समाज और हम

प्रिय पाठक गण,
         सादर वंदन, 
    आप और हम एक सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत रहते हैं,
समाज में समय -समय पर संतो का अवतरण तात्कालिक 
सामाजिक बुराइयों को ध्वस्त करने के लिये होता है।
     समय के साथ-साथ समाज में सही, सही उद्देश्य से निर्मित 
संस्थाओं में भी वैचारिक प्रदूषण का जहर फैलता जा रहा है,
      समाज के समझदार नागरिकों का यह कर्तव्य है कि आगे आकर सामाजिक बुराइयों को समझे वह उनकाहल निकालने व
उनका हल निकालने का प्रयास करें। 
     अगर हम अपनी जो भी जवाबदारी है, हमारे अपने समाज के प्रति, उसे सचेत रहकर निभाये, तभी किसी भी प्रकार से यह संभव हो सकता है। 
     हमारी मूल जवाबदेही स्वयं क प्रति, फिर परिवार, समाज व क्रमशः राष्ट्र के प्रति है, हम इससे विमुख नहीं हो सकते हैं। 
    जब भी समाज में किसी भी प्रकार की विकृतियां जन्म लेती है,
हम अपनी सुदृढ़ विचारधारा के बल पर उसे हटा सकते हैं।
    एक सभ्थ समाज में  वैचारिक मंथन के लिये हमेशा जगह होना
चाहिये । पूर्ण रूप से असहमति  या सहमति हमारी समस्त लोगों से तो नहीं हो सकती, हमारी सामाजिक स्वस्थ परंपराएं हमें जारी रखना चाहिये, पर साथ ही विचार मंथन हमेशा होते रहना चाहिये।
          दीर्घ काल में क्या होगा? इस पर हमारी निगाह अवश्य होना चाहिये, वर्तमान का हमारा सही दिशा में उठाया गया एक कदम हमें भविष्य की अनेक दुविधाओं से बचाता है। 
          हमें समाज के सभी वर्गों को सुनना चाहिये, सामाजिक समस्याओं की तह में जाकर उनका निवारण करना चाहिये।
         किसी भी देश व समाज का भविष्य बच्चों के सही व्यक्तित्व व उसके सर्वांगीण विकास पर ही निर्भर करता है, जिसकी जवाबदारी हम सभी की है, हम किसी की भी व्यक्ति  की कथनी व करनी में अंतर से ही उस व्यक्ति की पहचान कर सकते हैं ।
   विशेष:- हमारे देश के बच्चे ही भविष्य में इस देश को नवनिर्माण की ओर लेकर जायेंगे, उनके बौद्धिक विकास ही उन्हें सही दिशा 
दिखा सकता है।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद।

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