चेतना के स्वर

प्रिय पाठक गण,
         सादर प्रणाम, 
  आज प्रवाह में हम बात करेंगे चेतना के स्वर, 
          आज हमारा समाज जागते हुए भी मानो सो रहा है,
किसी विषय पर अगर कोई बात करना है तो क्या करें, कैसे करें 
क्या वे बातें जो हम कर रहे हैं, उनसे क्या समाज में चेतना जागृत हो रही है।
         जो सामाजिक नियमानुकूल हो, उनका समर्थन व जो समाज की मुख्य धारा के विपरीत हो, जिन कार्यों से समाज में विघटन होता हो, ऐसे कार्यों का विरोध व समाज में सामंजस्य फैलाने वाली बातों का समर्थन वह जिस कारण से समाज में वैमनस्य  फैलता है, उनके सभी स्तर पर विरोध, समाज में अगर हमें रहना है, तो मिलजुल कर रहने पर ही हम प्रगति कर सकते हैं, 
एक दूसरे के हितों का ध्यान रखने पर ही सामाजिक सामंजस्य में
 अभिवृद्धि होती है , जो कि समाज के स्वस्थ विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। इस बात पर हम सभी को एक मत होना चाहिए की संपूर्ण समाज के हित में क्या है? 
             समाज का हित चिंतन जो भी करते हैं, उन सभी को पूर्ण समर्थन वह जो भी कोई  हो, सामाजिक सामंजस्य जो नहीं चाहते,
उन लोगों से दूरी बनाए रखना ही उचित है।
              समाज में जो भी एकता के भाव से, समाज को  एक सूत्र में रखने के प्रयास करते हैं, वे सभी अभिनंदन पात्र है। केवल प्रभु कृपा से ही हमारी चेतना भीतर से जागृत होती है, जब वह कृपा करता है, तब चेतन मुखर हो उठती है।
             सांस्कृतिक आयोजन जितने भी हैं, वह सब हमारी चेतना को ही जागृत करते हैं, मगर उनका स्वरूप विशुद्ध 
सांस्कृतिक हो, निषिद्ध स्वरूप होने पर कार्यक्रम चेतनायुक्त  होगा,
आडंबर रहित होने पर उसे कार्यक्रम में  एकरसता होगी वह वही एकरसता ही समस्त प्रकार के मूल निर्णयो का जब भी आधार बनेगी, तब एक रस वह एकजुट होने से, अगर उसका उद्देश्य किसी सही दिशा में है, तो निश्चित ही वह समाज में अतिरिक्त चेतना के संचार में सहायक होगी।
            जब हम किसी भी व्यक्ति के प्रति प्रेम में होते हैं, तब आश्चर्यजनक रूप से हमारी चेतना एक सही दिशा में कार्य कर रही होती हैं, क्योंकि उसे समय हमारी आंतरिक स्थिति किसी भी
प्रकार के पूर्वाग्रह से ग्रसित न हो कर प्रेम से परिपूर्ण होती है। उसे समय हमारी जो मानसिक स्थिति है वह स्थिति बारंबार प्रेम में होने पर हम द्वंद से परे हो जाते हैं वह हमारी आंतरिक चेतना का 
 प्रस्फुटन होने लगता है।
            ईश्वर से प्रेम करने पर वह परम चेतना आपकी स्वमेव सहायक हो जाती है। उसे परम शक्ति का आंतरिक आश्रय हमारी आंतरिक चेतना के जागरण की दिशा में पहला कदम है, प्रभु के आश्रय बिना कभी भी हम उसे चेतना का एहसास नहीं कर सकते, वह चेतन विभिन्न रूपों में समय-समय पर हम सभी में जागृत होती है। 
         परंतु निरंतर जागरूकता से वही चेतना अपने प्रखर स्वरूप में आती है वह जीवन में नये आयामों को खोलती है, अपने भीतर का द्वार खुला रखें, तो वह चेतना नित्य प्रति आपके साथ रहकर 
आपका मार्गदर्शन अवश्य करेंगी।
          उसे परम चेतना (ईश्वर) को प्रणाम, जिसकी सहायता के बिना हम अपने उसे आंतरिक स्वरूप की झलक भी नहीं पा सकते, यत्र ,तत्र, सर्वत्र उसी परम चेतना का ही तो विस्तार है। 
         प्रभु सभी को आंतरिक चेतना के स्वर प्रदान करें, बस यही विनय। 
          सामाजिक चेतना को जागृत करना ही मेरा भी मूल उद्देश्य है, अभी समझ में मूल अवधारणा जो उसे चेतना से हमें जोड़ती है, वही सबको प्रेरणा भी प्रदान करती है। 
इति शुभम भवतू।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद

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