पृथ्वी -दिवस

प्रिय पाठक गण,
          सादर नमन, 
    आने वाली 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस है, पहली बात तो यह
की दिवस मनाने की परंपरा तो अभी-अभी आई है, हमारी सनातन संस्कृति मैं तो यह पहले से ही प्रावधान है कि हम पांच तत्वों का पूजन ईश्वर रूप में करते आए हैं।
          पृथ्वी दिवस को मनाने का हमारा मुख्य उद्देश्य यह है पृथ्वी का जो क्षरण हो रहा है, उसे क्षरण को रोकने की दिशा में हम सार्थक पहल करें, और यह केवल एक केवल एकाकी प्रयासों से संभव नहीं। इस दिशा में हम सभी को सरकारे ,विश्व के समस्त मानव समुदाय कि यह जवाबदारी हैं कीव इस दिशा में पूर्ण गंभीरता से सोचे व प्रयास करें।
          पृथ्वी का एक नाम वसुधा भी है, ़ हमारे सनातन संस्कृति में एक मंत्र भी है, वह एक वाक्य भी है "वसुधेव कुटुंबकम" यानी पृथ्वी पर रहने वालीं संपूर्ण मानव जाति एक ही परिवार है, ऐसे उदार चिंतन से भरपूर हमारी संस्कृति रही है।
          हमारा यहां पृथ्वी को माता का दर्जा दिया गया है, व नदियों को भी हमारे यहां माता माना गया है, इस प्रकार के भावों से समृद्ध हमारी संस्कृति रही है।
        हमारी ऐसी समृद्ध संस्कृति की विरासत रही हैं, जहां हमने 
अपनी संस्कृति में ही सबको पूजनीय व संरक्षित रखने का भाव डाल दिया है, इतनी  समृद्ध सांस्कृतिक विरासत हमें  प्राप्त हुई है।
      पृथ्वी दिवस को मनाते समय हम यह विचार करें की इतनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत होते हुए भी हमसे चूक कहां हो रही है। हमारे सारे तीर्थ स्थल या तो नदियों के किनारे हैं या पहाड़ों पर है, हमारे प्राचीन ऋषियों ने किस प्रकार अपनी सुंदर कल्पना से इसे साकार स्वरूप प्रदान किया, हमारी परंपरा में तो शुरू से ही सभी के संरक्षण का ही भाव रहा है, हम अपनी उस प्राचीन धरोहर को भूल चुके हैं, उसी के दुष्परिणाम हमें देखने को मिल रहे हैं।
अभी भी अधिक समय नहीं हुआ है हम अपनी प्राचीन संस्कृति को ठीक ढंग से समझे तो पाएंगे उसमें सब कुछ समाहित है,
किसी दिन विशेष को पृथ्वी दिवस मनाने की जगह अगर हम अपनी प्राचीन संस्कृति के पदचिन्हो पर चल सके तो हमें इस प्रकार  के दिवस मनाने की आवश्यकता ही नहीं होगी, क्योंकि हमारी संस्कृति में तो इसे शुरू से ही विशिष्ट स्थान दिया गया है।
          जब हमें यह ज्ञात है कि हमारी संस्कृति में पृथ्वी को माता का दर्जा दिया गया है, तब तो हमारा दायित्व और अधिक बढ़ जाता है , जिस प्रकार हम अपनी जन्मदात्री मां की सेवा करते हैं,
इस प्रकार हमें पृथ्वी माता की भी सेवा करना चाहिये, केवल एक दिन पृथ्वी दिवस मनाने से ही कार्य सिद्ध नहीं होगा, वरन हमें हमारी संस्कृति को आत्मसात करके पूर्ण संकल्प से इस पर कार्य करना होगा, तभी इस दिवस की सही सार्थकता सिद्ध होंगी।
        शब्दों से अधिक कहने बजाय हम अगर इसे आचरण में उतारें तो ही इस दिवस की सार्थकता को हम अपने सही आचरण द्वारा इस दिवस की उपयोगिता को एक आंदोलन का रूप दे सकते हैं। आज संपूर्ण विश्व में जो दोहन की परंपरा चल रही है, 
वह विश्व के लिए अत्यंत ही घातक सिद्ध हो सकती है, पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी यह दिवस और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, पर मेरा पुनः आप सभी से निवेदन है कि हम हमारी प्राचीन संस्कृति का अध्ययन अवश्य करें , उसमें सभी बातों का सुंदर ढंग से समावेश किया गया है वह उसे एक जीवन पद्धति से जोड़ा गया है। आप सभी को पृथ्वी दिवस की अनंत शुभकामनाएं, 
      इतना कहकर अपनी बात को विराम करूंगा कि हमें कोई भी दिवस मनाने से अधिक उस पर दृढ़ संकल्प से काम करने की आवश्यकता है, केवल एक दिन किसी बात को कह देने मात्र से 
कुछ भी नहीं बदलने वाला है, हम जहां पर भी रहते हो वहां पर पूर्ण ईमानदारी से दिशा में प्रयास करें, तभी पृथ्वी दिवस को मनाने का हमारा उद्देश्य पूरा हो सकता है। 
आपकाअपना 
सुनील शर्मा 
जयभारत 
जय हिंद



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