावृत्ति ना हो, इस हेतु हमें अपनी भारतीय संस्कृति को आत्मसात करना चाहिए।
इति शुभम भवतु
आपका अपना
सुनील शर्मा

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