त्रिशक्ति व तीन आयाम

प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
     प्रवाह की इस मंगलमय यात्रा में आप सभी का स्वागत।
    आइये चले आज के सफर पर,
त्रिशक्ति 
तीन देव:- ब्रह्मा, विष्णु,महेश।
त्रिशक्ति:- सरस्वती ,लक्ष्मी, गणेश। 
तीन गुण:- सत्व,रज, तम ।
तीन आयाम:- बचपन, युवावस्था, वृद्धावस्था।
तीन प्रबंध:- स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार।
तीन कार्य:- स्व, परिवार, समाज।
तीन नेत्र:- दोनों नेत्र व तीसरा आज्ञा चक्र का                नेत्र, शिव नेत्र। 
तीन काल:- भूत, वर्तमान, भविष्य। 
तीन संध्या:- सुबह, दोपहर, शाम।
तीन बहुमूल्य रत्न:- समय, धन, विवेक।
तीन दोष:- वात, पित्त, कफ।
राम शब्द का विस्तृत विश्लेषण 
र +अ+म
रवि+ अग्नि + मयंक 
इस प्रकार राम शब्द में भी तीन शक्तियों का समावेश है।
सूर्य की, अग्नि की, मयंक यानी चंद्रमा की, 
यानी जब हम राम-राम करते हैं, तमिल शक्तियों का दो बार सुमिरणअपने आप हो जाता है।
इसी क्रम में मेरे द्वारा लेखन में pravah. Com व  इंदौर समाचार पत्र में पेज नंबर 13 पर दर्पण शीर्षक से वह अब यूट्यूब पर भी 
"आप और हम" इस नाम से, इस प्रकार एक
त्रिस्तरीय अभियान मैंने आपके समक्ष रखा है, कोशिश तो मेरी संपूर्ण है, मैंने मेरी ओर से कोई भी कसर नहीं छोड़ी है, सम सामयिक व
विविध विषय, जो जन सामान्य से जुड़े हुए है,
वर्तमान में उनका क्या महत्व है, हम सभी एक ऐसी व्यवस्था के भीतर हैं, जहां हमें सृजन भी करना है, सृजन करते वक्त कुछ पुराना हटाना भी पड़ता है, जो नया समाज हित में हो, वह 
लाना व वह जो आज के समय से अनुपयोगी हो, वह धीरे-धीरे हटाना, यह दोनों ही अपनी अपनी जगह महत्वपूर्ण है, इस चेतना को जागृत करना, मेरा मुख्य उद्देश्य यही है,
हम सभी का जन्म कहां होता है, यह हमारे हाथ में नहीं, मृत्यु कहां होगी, यह भी हमें पता नहीं, इन दोनों के बीच का जो समय है, वही आपके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय है, 
इस समय काल में आप किस प्रकार से अपना कार्य करते हैं, इस प्रकार आप पाएंगे कि यहां भी तीन चीज एक साथ जुड़ी है, जन्म , वर्तमान समय काल व अंतिम पड़ाव मृत्यु,
इन सभी का हम किस प्रकार अपने जीवन में समावेश करते हैं, इसमें दो बातें हमारे हाथ नहीं, केवल जन्म मृत्यु के बीच का जो समय
 है, वह हमारे हाथ है। 
हम किस प्रकार उसका संयोजन करते हैं, 
यह हमारे विवेक पर निर्भर है, जितना बेहतर हमारा संयोजन होगा, उतने ही बेहतर परिणाम हमें प्राप्त होंगे।
इस प्रकार से अगर हम देखें तो हम सभी का जीवन तीन आयामों से गुजरता है, बचपन, 
युवावस्था, वृद्धावस्था। 
बाल्यकाल में हम जिन चीजों को सीखते हैं,
युवावस्था में उन्ही पर हम अमल करते हैं वृद्धावस्था में हम इसके परिणाम पाते हैं।
निश्चित ही हम सभी को इन तीन दौर से गुजरना पड़ता है, जो सावधानीपूर्वक अपने जीवन के इन तीनों सफर को पूरा करते हैं, 
वह अपने  इसी जीवन काल में एक नया अध्याय लिखकर चले जाते हैं। 
इस प्रकार हमारे जीवन में जो ऊपर मैंने बातें लिखी, वह कुछ शास्त्रों से, कुछ निजी अनुभव से, कुछ ईश्वरीय कृपा से, इस प्रकार यहां भी तीन का सम्मिश्रण है। 
चाहिए अपनी बात इन तीन चीजों से पूर्ण करता हूं 
सत्यम, शिवम, सुंदरम।
सत्य ही शिव का स्वरूप है, और वही सुंदर है।
यानि आंतरिक आत्मबोध सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।
अब मैं तीन नारों से अपनी बात को पूर्ण करता हूं।
जय हिंद, 
जय भारत,
मातरम।
विशेष:- मैंने अपनी संपूर्ण कोशिश की है वह निरंतर प्रयासरत रहूंगा, यह मेरे द्वारा आप सभी लोगों से संवाद है, और ईश्वर इसमें साक्षी है, इस प्रकार से यहां भी दिन का समावेश है, आप, हम, ईश्वर।
क्योंकि उन्ही की कृपा से यह सब लिख पा 
 रहा हूं।
आपका अपना 
सुनील शर्मा।

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