सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम, आज हम चर्चा करेगे गीता- सार पर ।
श्रीमद्भगवद्गीता श्री कृष्ण जी के श्रीमुख से निकली उत्तम वाणी है। जो कालजयी है, यह वाणी हम जब भी सुनते हैं, गीता जी का अध्ययन करते है, तो हर बार हमारे सामने एक नया आश्चर्य या गीताजी की विशेषता हमारे सामने आती है।
भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से निकली यह अद्भुत वाणी हमें हमेशा मार्गदर्शन प्रदान करती है।
क्योंकि यह अनंत काल बाद भी सार्वभौमिक है, गीता जी में सबसे अधिक महत्व स्वकर्म पर दिया गया है , भगवान श्री कृष्णा गीता जी में स्पष्ट संदेश देते हैं कि स्वकर्म से बढ़ कर कोई भी धर्म नहीं है।
स्वकर्म से उनका आशय एक डॉक्टर के लिए उनका सोकर अपने मर्जी की बेहतर देखभाल व चिंता करना है।
वहीं एक खिलाड़ी का कर्म जो भी खेल उन्होंने चुना है उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करना है। अंत में परिणाम चाहे अनुकूल हो या प्रतिकूल।
माता का धर्म बच्चों का सही इलाज लालन-पालन करना है,
उन्हें उचित शिक्षा देकर समाज में अपनी स्वयं के बलबूते स्थापित करना है।
एक राजनीतिक नेतृत्व का कार्य समाज के सभी वर्गों को लेकर चलना है, खासकर वंचित वर्ग व मजदूर वर्ग जो कमजोर
है, उन्हें भी समाज की मुख्य धारा में स्थापित करना है।
इस प्रकार से गीताजी हमें स्वकर्म को सही ढंग से परिपालन करने हेतु प्रे अगर समाज के सभी वर्ग गीता सार को इस प्रकार से अपने जीवन में अगर विवेकपूर्ण ढंग से आत्मसात कर लें तो लगभगअधिकतम समस्या का समाधान हम कर सकते हैं, इस प्रकार सही दिशा में समाज के सभी व्यक्ति गीता सार का अनुसरण करें तो समाज में बदलाव संभव है।
अर्जुन भी जब थक-हार कर युद्ध के मैदान में हताश होकर
बैठ जाता है, उसके दुर्बल मन में यह भाव आ जाता है कि यह
तो मेरे अपने संबंधी है, इनसे मैं कैसे युद्ध करू, तब श्री कृष्ण
अर्जुन को प्रेरित करतै हैं , कि तुम क्षत्रिय हो, अन्याय के विरुद्ध हथियार उठाना तुम्हारा धर्म है।
वह आंतरिक रूप से तो पराजय को प्राप्त हो चुके हैं, वह कहते हैं अर्जुन, युद्ध कर, हताश व निराश न हो, पूर्ण उत्साह से
उनके विरुद्ध हथियार उठा व उन्हें परास्त कर।
वह अपनी अन्याय व दमनकारी नीतियों से तो वैसे ही परास्त हो गये हैं, वह कहते हैं अर्जुन तू तो निमित्त मात्र है, बस अपने
स्वकर्म को अंजाम दे वह शेष मुझ पर छोड़ दे।
वे गीता में इस बात की स्पष्ट घोषणा करते हैं, यतो धर्म ततो जय, इस प्रकार अर्जुन को प्रेरित करते हुए युद्ध के मैदान में श्रीकृष्ण अपना पांचजन्य शंख बजाते हैं वह अर्जुन को युद्ध के लिए उत्साहित करते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण गीताजी में स्पष्ट घोषणा कर रहे कर
रहे हैं कि दमन वह अन्याय करने वालों के साथ नहीं वरन
अन्यायकारी शक्तियों को जो परास्त करने का जो बीड़ा उठाते हैं,
वे सदैव उनके साथ ही खड़े होंगें।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत
जय हिंद।
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