अपनापन

प्रिय पाठक गण,
      सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, अपनापन इस शब्द में ही इसकी सारी शक्ति भी छुपी हुई है, अपनापन यानी अपनाना, जो भी है, जैसा भी है, उसे उसी के मूल स्वरूप में जैसा भी उसका स्वभाव है, उसके साथ ही अपना लेना। 
      यह अपनापन या आत्मीयता अब लोगों में धीरे-धीरे हटने लगी है, इसका मुख्य कारण मनुष्य का निजी स्वार्थ है, दर्शन यह भाव मनुष्य की एक बहुत बड़ी ताकत है, यह एक दुर्लभ व विलक्षण  गुण भी हैं। जो प्रकृति प्रदत्त है, यह गुण सहज ही ,जन्म से ही हमें प्राप्त होता है, पर हम धीरे-धीरे भौतिकवाद की इतनी अधिक चपेट में आ गये कि हम संगीत, जीवन का रस, अपनापन, सबको अपने की जो कला थी, वह हम भूलते गये, यहीं से हमारी मानवीय गरिमा के पतन का भी प्रारंभ होता है, अगर हम ईश्वर प्रदत्त यह सहज गुण भूल रहे हैं, तो यह समाज के लिये व हमारे लिये भी अच्छा नहीं है।
         अगर हम व्यक्ति को वह जैसा भी है, उसे वैसा ही मान कर अपना ले, तो सहज हम भी रहेंगे वह सामने वाला भी सहज होगा।
        कोई भी बात हम जितनी सरलतापूर्वक, बगैर किसी आडंबर के, हृदय से जो भी सही लगे, वह कह दे, तो हमारे आपसी रिश्ते भी औरों से मधुर होंगे। 
      जितना हम अपने व्यवहार पर निगाह रखेंगे, सुधार उतना ही अधिक होगा , कोई भी नए रिश्ते में एक ठहराव, एक समय के अंतराल में ही आता है,  उचित प्रतीक्षा करें  , जो भी पुराने रिश्ते 
वह नए हम निर्माण करते हैं, उन्हें समय-समय पर हम सींचते रहे,
उन्हें स्नेह का खाद पानी, सरल भाव हम प्रदान करते रहे ,तो इस  जीवन की , जिसमें संगीत, कला का कोई स्थान न हो तो तो वह शुष्क हो जायेगा, इसमें एक संगीत होना चाहिये, अपनापन ,हम जहां रहते हैं, उन्हें प्रदान करें, रिश्तो को संबल दे, हर रिश्ता आपसे कुछ कहता है, संवाद, वह भी सार्थक दिशा में हो, तो ही वह असली  दिशाबोध देता है। अपनेपन का, स्नेह का, हम प्रयोग नित्य अपने जीवन में करें, उसके बिना यह जीवन नीरज व शुष्क सा होकर रह जायेगा।
           सत्य चाहे कितना भी कठोर हो, हम उसे मुख न मोड़ें, पर वह समय अनुकूल भी हो, इस बात का ध्यान रखें । पेड़ -पौधे, जीव- जंतु, सृष्टि के सभी जीव स्नेह को तरस रहे हैं। वह केवल परमात्मा की कृपा से प्राप्त होता है, प्रेम को जीवन का मुख्य आधार बनाये, ईश्वर भी आपकी गलतियों को माफ करता आया है वह करता है, आप भी करें, यही जीवन जीने का मुख्य आधार बना लें। नारी शक्ति है, उसमें प्रकृति ने विशेष सौम्यता व नारीत्व  प्रदान किया है, वह अपनी प्रेम की शक्ति से परिवार को परिवार बनाती है।
 विशेष:- अपनापन व आत्मीयता , यह प्रकृति प्रदत वह गुण है,
    जो अपनों को तो दुलार प्रदान करता ही है, जो गैर है, उन्हें भी अपना बनाने की ताकत रखता है, मगर इसका इस्तेमाल हम अपने स्वार्थ के लिए न करें, नहीं तो यह मिलावट उत्पन्न कर देगा। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद


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