सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
प्रवाह की इस मंगलमय यात्रा में आप सभी का हृदय से स्वागत।
हम सभी आपस में एक अदृश्य सत्ता द्वारा संचालित है, जो हमें नजर नहीं आती,
मगर वही सत्ता सभी का संचालन कर रही है,
हम अपने-अपने अहंकार के कारण उस सूक्ष्म सत्ता को देख नहीं पाते।
मगर हमारे तत्व वेत्ता , मनीषी,ऋषि व शास्त्र मर्मज्ञ जो हमारे पूर्वज भी थे, वे इस सूक्ष्म विज्ञान से परीचित थे, वे अपनी सीमा- रेखा का उल्लंघन कभी नहीं करते थे, उनके आचरण की जो दृढ़ता थी, वही उनके सशक्त व्यक्तित्व को परिभाषित करती थी, हम सभी उसी विराट के अंश है, मगर माया का जाल इतना प्रबल होता है, हम चाह कर भी उसे काट नहीं सकते, यह संपूर्ण ब्रह्मांड उसी परम सत्ता द्वारा संचालित है।
यह सरकार व निराकार दोनों ही रुप में है, यह साकार रूप से हम सभी में विद्यमान है, वह अदृश्य रूप में भी हम सब में विराजमान हैं।
उसकी कृपा हम सभी पर समान है, मगर हमारी विभिन्न देशों में जो भेद दृष्टि है,
वह हमें उसे व्यापकता का बोध नहीं होने देती,
जैसे दूध में भी घी विद्यमान है, पर एक प्रक्रिया प्राप्त होने के बाद ही हम उसे प्राप्त कर सकते हैं, स्वर्ण एक धातु है , मगर विभिन्न विभिन्न आभूषण बनने पर कहीं हमसे हार, कहीं अंगूठी, कहीं पर नथ, कुंडल, मंगलसूत्र
इस प्रकार से जी आभूषण के रूप में हम उसे ढाल देते हैं, हम उसी नाम से पुकारते हैं।
वस्तुत: वह सभी स्वर्ण के ही विभिन्न रूप है।
आंतरिक भाव गहरा अगर हम परमात्मा से जोड़ सके तो हमें यह समझ में आने लगेगा।
नारी शक्ति में वह स्नेह, वात्सल्य, करुणा, ममता, सद्भाव के रूप में व्याप्त होता है।
इसीलिए हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथ नारी शक्ति
को प्रथम स्थान देते हैं।
नारी का मूल स्वभाव समर्पण है, वह जिसे भी हृदय से चाहती है, पति, परिवार व बेटे -बहू व परिवार के सदस्य, उनका वह अहित नहीं होने देती।
नारी को ईश्वर ने ममता व वात्सल्य यह दो गुण विशेष प्रदान किये हैं।
वह समतापूर्वक परिवार में सभी का ध्यान रखती है, बदले में उसे मात्र परिजनों के स्नेह व सम्मान की आकांक्षा होती है।
तो परमपिता ने जो इस दृश्य रूप में हमें दिया है, हमारा आदर्श संसार या शक्ति जिसे हम सूक्ष्म रूप भी कह सकते हैं, वह स्थूल से भी शक्तिशाली है।
उस पराशक्ति को हृदय से नमन, वह सभी का रक्षण करती है, हमारे भीतर के मनोभाव जितने शुद्ध होते जायेंगे, उतना ही हम उसके करीब होते जायेंगे।
उसकी कृपा हम सभी पर समान रूप से बरस रही है, मगर जिस प्रकार बिजली हमारे घर में मौजूद तो होती है, पर वह माध्यम कहीं पंखे में ,कहीं अन्य उपकरणों में, बल्ब में स्विच के माध्यम से पहुंचती है।
इस प्रकार सद्गुरु या ग्रंथ के माध्यम से, यह हमारी वैचारिक परिशुद्धता के माध्यम से
हम धीरे-धीरे अपने अनुभव के आधार पर
जीवन में परिपक्वता को प्राप्त करते हैं, जब तक वह ऊर्जा सकारात्मक प्रवाह का रूप नहीं लेती, तब तक हम अपने स्वरूप को
जान नहीं सकते।
इस संपूर्ण ब्रह्मांड में ऊर्जा ही है जो अपने मूल स्वरूप में विद्यमान है, विभिन्न व्यक्तियों में
ऊर्जा अलग-अलग प्रकार की होती है, विभिन्न व्यक्तित्वों व ऊर्जा के बीच हम अपना जीवन किस प्रकार व्यतीत करते हैं।
हमारे जीवन काल में अलग-अलग समय- चक्र से हम गुजरते हैं , उसे समय चक्र में हमने किस प्रकार बुद्धिमत्ता पूर्वक अपना कार्य किया, उसी के परिणाम हमारे सामने आते है।
जो भी निर्णय हम जीवन में करते हैं, वह तात्कालिक परिस्थिति , हमारे दीर्घकालिक अनुभव व समयानुकूल क्या अधिक आवश्यक है, इन तीन सूत्रों पर आधारित अवश्य होना चाहिये।
हमें अगर व्यावहारिक जगत में सफल होना है, तो इन सूत्रों को हमें ध्यान रखना होगा।
हम अपनी ओर से जीवन में दो प्रकार के लक्ष्यों को प्राथमिकता दें, एक तात्कालिक वह दूसरे दीर्घकालिक, कहीं निर्णय हमें परिस्थिति के अनुसार तत्काल भी लेने पडते हैं, वह कहीं निर्णय दीर्घकालिक रणनीति पर आधारित होते हैं।
विशेष:- हम सभी का जीवन अपने-अपने प्रयासों का ही परिणाम है, हमने समय अनुकूल क्या निर्णय किये, तात्कालिक व दीर्घकालिक रणनीति का कितनी सुंदरता से समावेश किया, इस पर आपके जीवन की आर्थिक वह मानसिक समृद्धि निर्भर है, केवल आर्थिक या केवल मानसिक, दोनों समृद्धि अति महत्वपूर्ण है, मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होने पर हमारा शरीर अच्छा होगा व आर्थिक समृद्धि होने पर हम अपना जीवन यापन परिवार का जीवन यापन ठीक से कर सकेंगे।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत
जय हिंद
वंदे मातरम
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