स्वयं, परिवार व समाज

प्रिय पाठक गण,
       सादर नमन, 
 आप सभी को मंगल प्रणाम, हम जितना अधिकतम समय अपने आप को देंगे, स्वयं से संवाद स्थापित करेंगे, हमारे अंतरचक्षु खुलने लगेंगे, हम बाह्य जगत की यात्रा तो नित्य करते हैं, हमने अपने आंतरिक जगत की यात्रा कब की थी, कब हमने स्वयं से संवाद स्थापित किया था, कितना समय हम स्वयं को, कितना परिवार
को, कितना समाज को देते हैं, क्या कभी हमने इस पर विचार किया है?
तो हमें मंथन करना होगा, आप अपना स्वयं का मंथन करिये,
जिंदगी की आपा-धापी में हम किधर जा रहे हैं, जिधर सारी दुनिया दौड़ रही है, क्या हम भी उधर ही दौड़ रहे हैं, या कुछ पल ठहर कर अपने जीवन को एक व्यवस्थित आकार हम दे रहे हैं।
        जैसे ही हम अपने- आप को समय देते हैं, हमें वास्तविक स्थिति का ज्ञान होता है, कितना स्वयं के लिये, कितना परिवार के लिये, कितना समाज के लिये, इस प्रकार हम इन तीन बातों को
अपने जीवन में सही ढंग से समझ सके तो स्वयं  व परिवार यह दो मूलभूत इकाई , इन पर अगर हमने सही कार्य किया तो तो समाज स्वमेव ही बन जायेगा, स्वयं  व परिवार इन दोनों पर ईमानदारी से कार्य करने की उपरांत ही हम समाज से रूबरू होते हैं, आप यकीन माने, अगर आपने पूर्ण ईमानदारी पूर्वक इसे जिया है 
या जीने की कोशिश की है, तो परिणाम बहुत ही आशाजनक
होगे।
जितना हम गहरा मनन- चिंतन करते हैं, द्वार स्वयं खुलने लगते हैं, 
यह मेरे निजी जीवन का भी ऐसा स्व अनुभूत प्रयोग है, जिसके आशजनक परिणाम मुझे अपने जीवन में प्राप्त हुए हैं, पूर्ण ईमानदारी पूर्वक जैसे ही हम अपने जीवन को एक निश्चित दिशा प्रदान करते हैं, हमारा स्वयं का जीवन तो सुखद होता ही है, हम हमारे आसपास जो हमारा परिवार है, हमारे आसपास का समाज 
हैं, हमारी दृढ़ इच्छा शक्ति को देखकर लाभान्वित होता है, हमें तो अपने जीवन में समस्त लाभ प्राप्त होते ही है, हमारे साथ जो है,
उन्हें भी इसका लाभ प्राप्त होता है।
        इस प्रकार हम अपने जीवन को व्यवस्थित करते हुए परिवार व समाज को भी सही दिशा की और अग्रसर कर पाते है। अगर हमारा चिंतन, मनन सही होगा तो कार्य की दिशा भी निश्चित ही सही होगी व परिणाम भी अच्छे प्राप्त होंगे।
       हम समाज से केवल शिकायत न करें, पहले स्वयं को, फिर परिवार को जीवन मूल्यों की शिक्षा दें, आज का परिवेश भले ही बदला हो, आंतरिक स्थिति तो हमें ही सुधारनी होगी , वह जितनीअधिक व्यवस्थित होगी, परिणाम भी सही प्राप्त होगे।
        यह मैंने स्वयं अपने जीवन में किया है वह इसके उत्तम परिणामों को प्राप्त किया है, पर  हमारा जीवन केवल हमारा ही ना होकर इस संपूर्ण अस्तित्व के प्रति जवाबदेह हैं, इसलिए मैंने इन लेखो के माध्यम से समाज को अपनी ओर से कुछ देने का प्रयास किया है।
जब हम अपने आंतरिक जुड़ाव को सही दिशा की और मोड़ देते हैं, उतने ही आप परिपक्व होते हैं वह आपको मार्ग भी प्राप्त होता है।
मेरी यह यात्रा जो मेरे लिए तो फलप्रद साबित हुई है।
      मेरे स्वयं के अनुभव इस लेख में समाहित करने का मुख्य उद्देश्य ही मेरा यह है कि मुझे जो लाभ जीवन में प्राप्त हुए, वह आप सभी को भी प्राप्त हो। 
   सादर प्रणाम। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद।


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