सृजन से विसर्जन

प्रिय पाठक गण,
सादर वंदन।
आज प्रवाह में एक काव्य रचना भेज रहा हूं इसका शीर्षक ऊपर लिखा हुआ है।
हम तो हैं आज भी वही, हम तो हैं आज भी वही,
तुम ही बदल गए , बदल गई जब दृष्टि।
सृष्टि बदल गई, जब सृष्टा ने हाथ थाम लिया,
अनुभव अनंत हुआ, सहस्त्रो सूर्य सी ऊर्जा उसकी,
जब उससे मेरा परिचय हुआ, सब भेद मिट गए।
मैं सब हट गया, सभी हम हो गए।
जब विराट से ऊर्जा मिली, खुशी हमें अनंत मिली।
उसकी साक्षी में जब हुआ खड़ा, ह्रदय से अब पूर्ण हुआ।
पूर्ण काम है वही, जब सृजन का  उनमें विसर्जन हुआ।
आपका अपना
सुनील शर्मा

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