सादर नमन,
अभी वर्षा ऋतु का सुहाना मौसम चल रहा है, यह मौसम मन मे
नई उमंग वह ताजगी प्रदान करता है, वर्षा की रिमझिम फुहारे मानो मन को झंकृत करती है, मन आल्हादित हो उठता है।
प्रातः काल अगर हम प्रतिदिन उठते हैं, अगर 4:00 से 6:00 के मध्य हम उठ जाते हैं, तो शाम तक या रात्रि तक
ऊर्जा बनी रहती है।
प्रकृति का गूढ़ रहस्य यही है, उससे आप कितनी सुंदरता पूर्वक तादात्म्य स्थापित कर पा रहे हैं, जितना आप सामंजस्य स्थापित करेंगे, जीवन आनंदमय होने लगेगा।
प्रातः काल उठकर सैर करे, सूर्योदय देखें, पक्षियों का मधुर
कलरव सुने, यह सभी प्रकृति से अनुकूलतम सामंजस्य बिठाना ही
तो है।
हमारी प्राचीन संस्कृति में प्रकृति के महत्व को ठीक से समझा गया है, तभी तो सारे तीर्थ स्थान, नदियों, पहाड़ों पर स्थित है, जहां प्रकृति अपने सुरम्य स्वरूप में विराजित होती है।
प्रकृति का स्पर्श सबसे अनूठा स्पर्श है, शांति चित मन से जब
हम प्रकृति की छटा को निहारते हैं, अपने भीतर उस सौंदर्य को गहरे उतारे, उसका स्पर्श अनुभव करें, वह सदा ही आपके तन मन को झंकृत ही करेगा।
जब हम देह से थक जाते हैं, विश्राम के लिये प्रकृति की मनोरम शरण को ग्रहण करते हैं, वह भी अपनी विशाल बांहें फैलाये मानो हमारा स्वागत करती है।
प्रकृति की सुंदरता व प्राकृतिक सौंदर्य, जिसमें कृत्रिमता का
समावेश न हो, हमें सहज ही आकर्षित करती है। प्राकृतिक सौंदर्य के पास हर दिन कुछ समय अवश्य बिताये, उसके सानिध्य में हमें
आंतरिक ऊर्जा प्राप्त होती है, नित्य, नियम पूर्वक प्रातःकाल उठे,
सैर पर जाने व प्रकृति के नियमित सानिध्य में अवश्य ही रहे।
यह हमारे तन व मन दोनो को ही ऊर्जा प्रदान करता है। परम
पिता की बनाई यह सृष्टि परम अद्भुत है, उसे परमात्मा की बनाई सृष्टि का आनंद अनुभव करें, ताजगी से भरपूर रहें ।
नित्य कोई मधुर संगीत अवश्य सुने, वह मधुर संगीत व दिव्यता हमें प्राप्त होती जायेगी। जितना हम संगीत व रागों के सानिध्य में रहेंगे, उतना ही जीवन का आनंद बढ़ता ही जायेगा। जीवन को
रसमय , आनंदमय बनाये, कृपामय बनाये, पक्षियों का मधुर
कलरव हमें जीवन को आनंद पूर्वक जीने का उत्साह प्रदान करता है।
संस्कृत में भी कई स्रोत है ऐसे हैं, जिनका ध्यान व लय पूर्वक पाठ करने पर जो तरंगे बनती है, वह हमें अंदर तक झंकृत करती है। आनंदपूर्वक जीवन स्वयं भी जिये , औरों को भी प्रेरणा दें, व नित्य ऊर्जावान बने रहकर जीवन का आनंद ले।
प्रसन्नचित्त रहने का अभ्यास करें, अंतरात्मा से प्रभु का धन्यवाद करें, इतने सुंदर व शानदार जीवन के लिये अहो भाव से धन्यवाद करें।
हम जितना प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करेंगे, उतना ही जीवन में आनंद बढ़ने लगेगा, आप सभी का मंगल हो, शुभ हो,
यही प्रार्थना।
उसे प्रभु का नित्य निरंतर धन्यवाद करते रहें, स्वस्थ रहें, मस्त रहे।
विशेष:- प्रकृति के नजदीक रहने का अभ्यास करें, सुबह जल्दी उठे, सैर करें, नित्य प्रभु के मंगलमय स्वरूप का हृदय में ध्यान करें, प्रकृति से सामंजस्य बिठाने का प्रयास करें।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय हिंद
जय भारत।
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