हीरे भी आप, जौहरी भी


प्रिय पाठक वृन्द व प्रबद्ध श्रोतागण व जो भी प्रवाह पर मेरे लेख पढ़ रहे हैं, उन सभी से इतने अधिक समय तक दूरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूं।
आज का समय कड़ी प्रतिस्पर्धा का समय है। अतः अपने अपने कार्य क्षेत्र में सभी को कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। जिसमें से एक बड़ी बाधा परस्पर विश्वास का न होना है।
परस्पर विश्वास का न होना आज आप की कामयाबी के बीच की एक बड़ी बाधा है। आज सामाजिक ताना-बाना मानसिकता के उस दौर में खड़ा है, जहां पर उपभोक्तावादी मानसिकता बहुत ही तेज गति से विस्तार की ओर जा रही है। जिसके फलस्वरुप अपनी गरिमा खोते जा रहे हैं। केवल निहित स्वार्थ के खातिर हर व्यक्ति अपनी निर्धारित सीमाओं का उल्लंघन करने पर आमादा है।
अपने निज कर्तव्य को छोड़कर दूसरे की और झांकने की दुष्प्रवर्ति सिर पर चढ़कर बोल रही है।
ऐसे विपरीत समय में पूर्ण साहस व मनोबल से हमें अपने चरित्र पर दृढ़ रहना है और अवसरों को लाभ में परिवर्तित करना है।
अगर आप में किसी भी प्रकार का हुनर या कला है, तो आप में वह ईश्वरीय वरदान है, उसे परिष्कृत करिए।
आप भी उठिए, औरों को भी उठाइए।
पुरानी कहावत "हीरे की परख जोहरी करता है", अब समय के साथ अपनी साख खो चुकी है।
आज का दौर कठिनतम दौर है। अतः हीरे भी आप हैं और जोहरी भी। आप अपना स्वयं का उचित मूल्यांकन करें व फिर स्वविवेक से निर्णय लेकर कार्य की शुरुआत करें। अपने अनुभवों को ध्यान में रखें, उनका लाभ उठाएं।
पिछली गलतियों से सबक ले, साहस करें अपनी सोच व अपने व्यक्तित्व का निर्माण आप स्वयं करें। ईश्वर ने सभी को समान अवसर व समान सोच प्रदान की है।
जरूरत है सही दिशा में कार्य करने की अपनी क्षमता को पहचानिए व उठ खड़े होइए, आपकी सफलता आपके द्वार पर खड़ी है।

आपका अपना,
सुनील शर्मा।

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