महारास

प्रिय पाठक वृंद,
सादर नमन,
आप सभी पाठकों को सादर नमन, मेरा व आप सब का जीवन एक महारास ही तो है।
हमारा जन्म होता है, तब हम शुद्ध होते हैं, नन्हे बालक में कोई विकार नहीं होता है।
 वहअबोध होता है,फिर जिस परिवेश, वातावरण और सामाजिक रीति-रिवाजों के बीच में वह अपना जीवन गुजारता है,तब उसके स्वयं के जीवन में वह कई प्रकार के मिश्रित अनुभव से गुजरता हुआ अपनी स्वयं की एक मौलिक जीवनशैली का निर्माण करता जाता है।
और यहीं से हमारे जीवन के महारास की प्रक्रिया शुरू होती है, जैसे-जैसे हमारा जीवन आगे बढ़ता है ,हम स्वयं के परिवार ,समाज ,देश व प्रकृति सभी का अनुभव करते हुए अपने जीवन को एक स्वरूप प्रदान करते हैं।
            अपने जीवन निर्माण में वह विभिन्न आयामों को पार करता है,उसकी स्वयं की रुचि,अभिरुचि,सामाजिक विषमताएं , प्रकृति का अध्ययन इन सब बातों का समावेश उसकी जिंदगी में समाहित होता जाता है।
              जो भी व्यक्ति अपने जीवन में इस प्रक्रिया से गुजरता है, जिसे हम स्वाध्याय भी कह सकते हैं,मेरे विचार से तो स्वाध्याय का सही अर्थ है स्वयं का अध्ययन, वह अपने जीवन निर्माण को एक बेहतर स्वरूप प्रदान करता जाता है।
              इस महारास की प्रक्रिया से जो भी व्यक्ति जुड़ता है उसके संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को भी वह प्रेरित करता जाता है, इस प्रकार हम में से अनेक व्यक्ति इस महारास की प्रक्रिया से गुजरते हैं।
               जो भी सही चिंतन करते हुए अपने जीवन में इस महारास की प्रक्रिया से गुजरता है, वह अपने जीवन का निर्माण तो करता ही है, अन्यो के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत बन जाता है।
                 आइए,हम भी अपने जीवन की इस महारास की प्रक्रिया से युक्ति पूर्वक गुजरे, प्रज्ञापूर्ण व विनम्र रहकर इसे समझें,जाने, औरों को भी प्रेरित करें।
           
           विशेष:-मां सरस्वती की कृपा से जो भी लिख पाया हूं, वह मेरे हृदयस्थल से निकले आंतरिक उद्गार हैं, इसमें उस ईश्वरीय कृपा का सुंदर स्पर्श है, जो मैंने अपने निजी जीवन में महसूस किया है। आशा करता हूं मेरा यह लेख आपको अच्छा लगेगा।
         आपका अपना
            सुनील शर्मा
        इति शुभम भवतु

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