जनमानस

प्रिय पाठकों वृंद,
सादर नमन,
आज प्रवाह में एक काव्य रचना पेश कर रहा हूं, जो आज के मौजूदा संदर्भों से मेल खाती है।
जनमानस को पढ़ पाना आसान नहीं,
बनावट सबवे जानते हैं, हकीकत है क्या, बखूबी पहचानते हैं।
नारों से ही अब उन्हें ना लुभा पाएंगे नेता,
जमीनी हकीकत को समझे,
वही होता केवल जननेता,
जनमानस को जो समझे, पीड़ा उनकी जाने
उनके घट के भीतर क्या चल रहा है, जब वे सही अर्थों में पहचाने, जन नेता वही है।
जनमानस को जो पढ़ पाता, आखिर में वही है पार पाता।
जनमानस को पढ़ पाना आसान नहीं, बनावट वे सब जानते हैं, हकीकत है क्या बखूबी पहचानते हैं
आपका अपना
सुनील शर्मा

0 टिप्पणियाँ: