सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
हम आज इंदौर का जो भी स्वरूप देख रहे हैं, उसमें लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है , 31 मई को उनका जन्म दिवस आ रहा है।
31 मई 1725, चौडी गांव में हुआ था, वह बचपन से विलक्षण प्रतिभा की धनी थी, उनका विवाह बहुत अल्प आयु में होलकर राजघराने में हुआ, उनकी विलक्षण प्रतिभा को उनके ससुर
मल्हार राव होलकर ने पहचाना, यह उन्हें सदा प्रोत्साहित करते थे,
उनके व्यक्तित्व को तराशने में उनका भी एक खासा योगदान है,
आज इंदौर की पहचान ही लोकमाता अहिल्या के नाम से है।
29 वर्ष की आयु में वे विधवा हो गई, अपने ससुर के कहने पर उन्होंने राज्यहित में सती होने का त्याग कर दिया वह अपना संपूर्ण जीवन प्रजा के हित में कार्य किया।
अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने इंदौर ही नहीं बल्कि भारत के कई धार्मिक स्थलों का पुनर्निर्माण भी करवया, शिक्षा व समाज सुधार के कार्य भी उन्होंने करवायें, सन 1759 से 1795 तक मालवा पर उन्होंने शासन किया वह अपने शासन के दौरान राज्य मे समृद्धि व शांति स्थापित की।
खासतौर से लोकमाता अहिल्याबाई ने शिक्षा के महत्व को समझा और अपने राज्य में कई स्कूल और शिक्षण संस्थान
स्थापित किये, वह परोपकारी और धर्म परायण भी थी।
उनकी विरासत आज भी जीवित है, उनके द्वारा बनवाये गये
मंदिर, धर्मशालाएं और सार्वजनिक कार्य इस योद्धा रानी की महानता की गवाही देते हैं, उन्हें "पुण्य श्लोका" की उपाधि से भी सम्मानित किया गया, जिसका अर्थ है " पवित्र मंत्रों की तरह शुद्ध"।
संपूर्ण भारतवर्ष में उनकी ख्याति उनके धर्म परायण व परोपकारी स्वभाव के कारण आज भी जनमानस को प्रेरणा प्रदान करती है, वह परम शिव भक्त थी, उन्होंने अपना सारा राज कार्य उनको समर्पित करके ही चलाया, हम ऐसे दुर्लभ व्यक्तित्व की
धनी महिला की नगरी के निवासी हैं, यह भी हमारे लिए बड़े सौभाग्य का विषय है।
लोकमाता अहिल्या का जीवन एक ऐसा जीवन है, जो आज भी हमें प्रेरणा प्रदान करता है, उनकी राजनीतिक सूझबूझ व साहस के सभी कायल थे।
ऐसी लोक माता मां अहिल्या के जन्मदिवस पर उन्हें शत-शत नमन।
आपका अपना
सुनीलशर्मा
जय भारत
जय हिंद
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