सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम, शिक्षा का अर्थ है, मानव को इस प्रकार से जीवन जीने के योग्य बनाना, वह अपने स्वयं के लिए,
परिवार के लिए, समाज के लिए एक समन्वयक के रूप में हो।
स्वयं तो अपना हित करें, परिवार समाज का भी हित जिसमें हो, वह कार्य भी साथ-साथ करता रहे।
शिक्षा यानी मनुष्य का सर्वांगीण विकास, सहयोग, करुणा,
मैत्री, साहस, नैतिकता इन सभी गुणों का विकास शिक्षा के माध्यम से ही किया जा सकता है।
अन्याय का मुकाबला करना, परिस्थितियों से हार न मानना,
यह सब माननीय गुण विकसित करना ही शिक्षा या शिक्षाविद का
मूल कर्तव्य है।
मात्र भौतिक साधन या केवल जीवन को ऐसे ही जीने के लिए हमें यह मानव देह नहीं प्राप्त हुई है, एक विशिष्ट उद्देश्य को लेकर हम जिए, जीवन को एक बेहतर लय प्रदान करें, ताकि समाज में सभी को उनका बेहतर स्थान प्राप्त हो सके।
चुनौतियों से कभी न घबराये, शिक्षा से मनुष्य का परिवर्तन होता है, अगर शिक्षा से जीवन में परिवर्तन नहीं आता, तो फिर ऐसी शिक्षा का कोई भी मूल्य नहीं है।
शिक्षा से सामाजिक परिवर्तन आना चाहिए, विभिन्न कुरितियां जो समाज में है, उनका उन्मूलन हम किस प्रकार करे,
यही हमारी शिक्षा का मूल भाव हो।
समाज में फैली विषमताओं को हटाना व सभी के साथ सामान बर्ताव करना, यह परिवर्तन समाज में शिक्षा के द्वारा ही हो सकता है।
समाज में फैली कुरीतियों को शिक्षा के माध्यम से ही दूर किया जा सकता है , शिक्षा का उद्देश्य मात्र आर्थिक दृष्टि से सक्षम बनाना ही नहीं, वरुण वैचारिक समृद्धि और सामाजिक नियमों का किस प्रकार हम पालन करें, समाज में ,परिवार के विकास में हम किस प्रकार अपना रचनात्मक सहयोग प्रदान कर सकते हैं।
वह अगर हम कर पाते हैं, तो शिक्षा को सही अर्थो में हम
समझ पाएंगे।
किसी एक व्यक्ति -विशेष का विकास न हो, सर्वांगीण विकास, एक संपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में, बालक- बालिकाओं को हम शिक्षा के माध्यम से तराशे, वह तो मासूम होते हैं, हम उनके बालमन में
जिस प्रकार के भावों को डाल दें, वही धीरे-धीरे उनके व्यक्तित्व का एक अंग बन जाते है।
अगर हमें किसी भी देश, राष्ट्र या विश्व को सही मायने में अगर आगे ले जाना है, तो हमें शिक्षा का वह स्वरूप, जो उन्हें ऊर्जावान बनाये, परिवार व समाज में भी उनकी ऊर्जा एक सकारात्मक दिशा की ओर प्रवाहित हो, ऐसा शिक्षा का मौलिक उद्देश्य होना चाहिये।
मानवीय संवेदना व चेतना का माध्यम हमें शिक्षा को बनाना चाहिये, बालपन से नैतिक, साहसिक वह रचनात्मक गुना को अपनाने के लिए हमें उन्हें प्रेरणापदान करना चाहिये।
शिक्षा का मूल उद्देश्य तो यही है, इस देश में कई महान विभूतियां हुई, जिन्होंने समाज कल्याण में अपनी उर्जा लगाई।
शिक्षा का मौलिक उद्देश्य एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में बालक बालिकाओं का निर्माण करना है, जिन्हें सही ज्ञान नहीं,
उन्हें इस बात के लिए तैयार करना की आने वाले समय में उनसे
ही यह विश्व, राष्ट्र व समाज है।
हमारा आचरण इस प्रकार हो, समाज में सहयोग, करुणा,
समता, आपसी भाईचारा, में नैतिक गुणों को हमें नई पीढ़ी में डालना होगा।
वे नौनिहाल ही आने वाले समय में जन नेता, अध्यापक,
इंजीनियर, वकील, अधिकारी, व्यापारी जो भी वे बने, एक आत्मबोध के साथ अपने जीवन को दिये।
यह हमारी जवाबदेही है, समाज को अगर उत्थान करना
है, तो नहीं पीढ़ी में हमें सात्विक ऊर्जा, नैतिकता व करुणा, देश पम, पर्यावरण की रक्षा व आपसी समन्वय की महत्ता को बताना होगा।
नई पीढ़ी में हमें सत्य पालन का महत्व, पर्यावरण से जुड़ाव,
सामाजिक नियम व उनका क्या महत्व है।
हम सभी किसी न किसी प्रकार इस समाज का एक अभिन्न अंग है। हमारा कार्यकलाप कैसा हो ? हमें नई पीढ़ी को समझाना,
यह शिक्षा, शिक्षाविद वह समाज के प्रबुद्धवर्ग की भी महती
जवाब दे है।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत,
जय हिंद।
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