सहजता

भारतीय संस्कृति की उद्दात परंपरा का परिचय उसके इस श्लोक से होता है।

"सर्वे भवन्तु सुखिनः ,सर्वे संतु निरामया ,सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ,मा कश्चित् दुख भाग भवेत् "




जिसमें सभी के सुखी होने के भाव को सर्वोपरि स्थान प्रदान किया गया है।                                                         हमारी संस्कृति भाव प्रधान है ना कि भौतिक प्रधान। दुर्भाग्यवश भौतिक संसाधनों को आवश्यकता से अधिक महत्व प्रदान करने से इसके मूलभाव को क्षति पहुँची है।

मानव की तीन प्रकार की श्रेणी है।

  • प्रथम संस्कृति में जीने वाले।
  •  द्वितीय प्रकति में जीने वाले। 
  • तृतीय विकृति में जीने वाले। 
तो आइये इस कविता के माध्यम से संस्कृति को सरल रूप में परिभाषित करने का एक प्रयास है। 


प्रवाह में आज

सहजता 


सहजता छोड़ कर दुरूहता अपना लेते है जब ,तब मानव के पतन की शुरुआत होती है
लेकिन जो रख पाता  संतुलन जीत उसी की होती है।
प्रकृति के पंचतत्व से बना हुआ,स्मृति -विस्मृति के गर्भ में पला हुआ,
स्पंदनों में जीता हुआ ,सहजता को जिसने धर्म बना लिया।
कर्मक्षेत्र की कठिनाइयों से जो सहजता से पार कर गया
जीवन को सहज धारा में जीने की जो कला सीख गया ,
वही इन्सान बन गया।
निरंतर साधना है प्रयास है ,
एक प्यारी सी मुस्कान ,सदा साथ में लेकर चलना
क्योंकि सहजता जीवन को वरदान बना देती है। 





















1 टिप्पणियाँ:

Sachin J Sharma ने कहा…

Simplicity makes you classy , so be simple be classy