समसामयिक (सोनम रघुवंशी)

प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
    आज सम सामायिक में मेरा विषय है , सोनम रघुवंशी केस में 
समाज का कितना नैतिक पतन हुआ है, यह नजर आता है, क्या इस प्रकार के समाज की हम कल्पना कर सकते हैं? 
     समाज के इस अवमूल्यन के लिये हम सभी समान रूप से दोषी है, अगर हमने समाज में किस प्रकार जीना है, जीना चाहिये,
इसका सही ढंग से प्रसार किया होता, तो आज हमारा समाज इस प्रकार से अवनति के दौर से नहीं गुजर रहा होता, इस प्रकार की घटनाओं के लिए निश्चित रूप से सभी समान रूप से दोषी है, केवल भौतिक समृद्धि की ओर अधिक ध्यान हमारे नैतिक अवमूल्यन के लिए दोषी है, जब हम अपनी सीमा रेखा भूल जाते हैं, तब समझ में इस प्रकार की घटनाओं को स्थान मिलता है, हमें अपनी संतानों को भी यह शिक्षा देनी चाहिये, मात्र भौतिक समृद्धि किसी काम की नहीं, आंतरिक समृद्धि भी उतनी ही आवश्यक है, 
यह एक ही तराजू के दो पलड़े है, जिनका आपसी संतुलन बहुत आवश्यक है, और इस प्रकार की जवाबदारी से हम बच नहीं सकते, हमें स्वयं, परिवार व समाज में इस प्रकार का निर्माण करना होगा, ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की
पुनरावृत्ति ना हो। 
      केवल यह कह देने भर से कि समाज पतन की और जा रहा
हैं, हम अपनी जवाबदारी से बच नहीं सकते, सामाजिक व्यवस्था 
हम ही बनाते व हम ही बिगाड़ते हैं, केवल दोषारोपण कर देने से मात्र से काम नहीं होता, इस प्रकार की घटनाओं पर हमें पुनर्विचार करने की जरूरत है कि फिर ऐसी घटनाएं न हो।
       हमारी शिक्षा का उद्देश्य केवल आर्थिक ना होकर सामाजिक भी होना चाहिये, दुर्भाग्य से हमारी शिक्षा केवल आर्थिक आधार पर केंद्रित हो गई है यह भी इस देश का दर्भाग्य है।
      जब तक हम सभी मिलकर इस चीज के लिए प्रतिबद्ध नहीं होते, समाज के हित में क्या है और क्या नहीं, ऐसी घटनाएं होती रहेगी, हमें बाल्यकाल से  ही बच्चों को यह समझ प्रदान करना होगी कि केवल आर्थिक आधार जीवन जीने का सही नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक पहलू का भी उतना ही समावेश होना चाहिये, यह हम सभी की समान रूप से जवाबदारी है, हम जहां भी हो वहां नैतिक मूल्यों का पालन करें वह इसके लिए सभी को प्रेरित करें तो ऐसी दुर्भाग्यशाली घटनाओं से बचा जा सकता है।
     एक लेखक होने के नाते मेरा जो मूल कर्तव्य है , वह सामाजिक चेतना को जगाना ही है, पर यह चेतना जब तक सबको भीतर झकझोरती नहीं, तब तक बदलाव आना भी मुश्किल है, हमें नई पीढ़ी में इस बात की पुनर्स्थापना करना ही होगी, तब ही ऐसी घटनाएं समाज में देखने को नहीं मिलेगी। 
 आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जयभारत 
जय हिंद



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