अंतर्यात्रा ( भाग 1 )

प्रिय पाठक वृंद, 
सादर नमन, 

आपका दिन शुभ व मंगलमय हो,  इसी कामना के साथ मेरी लेखन यात्रा में इस बार लेख है अंतर्यात्रा हम बाह्य साधन और बाह्य जगत की यात्रा तो बहुत करते हैं पर क्या कभी आपने अंतर्यात्रा की है।



हम लोगों में से कितने लोग हैं,  जो अंतर्यात्रा करते हैं,  अंतर्यात्रा हमारी अपने आपको जांचने की एक प्रक्रिया ही तो है जो हमें अनवरत चलाना होती है। हमारे भीतर कई प्रकार के विचार एक साथ चल रहे होते है। शांतचित्त होकर उन सभी विचारों का विश्लेषण करके जो जरूरी है आवश्यक है उन्हें मूर्त  रूप देनाा है, अनावश्यक विचारों को  हटा देना,  यह अंतर्यात्रा की पहली तैयारी है। 

सबसे पहले हमारी सबसे जरूरी व आवश्यक मूलभूत आवश्यकताए  किस प्रकार पूरी हो इसका मंथन कर उन्हें पूरा करना है।  एक दिशा अवश्य तय करें याद रखें बिना योजनाबद्ध तरीके से जीवन यापन करना जीवन को कठिन बनाना ही है। सरल जीवन व सहज जीवन हेतु कुछ मापदंड तो हमें स्वयं ही तैयार करने होते हैं। फिर अडिग सोच के साथ उन पर चलना होता है। आगे फिर वह पराप्रकृति भी हमारे दृढ़ निश्चय में सहभागी होकर हमारे उद्देश्य में हमेशा साथ देने लगती है।

हमारा दृढ़ आत्मबल हमें हर प्रकार की दुविधा व निश्च से बचाकर हमें हमारे लक्ष्य की ओर ले जाता है,  पर याद रखिए अंतर्यात्रा की तैयारी हमें स्वयं ही करनी होती है। इसकी शुरुआत में प्रथम बार में आप शांत चित्त होकर सभी समस्याओं का गहराई से अध्ययन कर निष्कर्ष निकालेंगे तो आप उचित निर्णय की ओर अग्रसर होने लगेंगे। ईश्वर उन्हीं लोगों की सहायता करता है,  जो दत्तचित्त होकर अपने कर्म की ओर पूर्ण समर्पण व तैयारी से आगे बढ़ते हैं।

विशेष = अंतर्यात्रा अपने आप को पहचानने और सही दिशा में कार्यरत रह कर आत्मविश्वास से सही फैसले लेने के लिए जरूरी है।  शांतचित्त होकर मनन-चिंतन करें आपको अवश्य ही राह मिलेगी।
                                                                                                                                                     आपका अपना, 
                                                                                                                                                       सुनील शर्मा।

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