सुरभि

प्रिय पाठक वृंद ,
सादर नमन ,
परमपिता परमात्मा सबका रक्षण करें, पूरी सृष्टि सुंदरतम भावों से ओतप्रोत हो ,यही सुंदर भाव।

प्राचीन काल से ही अच्छी व बुरी दोनों ही शक्तियां ब्रह्मांड में सक्रिय रही है ।सकारात्मक चिंतन जहां मनुष्य को परम अवस्था में ले जाता है ,वही निकृष्ट चिंतन नीचे अधोगति की और ,मानवीय खूबियों में से एक सबसे बड़ी खूबी होती है मानव के स्वाभाविक गुण। जरा विचार करें इस सृष्टि में हर एक व्यक्ति या प्रकृति का हर उपादान एक दूसरे पर आश्रित है ।अगर हम धरती में बीज बोते हैं तो उसे उगने हेतु जल वायु व सूर्य के ताप की आवश्यकता होती है ।यही सहज नियम है।
आश्चर्य तो मुझे इस बात का होता है ,किस सृष्टि का यह साधारण सा नियम हम जीवन में क्यों नहीं उतार पाते। आइए बात करें ,परिवार की तो कौन सा परिवार आंतरिक या बाह्य दोनों समृद्धि से भरपूर होगा ।जहां आपसी समन्वय विश्वास परस्पर मैत्री का भाव होगा। याद रखिए परमात्मा की सृष्टि को चलाने का ढंग बड़ा ही अनूठा है ,उसने सभी को एक दूसरे से इस प्रकार जोड़ रखा है कि वह चाहे विवशता में या प्रेम से स्वीकार करें परिस्थितियों का सामना जितनी सहजता से हम करते हैं उस से पार पाते जाते हैं ।

प्रथम तो कठिनाइयां जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है ,वह हमें निखारने का ,हमारे जीवन को संवारने का कार्य करती है ।उससे घबराएं नहीं वरन मुस्कुराकर उसका सामना करें ।ईश्वर की कृपा को सदैव अनुभव करें ,जो भी घटित होता है उसमें ही उसके कृपा-प्रसाद का अनुभव करते रहे ,आप देखना समस्याएं भी वही है परिस्थितियां भी वही है पर आपका आत्मबल इतना प्रबल है कि वह  सहजता  से उन को स्वीकार कर लेता है ,इसलिए अन्य के मुकाबले वह इसे जीवन का एक हिस्सा मानते हुए इससे पार पा लेता है ।

सृष्टि में एक दूसरे की सहायता के बिना कुछ भी नहीं हो सकता ,स्वर्ग की केवल परिकल्पना करेंगे तो कुछ भी नहीं होगा ,इस दिशा में अपनी संपूर्ण शक्ति व युक्ति से कार्य करने पर ही हम उसे पा सकते हैं ।परिस्थितियों का सही अवलोकन हमें वर्तमान में रहना सिखाता है वह भविष्य के लिए दूर दृष्टि प्रदान करता है ।
वैचारिक सुरभि ऐसी होती है जो आपको आंतरिक उर्जा को बढ़ा देती है तन मन को शक्ति प्रदान करती है ।सुरभि यानी खुशबू महक यह सब पर्यायवाची है।

तो उस ईश्वर को धन्यवाद जिसने हमें मनुष्य योनि में जन्म प्रदान किया धन्यवाद उसी परमपिता को जिसने अंतर्दृष्टि को जागृत किया ,बाह्य दृष्टि व अंतर्दृष्टि का जब संगम विवेक  से होता है ।व्यक्तित्व में एक सुरभि एक महक उत्पन्न हो जाती है ,जो आपके स्वयं को तो अभिभूत करती है ,संपूर्ण सृष्टि को अपनी सुरभि से नवाजती है।

ऐसे महापुरुष धन्य,जिन्होंने अपना मानव जीवन मानवता और मनुष्य के सर्वांगीण विकास हेतु ही जिए और धन्य हैं जिनकी दूरदर्शिता के कारण हम आज यह मानवीय सृष्टि का इतना सुंदर रूप देख पा रहे हैं। फिर हमारी दृष्टि सदैव सकारात्मक रूप में होनी चाहिए। अगर हम किसी बात से सहमत नहीं तो तथ्यों के आधार पर उनका मूल्यांकन करना ही उचित है।

विशेष = जहां पर मनुष्य की विचार शक्ति भी कार्य नहीं करती, वह असहाय हो जाता है, वहीं से वह परम शक्ति अपना कार्य आरंभ करती है क्योंकि उसे अपने संपूर्ण ब्रह्मांड की चिंता है। निश्चित ही कुछ तो रहस्य है जिससे हम मनुष्य आज भी अनजान हैं। उन परम शक्तियों को नमन जो अदृश्य होकर भी मानवीय या कहें ब्रह्मांड के हित में कार्य करती है। मनुष्य के विवेक की एक सीमा है पर वह किसी भी सीमा में आबद्ध नहीं है, उसकी सुरभि सदैव हृदय को व मन को आकर्षित करती है।

आपका अपना,
सुनील शर्मा।

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