जहाँ सुमति , तहँ संपत्ति नाना


"जहां सुमति, तहां संपत्ति नाना",
 प्रिय पाठक बंधु यह पंक्ति रामायण के " सुंदरकांड " में आती है, इन पंक्तियों का आशय इतना गहरा है कि इसे समझ पाना इतना आसान भी नहीं है, जब हम पर राम कृपा हो जाए तब ही हम इसे समझ सकते हैं। हर युग में दो धाराएं हमेशा प्रवाहित होती है।
राम जी के समय रावण,  कृष्ण के समय कंस,  दुर्योधन। इस प्रकार हम अगर इतिहास के पन्नों को पलटे तो हमें सब स्पष्ट नजर आएगा। मेरा आपसे कहने का तात्पर्य  केवल इतना ही है की विपरीत कर्म अपना प्रभाव अवश्य ही छोड़ता है व शुभ कर्म भी अपना प्रभाव अवश्य छोड़ता है।
सज्जन व्यक्ति परिवार में हो या समाज में दुर्जन मति के व्यक्ति आसानी से उसे उसका शुभ कार्य नहीं करने देते, पर राम कृपा बलवान होने पर व अपने निश्चय पर अडिग रहने की प्रेरणा हमें केवल और केवल विधाता ही प्रदान कर सकते हैं।
और भी पंक्तियां रामायण की उल्लेखनीय है, जिसमें से एक है,

" उघरेंहि अंत न होइ निबाहू, कालनेमि जिमि रावन राहू "

इन पंक्तियों का अर्थ है, अंत समय में रावण, राहु व कालनेमि का जो हश्र हुआ, कुमति ह्रदय में होने पर वही फल प्राप्त होगा।
ह्रदय में सुमति का निवास होना ही राम जी की कृपा है, कई जन्मों के फल स्वरुप जब हमारे ह्रदय में राम भक्ति का उदय होता है, तब हमारे पुण्य बलवान होते हैं। उनके आश्रय से ही हम जीवन को धन्य कर सकते हैं।
कलयुग केवल नाम आधारा सुमिर सुमिर नर उतरही पारा। ह्रदय में अच्छी मति को सदैव स्थान दीजिए, तब प्रत्येक कार्य आपका शुभ व मंगलमय होगा।

आपका अपना,
सुनील शर्मा।

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