सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम, आज प्रवाह की इस धारा में मेरा
विषय है।
धर्म और विज्ञान।
धर्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक है, विज्ञान के द्वारा हम यह
जानते हैं की प्रकृति किस प्रकार से कार्य करती है, चीजों का या
वस्तुओं का, ऊर्जा का उपयोग हम किस प्रकार से कर सकते हैं,
विज्ञान हममें उत्सुकता पैदा करता है, जिज्ञासा पैदा करता है
कि कार्य किस प्रकार से होते हैं, नया क्या प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन यहीं से धर्म का जो भी हमारे जीवन में महत्व है, वह हमें समझ में आता है।
विज्ञान संसाधनों का उपयोग तो हमें सिखाता है, उपभोग किस प्रकार से करें, क्या नया अविष्कार करे, अभी वर्तमान में किन नई बातों की आवश्यकता है, नित्य नई बातों को सीखना, जिज्ञासु
होना, इन सब बातों में विज्ञान उपयोगी है।
धर्म हमें सिखाता है, किस सीमा तक हमें उपभोग करना है, हम उपभोग कर रहे हैं, तो उसके क्या-क्या सकारात्मक या नकारात्मक परिणाम हमें देखने को मिल सकते हैं।
वस्तुत: धर्म हमें जीवन में संतुलन किस प्रकार रखा जाये,
हमारे वह प्रकृति के मध्य, यह कला जो सिखलाता है, वही मेरी नजर में वस्तुत: धर्म है।
मानव मात्र जीवन में शांति, तरक्की वह प्रगति चाहता है,
पर क्या उचित संतुलन स्थापित किए हुए यह संभव है, मानव मन की महत्वाकांक्षाएं अनंत है, महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में
जितना हमने स्वयं का नुकसान किया है, वह शायद ही किसी और ने किया हो।
धर्म हमें जीवन की उपयोगिता क्या है? हमें जीवन को किस प्रकार से अपने परिवार समाज वह संपूर्ण प्रकृति या ब्रह्मांड से
किस प्रकार का संतुलन करना चाहिये, वह मार्ग हमें धर्म दिखलाता है।
जिस किसी के भी जीवन में धर्म व विज्ञान दोनों ही धाराओं का संतुलन स्थापित होगा, वह स्वयं प्रगति करेगा व उससे जुड़े अन्य
व्यक्ति, संस्था व समाज सभी लाभान्वित होंगे।
धर्म व विज्ञान समानांतर दो अलग-अलग धाराएं हैं, जो एक दूसरे के पूरक के रूप में कार्य करती मानो रेलगाड़ी की पटरी,
जिस पर हमें अपने जीवन की रेलगाड़ी को बेहतर तरीके से चलाना होता है।
सही अर्थों में अत्यधिक धार्मिकता वह अत्यधिक विज्ञान
दोनों का ही अनुकरण न करके ही हम अपने जीवन को सही धारा की और मोड सकते हैं।
धर्म व विज्ञान परस्पर विरोधी नहीं, वरन् एक-दूसरे के पूरक के रूप में जहां पर भी कार्य करते हैं, वहां पर निश्चित ही संभावना एक बेहतर जीवन की होती है।
दोनों का ही उचित समन्वय ही जीवन का मूल सार है।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत,
जय हिंद।
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