अनन्य शरणागति

प्रिय पाठक गण,
           सादर नमन, 
      आप सभी को मंगल प्रणाम, हम सभी के पास लगभग समान
समय ईश्वर ने दिया है, गणपति की ओर से हमें सूर्य ने रोशनी, चंद्रमा ने चांदनी, वृक्षौ से प्राणवायु , आकाश से वर्षा का जल,
पृथ्वी  से उत्पन्न समस्त खाद्य पदार्थ, भूमि के नीचे से निकलने वाले समस्त खनिज पदार्थ, नदियों पानी, इस प्रकार प्रकृति ने मनुष्य को जितने भी पदार्थ या उपहार दिये है, उन सभी के प्रति हमें ईश्वर का कृतज्ञ होना चाहिये।
     पर क्या हम हमारी प्रार्थना में उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं  कि हे प्रभु, जो यह आपने समस्त हमें उपहार प्रदान किए हैं, उनका कोई मूल्य भी हमें उसे चुकाना नहीं होता,  ईश्वर की  और से तो यह सभी को समान रूप में प्राप्त हुए हैं, हां पर मनुष्य ने अपने स्वार्थवश इनका आसमान वितरण आपस में कर लिया है, 
और हमें जो दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं वहां इसी बात के है।
अगर मनुष्य अपने साधनों का समुचित उपयोग आपस में मिल बांटकर करें तो कभी भी उन्हें किसी प्रकार के साधनो की कमी नहीं होगी।
          जब हम सभी को समान रूप से उसका वितरण उस परमपिता द्वारा किया गया है, तब हम कैसे इस बात का निर्धारण करते हैं कि उसके वितरण की व्यवस्था हमारे हाथ में है, इन साधनों का समान रूप से सभी के लिए उपलब्ध होना ही इस बात का संकेत है, की सारी व्यवस्था प्रकृति द्वारा ही अनूठे ढंग से रची गई है, जिसे हम यह रहस्य सही ढंग से समझ लेंगे, हमें कभी भी अभाव महसूस नहीं होगा।
          यह भी उसे परमपिता की ही कृपा है किस बात को कुछ अंशों में मै समझ सका हूं, केवल अनन्य शरणागति द्वारा ही यह 
संभव है , तभी हम अपनी आंतरिक अशांति को हटा सकते है, जब हम इस नियम को सही प्रकार से समझ लें।
         जब हम उसकी शरणागति को अपना लेते हैं, उसे परमपिता परमेश्वर की ओर से भी हमारी ओर अनन्य  कृपा का झरना बहने लगता है। हमारे  दैनंदिन जीवन चर्या में एक अलग ही परिवर्तन को हम महसूस कर पाते हैं। 
         आवश्यकता पूर्ण ईमानदारी से , निष्ठा पूर्वक समर्पण की 
हैं, जैसे ही हम अपनी आंतरिक ऊर्जा उस परमेश्वर से जोड़ते हैं,
एक अद्भुत संचार हमारे भीतर होने लगता है, मानो स्वयं प्रभु ही मार्गदर्शन दे रहे हो।
       जितनी गहराई से हम महसूस करेंगे, उतनी ही तेजी से परिवर्तन हमारी वैचारिक स्थिति में होगा। समय हम सभी के पास उतना ही है, साधन भी प्रकृति की ओर से सभी को दिए गए हैं, मगर उनके उपयोग का हम सभी का तरीका भिन्न-भिन्न है। 
       हमारे जीवन में बाह्य व आंतरिक समृद्धि दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण है, मानो एक ही सिक्के के दोनों पहलू है, जैसे हम पूर्ण समग्रता से उसे परमात्मा से अपनी ऊर्जा को जोड़ते हैं, उधर से भी उसी प्रकार से सकारात्मक ऊर्जा का बहाव हमारी और होने लगता है, जब यह घटना हमारे जीवन में स्व-स्फूर्त यानी अपने आप घटने लगे, तब हम यह मान लें कि हमने अनन्य शरणागति पा ली है।
          हम जो भी कार्य करें, उसे परम अहोभाव से, प्रसन्न चित्त 
भाव से करें, फिर हम पाएंगे कि उसकी कृपा प्रसाद हमारे भीतर कैसे गहरे उतर जाता है, हमारे भीतरी स्पंदन बदलने लगते हैं, 
यह सब मेरी  निजी अनुभूति भी है।
         जिसे मैं आप सभी से साझा कर रहा हूं।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत, 
जय हिंद

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