विनम्रता कहां तक उचित

प्रिया पाठक गण,
सादर वंदन,
आप सभी को मेरा मंगल प्रणाम,
     आज हम बात करेंगे विनम्रता कहां तक उचित है,
विनम्र होना बड़ी ही अच्छी बात है, यह प्रकृति प्रदत्त ग्रुणोमें से एक है, लेकिन यह किस सीमा तक उचित है, इसका निर्धारण हमें स्वयं करना होगा।
कब, कहां, कितना विनम्र होना है, यह हमें पता होना चाहिए, अन्यथा इस जगत में आपकी विनम्रता का लोग दुरुपयोग भी कर सकते हैं।
 मृदुभाषी होना अच्छी बात है, पर प्रकृति के विभिन्न आयामों को हम देखें,नारियल भीतर से कितना स्वादिष्ट होता है,उपयोगी व अच्छे स्वाद वाला है, हम इसे श्रीफल भी कहते हैं। अतः हमें बाहर से कठोरता का आवरण धारण हीं करना होगा व भीतर से विनम्र बने रहना होगा।
      बाहिया रूप में कठोरता व भीतर विनम्रता यही सज्जन पुरुषों का लक्षण है वह इसी आधार पर हमें अपने जीवन को जीना चाहिए तो हम बात कर रहे थे, विनम्रता कहां तक उचित।
यह परिस्थितियों को देखते हुए हमें स्वयं आकलन करना होगा, परिस्थितियां हमें सिखाती है वह सदैव हमें सीखते रहना चाहिए, जब तक हम विभिन्न परिस्थितियों का सामना नहीं करते, तब तक हमें समझ में भी नहीं आता कि कहां पर किस प्रकार का व्यवहार करना है। हमें अपने अनुभव द्वारा ही इसे संयोजित करना चाहिए ‌।
          हमें इस बात का पूर्णतया भान रहना चाहिए कि मृदुता की आड़ में कोई हमसे ठगी तो नहीं कर रहा है।
हमें उसके आचरण  द्वारा उसके व्यवहार को परखना चाहिए।
विनम्रता अच्छी  आदत है ,तब तक कि वह आपके लिए घातक सिद्ध न हो। जीवन में अतिरिक्त विनम्र लोगों से सदैव होशियार रहे।
विशेष:-विनम्रता अच्छा गुण है, मगर हमें देखना होगा, इसकी सीमा क्या है, यह विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग भी हो सकती है।
हमें तात्कालिक परिस्थिति का अवलोकन करके उचित निर्णय लेना चाहिए ‌
आपका अपना
सुनील शर्मा
इति शुभम भवतु


0 टिप्पणियाँ: