स्वाध्याय ( स्वयं काअध्ययन)

प्रिय पाठक वृंद,

       सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
        पूर्ण विश्वास है, मेरी यह विचारों की प्रवाह श्रृंखला आपको अच्छी लग रही होगी, इसी कड़ी में आज प्रस्तुत है यह लेख।
       स्वयं के भीतर आये।
हम सभी अपने दैनंदिन जीवन में विभिन्न अनुभव से गुजरते हैं, 
खट्टे-मीठे , उतार- चढ़ाव, आशा -निराशा, जय-पराजय ऐसी विभिन्न प्रकार के मनोभावों से हम अपने जीवन में गुजरते हैं, 
       जीवन के इस सफर में हमारी कई व्यक्तियों से मुलाकात होती है, जिनमें से कुछ का व्यक्तित्व हमारे जीवन में गहरी छाप छोड़ जाता है, इस जीवन सफर में निजी अनुभव के माध्यम से
हम निरंतर गुजरते जाते हैं, और नित्य नये अनुभवों का खजाना हमारे पास बढ़ता जाता है, और हम स्वाध्याय द्वारा जो प्राप्त
करते हैं, वह हमारे जीवन की एक अमूल्य धरोहर है, हम में से हर एक व्यक्ति की जीवन शैली भले ही अलग हो, मगर हमारे अनुभव भिन्न-भिन्न होंगे ही,  जब उन निजी अनुभवों से हम गुजरते हैं, 
तब हम सभी का अनुभव अलग-अलग प्रकार का होगा।
        मेरी नजर में स्वाध्याय का अर्थ है, स्वयं का अध्ययन, हम जितना अपने आप को व्यवस्थित रखेंगे, उतना ही हमारे जीवन में 
तरक्की के सोपान खुलेंगे।
           हमें अपने जीवन में कई प्रकार के बंधनो का सामना भी करना पड़ता है, कहीं मित्रता का बंधन, कहीं हमारे स्वयं के स्वभाव का अध्ययन, कहीं राष्ट्र का बंधन, कहीं हमारे दायित्वों का बंधन, इन सब बंधनो को जीते हुए भी हमें हमारे जीवन यात्रा पूर्ण करनी ही होती है।
       इन सब बंधनो को जीते हुये एक खालीपन सा जीवन में
बना रहता है, वह क्यों है, किस कारण से है, उसकी खोज में ही 
हमारे जीवन का अधिकांश हिस्सा गुजर जाता है, हमें हमारे जीवन ऊर्जा  अधिकांश समय हम ऐसे कार्यकलापों में निकाल देते हैं, 
जिनका हमारे जीवन की प्रगति से कोई लेना देना नहीं होता,
हम हमारे जीवन में क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं, इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर हमें स्वयं ही खोजने होते हैं।
       क्या कभी किसी दिन हमने कुछ समय ठहरकर अपने आप से भी संवाद किया है, जो भी हम कर रहे हैं, उसके पीछे हमारा मुख्य उद्देश्य क्या है, या हम यूं ही बगैर किसी उद्देश्य के जीवन को गुजारना चाहते हैं। 
         सभी से संवाद करियै, इसमें भी कोई बुराई नहीं, पर जब आप सबसे संवाद कर रहे हो, तो क्या हमें अपने आप से भी संवाद स्थापित नहीं करना चाहिये।
        जीवन भर हम दूसरों से ही संवाद करते रहे , इतना संवाद हमने अपने आप से पूर्ण ईमानदारी से किया होता या अभी भी कर ले, तो जीवन की दशा व दिशा दोनों ही परिवर्तित हो सकती
 है।
सभी प्रकार के विचारों को कुछ समय रोककर कुछ समय केवल मौन हो जाये तो भीतर से ही एक अद्भुत ऊर्जा का संचार हमारे भीतर होने लगेगा 
पूर्ण ईमानदारी से जब हम अपने आप से संवाद स्थापित करते हैं, 
तो वह आंतरिक प्रकाश जो हमारे भीतर ही विद्यमान है, उसे और हमारी दष्टि पहुंचती है व जीवन जो हम जी रहे हैं, उसमें क्या 
आवश्यक सुधार हमें करना है, हमें स्वयं ज्ञान होने लगता हैं।
         जितनी   ईमानदारी से हम सभी से संवाद स्थापित करते हैं,
उतनी ही ईमानदारी से हम स्वयं से भी संवाद स्थापित करें, सारे प्रश्नों के उत्तर हमारे पास ही है। 
       आपका अपना 
        सुनील शर्मा 
         जय भारत, 
          जय हिंद 


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