अंर्तघट

अंर्तघट में घट रही घटना,
        अंतर्घट में घट रही घटना।
सुन तो सही तू,सुन तो सही।
        विराम उसमें, विराम उसमें कर तो सही।
यात्रा कर तो सही, यात्रा कर तो सही।
         सब कुछ तेरे भीतर, जज्बात भीतर के,
पढ़ तो सही, पढ़ तो सही।
         कहीं देर ना हो जाए, मंजिल छूट जाए।
हमको पढ़कर जरा देख तो सही,
         देह से परे भी, भीतर भीतर गहरे चल।
खिलाता जा तू अंतर्मन को।
          राम वही है, घनश्याम वही है।
भीतर के पट खोल रे, भीतर के पट खोल रे।
         राधा वहीं है,  कृष्ण वही है।
प्रेम ही है जीवन में अनमोल रे, जीवन चुका,
        तब समझ में आया उसका मोल रे।

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