सामाजिकता व हम

प्रिय पाठक गण,
सादर वंदन,
आप सभी को मंगल प्रणाम, आज दौर बड़ा विचित्र है, संकट विश्वास का सबसे बड़ा है, अंजाना जो भय व्याप्त है, दरअसल वही मुश्किल बड़ी है।
            समाज के सामने भी कई यक्ष प्रश्न है, पर युधिष्ठिर आज मौन है, दुर्योधन गलत उत्तर देते हैं, मगर यक्ष के प्रश्नों पर आज वही पास होते हैं। छल व आडंबर का आज बोलबाला है, विश्वास छलनी हुआ है, दोषी कोई एक नहीं, इन परिस्थितियों के लिए हम सभी समान रूप से दोषी हैं।
             इन प्रश्नों के हल भी हमे ही निकालने होंगे, चारित्रिक दृढ़ता जब जीवन में होगी, वह परम ऊर्जा संग फिर होगी,  ब्रह्मांड को रचने वाली वह शक्ति जब भीतर हमारे पुनर्गठित होगी, परिणाम स्वयं चलकर आएंगे, लक्ष्य को भेदने की शक्ति मिलेगी, जीवनी शक्ति का भीतर संचार हम कर पाएंगे।
            भीतर मन मंथन करें, पहले हलाहल ही निकलेगा, पर सतत प्रयास करिए, अंत में अमृत कलश भी निकलेगा, सामाजिकता को आज के नए परिवेश में हमें देखना ही होगा। आज के  यक्ष प्रश्न नए हैं, क्योंकि परिस्थितियां भी भिन्न है, यक्ष प्रश्नों का समुचित उत्तर हमें ढूंढना होगा, हर काल मंथन मांगता है, कुछ व्यक्तित्व अनूठे मांगता है, ऊर्जा का क्षरण न हो, समाज हित में उपयोग हो, कथनी करनी का भेद मिटे, तभी समाज में कल्याण संभव है।
             पर्यावरण की ओर हम ध्यान दें, शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन हो, नई शिक्षा नीति का निर्माण हो, इस में नैतिक मूल्यों का अनिवार्य रूप से समावेश हो, ताकि विश्व मानव का निर्माण हो, छोड़ संकुचित विचारधारा उस परम प्रवाह को पहचाने, लॉकडाउन के दौरान यक्ष प्रश्नों को पहचाने, उनके हल हम वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ढूंढें, यही आज के समय की पुकार है, और यही सच्ची सामाजिकता का भाव है, मानवता की पुकार है, सनातन संस्कृति से जो मूल्य हमें मिले हैं, वह समस्त संसार में फैले, ताकि संपूर्ण संसार आनंदित होकर जीवन मूल्यों को जीते हुए अपने जीवन को जिये।
               आंतरिक परिवर्तन हुए बिना कोई परिवर्तन बहुत अधिक मायने नहीं रखता, सभी धर्म पंथ मानव हित के लिए बने, फिर क्यों हम उन धर्म व पंथो को लेकर हम आपस में ही लड़ बैठते हैं, धर्म का मूल रहस्य क्या है, इसे सही तरह से जाने बिना हम कोई भी मार्ग पकड़े, हम मंजिल को नहीं पा सकेंगे। हल हम आप मिल कर बैठे, अपने आप से संवाद करें, थोड़ा भीतर की ओर चले, सवाल भी वही है, सारे जवाब भी वही है। सामाजिकता की खातिर आइए, हम मन मंथन करें, क्योंकि आज वैचारिक प्रदूषण सबसे अधिक फैल चुका है, नवनीत तो निकलेगा, शुद्ध ह्रदय से जब हम उत्तर खोजेंगे, सभी प्रश्नों के हल मिलेंगे, यह आज वक्त का तकाजा भी है, मानवीय मूल्यों की आहत होती गरिमा को, हमारे अवमूल्यन को हम स्वयं ही रोके।
        समाज हित में चिंतन करें, व यथाशक्ति उस और कार्य करें।
विशेष:-मन का मंथन करने पर ही यह भाव ह्रदय से निकले हैं, कहां तक सार्थक मेरा यह प्रयास हुआ है, यह तो इसे पढ़ने और सुनने वाले आप ही तय करेंगे, पर आज के दौर में जो भी मेरे मन को मथ रहा था, उसे शब्दों में ढ़ालने का एक छोटा सा प्रयास किया है।
आपका अपना
सुनील शर्मा

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