पारिवारिक रिश्ते

प्रिय पाठक गण,
                    सादर वंदन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
                                    मुझे पूर्ण विश्वास है आप सभी को मेरे द्वारा लिखे गए लेख पसंद आ रहे होंगे। 
           मेरा आज का विषय है पारिवारिक रिश्ते, 
हम सभी के परिवार में विभिन्न विचारधाराओं के व्यक्तित्व हमें परिवार में मिलते हैं, निश्चित ही वैचारिक मतभेद स्वाभाविक ही है, जैसे किसी बगीचे में खिलते हुए कई रंगों के फूल , उन सभी फूलों की वजह से ही बगीचे की शोभा होती है। एक ही रंग के फूलो से 
उतना सौंदर्य  नहीं उत्पन्न हो सकता है। 
           इसी प्रकार हमारे पारिवारिक रिश्ते भी बगीचे में खिले हुए विभिन्न प्रकार के फूल हैं, जिनकी सबकी अपनी जगह है। 
            हम विचार करें कि पारिवारिक रिश्तों के बिना घर किस प्रकार का हो जायेगा, एक रूखापन अगर रिश्तो में आ जाता है, 
तो प्रेम के पानी से ही उन रिश्तों को सींचा जा सकता है, एक दूसरे के प्रति उचित आदर सम्मान व अपनी जवाब देही  को सही ढंग से समझना  भी पारिवारिक रिश्तों में एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 
             हमारे आपसी पारिवारिक रिश्ते जितने प्रगाढ़ होंगे,
उतनी ही घर में शांति व स्नेह का वातावरण रहेगा। 
            सभी के पारिवारिक रिश्ते आपसी समझ बूझ पर आधारित हो, ताकि परिवार का विखंडन न हो।
            एक एक अच्छा परिवार एक अच्छे समाज और राष्ट्र का निर्माण भी करता है, वह तो इस बात की भूमिका और अधिक बढ़ जाती है। पारिवारिक मूल्यों को अपने स्वयं के अहंकार से अधिक स्थान देना ही इसका एकमात्र निदान है। 
विशेष:- आज के सामाजिक परिदृश्य में पारिवारिक मूल्यों की जो अवहेलना हो रही है, वह समाज के लिए अत्यंत घातक है, इस प्रवृत्ति पर जो घर के समझदार लोग हैं, उन्हें अपनी सही दिशा कभी भी ‌ नहीं बदलना चाहिये। तभी पारिवारिक रिश्तों में मिठास बरकरार रह सकती है।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय हिंद 
जय भारत।

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