सत्य मार्ग

प्रिय पाठक गण,
      सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
      आप सभी को मेरी यह प्रवाह यात्रा कैसी लग रही है, अवश्य बताएं। हम सभी को उस परम पिता परमेश्वर ने यह सुंदर मानव जीवन प्रदान किया, अब यह हम पर निर्भर है, हम कौन सी दिशा में जाये?
     सत्य मार्ग में निश्चित ही कई प्रकार के अवरोधआते ही है, पर जो भी व्यक्ति अपने मार्ग पर दृढ़ है, जिसमें अपने मूल चरित्र पर टिके रहने की संकल्प शक्ति है, वह एक विशिष्ट ऊर्जा को जीवन
मैं प्राप्त कर लेता है, इसे कोई अन्य कितना भी चाहे, परास्त कर ही  नहीं सकता।
    सत्य धर्म की शक्ति केवल सत्य मार्ग पर चलने वाला ही जानता है, अन्य कई नहीं।
    सत्यम परम धीमहि, सत्य- बल से बड़ा कोई बल नहीं, कोई तप नहीं , कोई तीर्थ नहीं, चाहे आपने जीवन में कोई काम सामाजिक मर्यादा के विरुद्ध किया हो, अगर उसका पश्चाताप सच्चे व शुद्ध हृदय से परमात्मा से करते हैं, की है परमात्मा मुझे उसे समय ज्ञान न होने से या अहंकार के वशीभूत होने से विपरीत आचरण हो गया, पर अब आगे से मैं कोई भी ऐसा कार्य जो मेरी अंतरात्मा को स्वीकार नहीं, उसे अब नहीं करूंगा । तब वह परमात्मा आपके द्वारा की गई करुण पुकार को अवश्य सुनता है। उसमें कोई भी छल न हो, अगर आप चल कर रहे हैं तो वह ईश्वर भी जानता है व आप भी जानते हो, मगर हम उसे स्वीकार नहीं करते, हमारा अभिमान हमें पतन के मार्ग क की और अग्रसर कर देता है। 
निराभमानी व्यक्ति हमेशा सामने वालों को सम्मान देता है, पर कभी-कभी सम्मान की आड़ में व्यक्ति आपसे कुछ ऐसी अपेक्षा रखता है, जो वह भी जानता है कि यह संभव नहीं है।
           सत्य भी दो प्रकार का होता है, एक सामाजिक सत्य, जिसे हम रोज जीते हैं, उसके कहीं व्यावहारिक पहलू भी है। सत्य का उद्घाटन कब, क्यों व कैसे करना , ताकि कोई आहत भी ना हो,
वह आपके सत्य मार्ग की भी रक्षा हो। स्वाबोध ही इसका प्रथम आधार है, अन्य कोई भी आधार इसका नहीं है। सर्वश्रेष्ठ नीति तो यही है, सबके बीच में रहकर भी चाहे मौन से या मुखरता से, जब जहां जैसी आवश्यकता हो, हम अपना कार्य करें।, सत्य चाहे कितना भी कड़ा क्यों, उसे उजागर अवश्य करें। 
              आज भी कोई व्यक्ति सत्य पर दृढ़ रहता है, उसका  का आत्म बल हमेशा बड़ा हुआ होता है। 
         सत्य को अपना आधार बनाये। असत्य का मार्ग आपको मुसीबत में डालेगा ही, उस से सदैव ही बचे।
      जितना सत्यता के निकट रहेंगे, उतना ही अधिक आपको लाभ प्राप्त होगा ।
   परिवार व समाज दोनों में ही एक संतुलन अवश्य रखें। प्रभु की अन्य शरणाग गति का आश्रय लेते हुए अपने जीवन पथ पर स्वयं भी आगे बढ़े वह अन्य को भी अपने सही आचरण के द्वारा आलोकित करें, सत्य पर सदैव दृढ़ रहे  , मात्र सत्य बल के अनुसरण से आपके आंतरिक बल में अभिवृद्धि होने लगती है।
विशेष:- कितनी भी कठिन परिस्थितियों जीवन में आये, हम सत्य के मार्ग से विचलित न हो, वह सत्य बल ही आपका रक्षक बनेगा,
भगवान श्रीकृष्ण का भी भगवत गीता में कथन है, "यतो धर्म, ततो  जय" , यह उद्घोष स्वयं भगवान श्री कृष्ण भगवत गीता में कर रहे हैं, अतः जब भी विचलन आये, ग्रंथ का आश्रय अवश्य ले।
 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जयभारत 
जय हिंद

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